पंजाब सरकार ने कोविड संबंधी परिस्थितियों का जायजा लेते राज्य में राजनीतिक भीड़ पर पूर्णतया: पाबंदी लगा दी है। सरकार को यह निर्णय जनवरी में लेना चाहिए था फिर भी ‘देर आए दुरूस्त आए’ अनुसार सही निर्णय लिया गया है। यह तथ्य हैं कि पिछले महीनों में रखी गई राजनीतिक रैलियों दौरान भारी इक्ट्ठ हुआ था, जहां सावधानियां नाम की कोई चीज ही नहीं थी। शिरोमणी अकाली दल के प्रधान सुखबीर बादल को रैली के आगे वाले दिन ही कोरोना हो गया। इस तरह दिल्ली धरने में बैठे कांग्रेसी सांसद रवनीत बिट्टू भी कोरोना पाए गए। केवल पंजाब ही नहीं देश के बहुत से राज्यों के अधिकतर वह नेता ही कोरोना के शिकार हुए हैं, जिन्होंने सार्वजनिक भीड़ में पहुंच की थी।
पंजाब से पहले बिहार, पश्चिमी बंगाल व आसाम में भी राजनीतिक भीड़ पर पाबंदी लगनी चाहिए। विधान सभा चुनावों के कारण राज्यों में भारी भीड़ हुई थी। यह कहना गलत नहीं होगा कि देश में कोविड के मद्देनजर साझा दिशा-निर्देशों की भारी कमी है। राज्य अपने-अपने स्तर पर निर्णय ले रहे हैं। चाहे राज्यों को अपनी-अपनी परिस्थितियों अनुसार निर्णय लेने का अधिकार है लेकिन जब महामारी राष्टÑीय स्तर की है तो देश के साझा दिशा-निर्देश होने चाहिए, जिनको पूरी कठोरता से लागूू किया जाए। किसी राज्य में रैली पर पाबंदी व किसी राज्य में रैलियां की जा रही हैं। सार्वजनिक भीड़ पर पाबंदी पूरे देश में एक जैसी होनी चाहिए। परिस्थितियां यह हैं कि पंजाब जैसे राज्य में 85 फीसदी केस इंग्लैंड स्ट्रेन कोरोना वाले हैं।
पिछले साल वायरस से पीड़ित एक व्यक्ति से आठ अन्य व्यक्तियों में संक्रमण फैल रहा था अब यह आंकड़ा 14 व्यक्तियों को हो गया है। ऐसी परिस्थितियों में किसी भी तरह की भीड़ को इजाजत देना राज्य की जनता की सेहत के साथ खिलवाड़ है। जहां तक रात के कर्फ्यू की बात है यह निर्णय कोई बहुत दमदार नजर नहीं आ रहा। अब सबसे बड़ी जरूरत टीकाकरण की रफ्तार बढ़ाने की है। विपक्ष को राजनीतिक पार्टियों की रैलियों पर पाबंदी लगाने के सरकार के फैसले की आलोचना करने की बजाय टीकाकरण में सरकार का साथ देने की जरूरत है। टीके का कोई दुष्प्रभाव नहीं है, ये पूरी तरह से सुरक्षित है, फिर भी लोग वैक्सीनेशन करवाने से कन्नी कतरा रहे हैं। राजनेता अपने पार्टी वर्करों को टीका लगवाने के लिए प्रचार मुहिम शुरू करें चूंकि यह समय राजनीति करने का नहीं बल्कि एकजुट होकर मानवता को बचाने का है।
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