वोटरों को लुभाने के लिए राजनेताओं को क्या-क्या हथकंडे अपनाने पड़ते हैं, साधारण व्यक्ति सोच भी नहीं सकता। हर घटना, दुर्घटना को अपने व अपने दल के पक्ष में मोड़ने की कला जिसमें जितनी अधिक है, वह उतना अधिक सफल राजनीतिज्ञ है। पं. बंगाल में चुनाव शुरू हो चुके हैं। तृणमूल कांग्रेस और भाजपा पश्चिम बंगाल में सत्ता की लड़ाई लड़ रहे हैं। दोनों ही दल येन-केन-प्रकारेण वोटरों को लुभाने का मौका नहीं छोड़ रहे। चुनाव आचार संहिता लगने से पहले रैलियों की अनुमति न देना, रैलियों में हुडदंग करना, कार्यकर्ताओं पर हमले करना, करवाना इत्यादि तमाशे पं. बंगाल में देखने को मिले। ममता बनर्जी ने अपने साथ हुई दुर्घटना को भी भुनाने का प्रयास किया। टांग पर पलस्तर लगे व्हील चेयर पर रोड शो व रैलियां कर सुर्खियां बटोरी, वहीं भाजपा भी इस खेल में कहां पीछे रहने वाली थी। तृणमूल के नारे ‘खेला होबे’ को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने चुनावी जुमला बना दिया।
पीएम मोदी ने कहा-‘दीदी बोले-खेला होबे, बीजेपी बोले विकास होबे’। विपक्षियों के तमाम दाव पेंचों को पछाड़ते हुए प्रधानमंत्री चुनाव से ठीक एक दिन पहले बांग्लादेश पहुंच गए। बांग्लादेश की सरजमीं से बंगाल को साधने के प्रधानमंत्री के प्रयास से ममता दीदी भौचक्की रह गई। मतुआ समुदाय का पश्चिम बंगाल की लगभग 55 सीटों पर प्रभाव है। मतुआ समुदाय पूर्वी पाकिस्तान, जो अब बांग्लादेश है, से ताल्लुक रखते हैं। बंगाल में इस समुदाय का प्रमुख हरिशचन्द्र ठाकुर है। जिनका जन्म बांग्लादेश के ओराकांडी में हुआ। प्रधानमंत्री ने बंगाल के चुनाव के प्रथम दिन ओराकांडी में पहुंचकर मतुआ समुदाय के मन्दिर में माथा टेका। प्रधानमंत्री ने कहा कि मैं कई सालों से इस अवसर का प्रयास कर रहा था, 2015 की बांग्लादेश की यात्रा के दौरान भी मैंने ओराकांडी आने की इच्छा व्यक्त की थी, जो अब पूरी हुई है।
इस प्रकार प्रधानमंत्री ने चुनाव के दिन मतुआ समुदाय को साधने का जो प्रयास किया इससे ममता बनर्जी भड़क उठी और प्रधानमंत्री पर चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन का आरोप लगाया है। ममता ने कहा कि सन् 2019 के लोकसभा चुनावों के दौरान एक बांग्लादेशी अभिनेता के तृणमूल कांग्रेस की रैली में आने पर अगर उसका वीजा निरस्त कर दिया जाता है तो एक समुदाय के वोट पाने के लिए बांग्लादेश जाने पर प्रधानमंत्री का वीजा निरस्त क्यों नहीं होना चाहिए? प्रधानमंत्री के बांग्लादेश के दौरे ने विरोधियों को सकते में डाल दिया। प्रधानमंत्री का यह प्रयास मतुआ समुदाय को साधने में कितना सफल होता है यह तो समय ही बताएगा, लेकिन प्रधानमंत्री के इस कदम ने बंगाल की राजनीति में खलबली मचा दी है। दरअसल देश की राजनीति में आज कोई भी दल साम-दाम-दण्ड-भेद की नीति से अछूता नहीं है।
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