भारतीय समाज के ढांचे में महिला उद्यमिता को प्रोत्साहन देने के लिए सामाजिक-पारिवारिक और आर्थिक, सभी मोर्चों पर बदलाव की दरकार है। परिवेश, परिवार और परंपरागत सोच से जुड़े ऐसे कई पक्ष हैं, जो उद्यमी बनने की इच्छा रखने वाली महिलाओं के लिए बाधा बनते हैं। कारोबार की शुरूआत करने में ही नहीं उसे विस्तार देने में भी महिलाएं पुरुषों से ज्यादा समस्याओं का सामना करती हैं।
आर्थिक सर्वेक्षण 2019-20 के मुताबिक इस वर्ष की शुरूआत तक देश में 27,084 अधिकृत स्टार्टअप कंपनियों में कम से कम एक महिला निदेशक वाली कंपनियों का हिस्सा मात्र 43 फीसदी ही था। इनोवेन कैपिटल के मुताबिक 2018 में ऐसी वित्तपोषित स्टार्टअप कंपनियों का हिस्सा 17 फीसदी था, जिनमें कम से कम एक महिला सह-संस्थापक हो। साल 2019 में ऐसी कंपनियों की संख्या घटकर सिर्फ12 प्रतिशत रह गई। गौरतलब है कि बीते साल महिला उद्यमी इंडेक्स में भी भारत कुल 57 देशों में 52वें स्थान पर रहा था। ऐसे आँकड़े बताते हैं कि आज भी महिला उद्यमियों के सामने अनगिनत चुनौतियाँ मौजूद है। जो कारोबारी दुनिया में उनका दखल बढ़ने में बड़ा व्यवधान बनती हैं।
दरअसल, महिला उद्यमियों को आगे लाने के लिए केवल आर्थिक मदद या सुविधायें ही काफी नहीं होतीं। समग्र रूप से सामाजिक और पारिवारिक सोच में बदलाव आये बिना उनकी मुश्किलें कम नहीं की जा सकतीं। हालांकि बीते कुछ बरसों में श्रमशक्ति में स्त्रियों की हिस्सेदारी तेजी से बढ़ी है पर महिलाओं के कामकाजी बनने और उद्यमी होने में भी बड़ा अंतर होता है। नौकरी करते हुए घर-दफ्तर जिम्मेदारियों के अलावा दूसरी उलझनें औरतों के हिस्से नहीं आतीं। जबकि कारोबार में उन्हें कई मोर्चों पर एक साथ जूझना पड़ता है। उनके द्वारा चलाये जा रहे उद्यमों में निवेश करने से लेकर उसके सफल होने तक, कितने ही पूर्वाग्रह और मूल्यांकन केवल महिला होने के नाते उनके हिस्से आते हैं।
यही वजह है कि लगभग हर क्षेत्र में अपनी उपस्थिति दर्ज करवा रही आधी आबादी की कारोबार के क्षेत्र में भागीदारी आज भी सीमित ही है। जिसका सीधा सा अर्थ यह है कि हमारे देश में महिला उद्यमियों के लिए ना तो कारोबार की राह आसान है और ना सामाजिक-पारिवारिक माहौल उनका सहयोगी बन पाया हैं। यही वजह है कि कुछ अपवादों को छोड़ दें तो हमारे यहाँ कारोबार की दुनिया में उनकी की संख्या गिनती की ही है।
महिला उद्यमिता को किसी भी देश की आर्थिक प्रगति का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत माना जाता है। महिला उद्यमी न केवल खुद को आत्मनिर्भर बनाती हैं बल्कि दूसरों के लिए भी रोजगार सृजन करती हैं। मौजूदा समय में भारत में महिलाओं द्वारा कई उद्यम चलाए भी जा रहे हैं। इनमें बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार भी मिल रहा है।
ऐसे उद्यमों में अन्य महिलाओं को काम करने के लिए काफी सहज और सुरक्षित माहौल भी मिलता हैं। जिससे के लिए रोजगार पाने की राह आसान होती है। गौरतलब है कि भारत में श्रमशक्ति का एक तिहाई से कुछ अधिक हिस्सा महिलाओं का है, जो जीडीपी को बढ़ाने और रोजगार के अवसर पैदा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। स्त्री श्रमशक्ति की यह भागीदारी भारतीय अर्थव्यवस्था को गति में अहम साबित हो सकती है।
यूँ भी इतिहास पर नजर डालें तो देश के महानगरों में ही नहीं गांवों-कस्बों में भी महिलाओं द्वारा पापड़, अचार को तैयार कर बेचने का चलन बहुत पुराने समय से चला आ रहा है। महिलाओं द्वारा संचालित छोटे-छोटे उद्यमों में बने परंपरागत हस्तशिल्प और कढ़ाई बुनाई की चीजे देश ही नहीं विदेशों में खूब पसंद की जाती रही हैं। ऐसे कई उदाहरण हैं जिनमें खुद जोखिम उठाकर घरेलू जिम्मेदारियों को संभालते हुए भी कारोबार की दुनिया में महिलाओं ने अपनी पहचान बनाने का भरपूर प्रयास किया है। सफल भी हुई, उनके उत्पादों का बड़ा बाजार भी बना। पर यह भी सच है कि अधिकांश महिलाओं के हिस्से घरेलू जिम्मेदारियों का बोझ इतना ज्यादा है कि नवाचार या उद्यमिता का रास्ता नहीं चुन पातीं।
महिला उद्यमी देश के मानव संसाधन का अहम हिस्सा हैं। बावजूद इसके कारोबारी परिवेश में आज भी महिला नेतृत्व वाले संस्थानों के प्रति लोगों में असहजता और अविश्वास का माहौल का बर्ताव देखने को मिलता है। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण (एनएसएसओ) का कहना है कि भारत के व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में से महज 14 फीसदी महिलाओं द्वारा संचालित हैं। इनमें से अधिकतर उद्यम छोटे स्तर के और स्वयं वित्तपोषित हैं। इसकी एक वजह यह भी कि महिलाओं को फंडिंग संसाधनों और कारोबार की सहायता के लिए मौजूद योजनाओं की जानकारी भी कम ही होती है। सुरक्षित माहौल के चलते महिलाएँ व्यावसायिक संपर्क बनाने और उन्हें विस्तार देने में हिचकती हैं। उद्यम को स्थापित करने की दौड़ में अकसर अपनों का साथ भी नहीं मिलता।
बावजूद इसके बीते कुछ सालों में महिलाओं ने अपनी काबिलियत के बल कारोबार की दुनिया में मौजूदगी दर्ज भी करवाई है। खुद जोखिम उठाकर अपनी जगह बनाई है। ऐसे में अगर सरकार की नीतियाँ सहयोगी बनें, महिलाओं को नवाचार के लिए उचित आर्थिक मदद मिलने की राह खुले तो कारोबार के संसार में उनकी प्रभावी भागीदारी देखने को मिल सकती है।
हाल ही में आई बेन एंड कंपनी और गूगल की ‘वुमन एंटरप्रेन्योरशिप इन इंडिया-पावरिंग दि इकॉनमी विद हर’ नाम की एक रिपोर्ट के मुताबिक महिलाओं में उद्यमशीलता को प्रोत्साहन दिया जाय तो देश के आर्थिक और सामाजिक परिदृश्य में काफी बदलाव आ सकता है। यह रिपोर्ट बताती है कि उद्यमशीलता के लिए महिलाओं का आगे आना देश में 15 से 17 करोड़ रोजगार के अवसर पैदा कर सकता है। भारत जैसे बड़ी आबादी वाले देश में रोजगार के अवसर सृजन करने में महिला उद्यमियों की इस महती भूमिका पर गौर किया जाना जरूरी है।
स्त्रियों की यह कारोबारी भागीदारी देश के विकास में अहम भूमिका निभायेगी। साथ ही महिलायें स्वयं आगे बढ़ते हुए दूसरी महिलाओं को भी सशक्त और आत्मनिर्भर बनाने में मददगार बन सकती हैं। बेरोजगारी की समस्या से जूझ रहे हमारे देश में महिलाओं के लिए रोजगार पाने के अवसर बढ़ा सकती है, जो कुल मिलाकर देश की आधी आबादी को हर तरह से सशक्त बना सकता है। यकीनन, नीतिगत बदलाव और तकनीक का साथ लेकर कारोबार की दुनिया में महिला-पुरुष का अंतर पाटा जा सकता है।
गौर करने की बात है अब हमारे यहाँ सामाजिक -पारिवारिक माहौल भी बदल रहा है। महिलायें अपने फैसले खुद लेने लगी हैं। अपने कामकाज का क्षेत्र स्वयं चुन रही हैं। पारंपरिक संरचना का यह बदलाव लैंगिक भेदभाव को दूर करने का पहला कदम है। बुनियादी सोच का यह परिवर्तन महिलाओं में उद्यमशीलता और कौशल विकास को गति देने वाला अहम कारक बन सकता है। इतना ही नहीं यह घर से लेकर कार्यक्षेत्र तक लैंगिक समानता लाने वाला कदम भी साबित होगा।
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