सरसा। पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां फरमाते हैं कि संत, पीर-फकीर इस दुनिया में सबका भला करने के लिए आते हैं। उनका किसी भी धर्म, मजहब या किसी भी व्यक्ति से कोई वैर-विरोध नहीं होता। संत, पीर-फकीर हर जीव को प्यार का पाठ पढ़ाते हैं और यह संदेश देते हैं कि जो संत, पीर-पैगम्बरों ने लिखा है उसको केवल मात्र पढ़कर छोड़ो नहीं, बल्कि उन लिखे हुए वचनों को पढ़कर उन पर अमल भी करो। इन्सान अगर उन वचनों पर चलता है तो मालिक की दया-मेहर से मालामाल जरूर हो जाता है।
पूज्य गुरु जी फरमाते हैं कि संत, पीर-फकीर जो भी वचन करते हैं वो कभी खाली नहीं जाते और हमारे गुरु, पीर-पैगम्बरों ने जो कुछ भी लिखा है वो बिल्कुल भी झूठ नहीं है। उन्होंने जो भी लिखा है वो सच था, सच है और सच ही रहेगा। आदमी को अगर चंद नोटों की हवा मिल जाए तो आदमी बदल जाता है। भाई, भाई का दुश्मन हो जाता है। पैसों के चंद टुकड़ों के लिए लोग अपना दीन, ईमान, मजहब सब कुछ बेच देते हैं लेकिन संत बिकाऊ नहीं होते और किसी के कहने से वो वचन नहीं करते, बल्कि वो तो सबके लिए दुआ करते थे, करते हैं और करते ही रहेंगे। जिस प्रकार पेड़ अपना फल खुद नहीं खाता और समुद्र अपना पानी खुद नहीं पीता उसी तरह संत, पीर-फकीर भी परमार्थ के लिए, दूसरों की खुशी, परमानन्द के लिए संसार में आते हैं।
संतों के वचनों का कभी भी बुरा नहीं मानना चाहिए
आप जी फरमाते हैं कि संतों के वचनों का कभी भी बुरा नहीं मानना चाहिए। जो इन्सान वचनों को गलत मानता है इसका अर्थ है कि वह मन के वश में है। इसलिए मन से लड़ना चाहिए। संत कभी किसी को बुरा नहीं कहते। कई बार संत, पीर-फकीर सख्त अल्फाज का इस्तेमाल भी करते हैं, लेकिन इसमें भी पता नहीं आदमी के कितने ही बुरे कर्म जलकर खाक हो जाते हैं। उन वचनों को कभी भी गलत तरीके से नहीं समझना चाहिए, क्योंकि गर्म पानी कभी भी घर को जला नहीं सकता। गर्म पानी में नीम का रस डालकर जख्म पर लगाने से जख्म साफ हो जाता है।
गर्म दूध भी घर को नहीं जलाता, बल्कि कुछ देर बाद उस पर भी मलाई आ जाती है अर्थात् संत, पीर-फकीर अगर कोई सख्त वचन करते हैं तो समझ लेना चाहिए कि इन्सान का आने वाला कोई भयानक कर्म खत्म हो गया। ऐसा भी तभी सम्भव है जब इन्सान उन वचनों को अपने अंदर बसा ले। अगर वचनों को निकाल देता है तो सोचिए! उसका भला कैसे होगा?
पूज्य गुरु जी फरमाते हैं कि वचनों को सुनकर उन पर अमल करने से ही भला होता है। कबीर साहब जी ने भी लिखा है कि संतों के क्रोध में भी पता नहीं किस प्रकार की दात छुपी होती है। संत, पीर-फकीर क्रोध इसलिए नहीं करते कि लोग उनकी बातों को नहीं मानते बल्कि उन्हें क्रोध इसलिए आता है कि इन्सान का आने वाला समय बुरा है, फिर भी इन्सान बुरा कर्म करना क्यों नहीं छोड़ता?
अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook और Twitter पर फॉलो करें।