दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार ने शराब खरीदने वाले युवाओं की आयु 25 साल से कम कर 21 साल कर दी है। इसके पीछे सरकार का तर्क यह है कि इससे शराब माफिया की कमर टूटेगी और सरकार की आमदनी एक से दो हजार करोड़ रुपए तक बढ़ेगी। इसके अलावा सरकार का यह तर्क भी हो सकता है कि उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में शराब खरीदने वाले की उम्र सीमा 21 वर्ष है। यह विडंबना है कि दिल्ली सरकार अपने खजाने को भरने के लिए युवाओं की जिंदगी पर दांव खेलने से संकोच नहीं कर रही। सरकार भले ही शराब माफिया के बहाने आयु सीमा घटा रही है लेकिन इस निर्णय के दुष्प्रभावों की संभावना से इन्कार नहीं किया जा सकता।
सरकार के इस निर्णय से जो युवा कानूनी कार्रवाई से बचने के लिए ठेके पर नहीं पहुंचते थे अब वे बिना किसी झिझक के शराब खरीदने लगेंगे। इससे भले ही सरकार अपनी आमदनी में बढ़ौतरी कर लेगी किंतु युवा वर्ग बर्बादी की राह पर चलने लगेगा। सरकार यह भूल कर रही है कि राज्य के विकास के लिए शराब माफिया को खत्म करना ही सरकार का उद्देश्य है जबकि सरकार की नैतिक और कानूनी जिम्मेदारी एक नागरिकों को स्वस्थ व खुशहाल बनाना है। सरकार की जिम्मेदारी शराब माफिया को खत्म करना ही नहीं बल्कि शराब की आदत खत्म करना है। स्वास्थ्य विभाग में कार्यरत डॉक्टर लाखों मरीजों को यही सलाह देते हैं कि यदि लीवर को बचाना है तो शराब को हाथ न लगाएं। देश के प्रसिद्ध लीवर स्पैशलिस्ट डॉक्टरों का कहना है कि लीवर खराब होने का बड़ा कारण शराब और सिगरटनोशी है।
सरकार दोगली नीति पर काम कर रही है। एक तरफ सरकार का दावा है कि राज्य में शराब की कोई नई दुकान नहीं खोली जाएगी, दूसरी तरफ पहले खुली दुकानों पर भीड़ जुटाने के फैसले लिए जा रहे हैं। आम आदमी पार्टी एक अलग और साकारात्मक विचारधारा से राजनीतिक मैदान में उतरी थी, लेकिन ‘आप’ सरकार भी पारंपरिक राजनीतिक दलों की तरह सरकारी खजाने को भरने के लिए शराब की आमदनी पर टिकटिकी आंख रखने लगी है। अगर शराब ने देश को लड़ाई-झगड़ों, सड़क दुर्घटनाओं व बीमारियों के अलावा कुछ दिया है तो सरकार को उसकी सूची जरूर सार्वजनिक करनी चाहिए। बाकी अन्य राज्यों में यदि पहले ही नुक्सानदेय कानून लागू हैं, तब दिल्ली सरकार को सही फैसला लेकर मिसाल बनना चाहिए था। वर्तमान फैसला तो व्यक्ति तक शराब की आसानी से पहुंच की ही गारंटी देता है।