स्वच्छता के बिना पूंजीनिर्माण एक अभिशाप

Cleanliness

आमजन पीढ़ी दर पीढ़ी ये संस्कार देते थे कि पेड़-पौधों, जीवों, मिट्टी-हवा, पानी को नुक्सान नहीं पहुंचाया जाए। वर्तमान दौर सिर्फ पूंजी निर्माण तक सीमित रह गया है। अभी भी सरकारें, स्थानीय निकाय, आम नागरिक एकजुट हों तो मर रही नदियों को बचाया जा सकता है। दिल्ली जल बोर्ड की शिकायत पर उच्चतम न्यायलय ने यमुना नदी में बढ़े प्रदूषण के स्तर को लेकर कड़ा संज्ञान लिया है और हरियाणा सरकार को नोटिस दिया है, कारण हरियाणा के औद्योगिक शहरों का गंदा व औद्योगिक कचरे से प्रदूषित जल यमुना में बहाया जाना बताया गया है।

यमुना ही नहीं देश की सभी बड़ी नदियां, सतलुज, गंगा, ब्रहमपुत्र, गोदावरी, नर्मदा, चंबल, पम्बा प्रदूषण की भयंकर मार झेल रही हैं। भारत में बढ़ते शहरीकरण की वजह से केन्द्र व राज्य सरकारों का शहरों का जल-मल निस्तारण एवं औद्योगिक ईकाईयों के कचरे युक्त पानी को साफ करने की ओर ध्यान बहुत ही ढ़ीलाढाला है। भारत में सीवरेज एवं औद्योगिक गंदे पानी को साफ करने की सोच एवं संस्कृति विकसित करने की ओर वो कसमकश नहीं है, जो यूरोप एवं एशिया के विकसित देशों में है।

हालांकि केन्द्र एवं राज्यों में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड हैं लेकिन उनके जुर्माने एवं कार्यवाही को लेकर कोई भी खास गंभीर नहीं हैं। इसके विपरीत प्रदूषण मुक्त प्रमाण-पत्र भ्रष्टाचार का नया उद्योग बनकर उभ रहा है। उच्चतम न्यायलय इससे पहले भी कई नदियों के प्रदूषण पर याचिकाएं सुन चुका है एवं संबंधित राज्यों, केन्द्र सरकार को आदेश, निर्देश, फटकार दे चुका है, परन्तु प्रदूषण है कि दिन-ब-दिन बढ़ता ही जा रहा है।

अभी यमुना की अगर बात करें तब यमुना के पानी को सीधे पीना मौत को दावत देने जैसा है। पानी शोधित करने पर भी उसमें विषैले तत्व रह रहे हैं जिससे दिल्ली में कैंसर, लीवर, गुर्दा, चर्म रोगों के बढ़ने का खतरा बढ़ रहा है। प्रदूषण से लड़ने के लिए सरकारों व नागरिकों दोनों को भारत के पुरात्तन संस्कारों को पुर्नजीवित करना होगा। भारतीय संस्कारों में प्रकृति जिसमें वनस्पति, वन्यजीव, मिट्टी, हवा पानी को पूज्य समझा जाता रहा है।

आमजन पीढ़ी दर पीढ़ी ये संस्कार देते थे कि पेड़-पौधों, जीवों, मिट्टी-हवा, पानी को नुक्सान नहीं पहुंचाया जाए। वर्तमान दौर सिर्फ पूंजी निर्माण तक सीमित रह गया है। पूंजी निर्माण की आंधी ने देश की प्राकृतिक सम्पदा मिट्टी, हवा, पानी, पहाड़, जंगल सबका मलियामेट कर दिया है। अभी भी सरकारें, स्थानीय निकाय, आम नागरिक एकजुट हों तो मर रही नदियों को बचाया जा सकता है।

देश ने विकास के बड़े प्रोजैक्ट पूरे कर लिए हैं, जिनमें मेट्रो, सड़कें, बिजली संयंत्र, हस्पताल, हवाई अड्डे आदि प्रमुख हैं, ठीक ऐसे ही अब हर गांव, शहर, महानगर में उच्च क्षमता के आधुनिक सीवरेज प्लांट स्थापित करने की ओर बढ़ा जाए। नागरिकों में पानी, मिट्टी, हवा को साफ रखने की आदत बनाने पर बल दिया जाए। औद्योगिक ईकाईयों पर निगरानी कड़ी की जाए क्योंकि पूंजीगत निर्माण कितना भी बड़ा आकार ले ले लेकिन स्वच्छता के बिना वह अभिशाप ही है।