इसे क्या कहा जाए कि एक तरफ देश में कोरोना की रोकथाम के लिए टीकाकरण हो रहा है तो वहीं दूसरी ओर संक्रमितों के आंकड़े आये दिन नये रिकार्ड बना रहे हैं। बावजूद इसके चिकित्सा क्षेत्र के विशेषज्ञों का मत है कि टीकाकरण से ही हालात काबू में आएंगे। जब आबादी के बड़े हिस्से का टीकाकरण हो जाएगा तो उसके बाद यह बीमारी इतना घातक प्रभाव नहीं डाल पाएगी। कम शब्दों में कहा जाए तो ऐसे वक्त में जब देश में कोरोना संकट की दूसरी लहर गंभीर स्थिति पैदा कर रही है, वैक्सीन ही अंतिम कारगर उपाय नजर आता है।
16 जनवरी से शुरू हुए टीकाकरण अभियान को करीब तीन माह पूरे हो चुके हैं। टीकाकरण के मामले में भारत ने दुनिया के सभी देशों को पीछे छोड़ दिया है। भारत ने पड़ोसी मुल्क चीन को भी पीछे छोड़ दिया है, जहां से कोरोना संक्रमण का पहला मामला सामने आया था। इसके अलावा टीकाकरण की रेस में ब्रिटेन और अमेरिका जैसे देश भी भारत से पीछे हैं। भारत में अबतक 10 करोड़ से ज्यादा कोरोना वैक्सीन की डोज दी जा चुकी है। भारत के अलावा दुनिया में अमेरिका और चीन दो देश ही ऐसे हैं जहां अबतक कुल 10 करोड़ खुराक दी गई है।
वहीं दूसरी और देश में कोरोना महामारी विकराल रूप ले चुकी है। बीते 24 घंटे में 1 लाख 99 हजार 376 नए मरीज मिले हैं। 93,418 ठीक हुए और 1,037 की मौत हो गई। नए केस का आंकड़ा पिछले साल 16 सितंबर को आए पहले पीक के दोगुना से ज्यादा हो गया है। तब एक दिन में सबसे ज्यादा 97,860 केस आए थे। इसके साथ ही एक्टिव केस, यानी इलाज करा रहे मरीजों की संख्या 14 लाख 65 हजार 877 हो गई है। यह 15 लाख के पार हो सकती है, क्योंकि इसमें बीते दो दिन से एक लाख से ज्यादा की बढ़ोतरी हो रही है। ऐसे में बचाव के परंपरागत उपायों के साथ टीकाकरण अभियान को गति देने की जरूरत है ताकि देश लॉकडाउन जैसे उपायों से परहेज कर सके।
देश में कोरोना वायरस के घातक प्रभाव को देखते हुए सरकार ने विदेशी टीकों को मंजूरी दी है। केंद्र सरकार द्वारा विदेशी टीकों को स्वीकृति देना और आयात का बाजार खोलना यकीनन एक स्वागतयोग्य निर्णय है। फाइजर, मॉडर्ना और जॉनसन एंड जॉनसन सरीखी विदेशी कंपनियों ने भारत में मानवीय परीक्षण किए अथवा नहीं, अब यह सवाल गौण है, क्योंकि बढ़ते संक्रमण पर लगाम कसना सरकार और जनता की साझा प्राथमिकता है, लेकिन ये टीके कई देशों में इस्तेमाल किए जा रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन और विज्ञान पत्रिका ‘द लैंसेट’ ने इन टीकों का सकारात्मक विश्लेषण किया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अलावा अमरीका, ब्रिटेन, यूरोप और जापान ने इन्हें आपात मंजूरी दी हुई है।
हमारे कोविड-19 के राष्ट्रीय विशेषज्ञ समूह ने फाइजर और मॉडर्ना से अतिरिक्त डाटा की मांग की थी, लेकिन वे अमरीका की फूड एंड ड्रग्स अथॉरिटी की स्वीकृति के आधार पर ही भारत के बाजार में प्रवेश चाहती थीं। ऐसा नहीं हो सका, तो कमोबेश फाइजर ने बीती फरवरी में अपना आवेदन वापस ले लिया था। तब कोरोना का संक्रमण भारत में इतना नहीं फैला था कि उसे ‘नई लहर’ का नाम दिया जा सके। अब अप्रत्याशित रूप से कोविड का घोर आपातकाल मंडरा रहा है, लिहाजा उसी संदर्भ में टीकों की स्वीकृति देखनी चाहिए। अभी भारत की ही कुछ कंपनियों के टीके पाइपलाइन में हैं। आने वाले कुछ महीनों में उन टीकों को भी मंजूरी मिल सकेगी, लिहाजा टीकाकरण का संकट दूर हो सकेगा।
बीते साल लॉकडाउन की सख्ती से जहां देश की आर्थिक स्थिति पर प्रतिकूल असर पड़ा था, वहीं एक बड़ी आबादी को शहरों से गांवों की ओर विस्थापित होना पड़ा था। बड़े पैमाने पर रोजगार का संकट भी पैदा हुआ था। बहरहाल,नयी चुनौती के बीच दिल्ली, महाराष्ट्र और पंजाब समेत कई राज्यों ने रात्रि कर्फ्यू जैसे उपायों को अपनाना शुरू कर भी दिया है। आंशिक बंदी, कन्टेनमेंट जोन बनाने और सार्वजनिक सभाओं पर रोक लगायी जा रही है। ऐसे में टीकाकरण अभियान लक्षित वर्ग विशेष व आयु वर्ग के हिसाब से देश में चल रहा है। स्वास्थ्यकर्मियों, फ्रंटलाइन वर्करों, साठ साल से अधिक आयु वर्ग के लोगों को टीकाकरण का लाभ देने के बाद अब 45 वर्ष से अधिक आयु वर्ग के लोगों को टीका लगाने का कार्य शुरू हो चुका है। लेकिन एक तथ्य यह भी है कि 45 आयु वर्ग से नीचे के लोगों को भी कोरोना अपना शिकार बनाता रहा है, जिसके लिये भी टीकाकरण की जरूरत महसूस की जा रही है।
दरअसल, टीकाकरण अभियान की विसंगतियों को दूर करके इस अभियान में तेजी लाने की जरूरत है। वैक्सीन आपूर्ति को लेकर गैर भाजपा शासित राज्यों की शिकायतों के बाद आरोपों-प्रत्यारोपों का सिलसिला भी जारी है। वहीं केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री इस मुद्दे पर राजनीतिक बयानबाजी को अनुचित बताते हैं और कहते हैं कि पर्याप्त मात्रा में वैक्सीन की आपूर्ति की जा रही है। उनका मानना है कि ऐसी बयानबाजी से जहां लोगों का मनोबल प्रभावित होता है, वहीं देश की अंतर्राष्ट्रीय छवि पर प्रतिकूल असर पड़ता है। वहीं लॉकडाउन लगाने से अर्थव्यवस्था को बड़ा नुकसान होगा। ऐसे में सरकार को सारे साधन और संसाधन टीकाकरण में झोंक देने चाहिएं। अगर सकारात्मक सोच के साथ सभी राजनीतिक दल एक दिशा में आगे बढ़ेंगे तो बड़े से बड़े संकट को जीता जा सकता है। वहीं नागरिकों को भी अपनी जिम्मेदारी पूर्ण ईमानदारी से निभानी होगी। सरकार द्वारा जारी दिशा-निदेर्शों का पालन करें। इसी में सबकी भलाई है।
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