इसमें कोई दो राय नहीं कि कैपिटल हिल पर हमला ट्रंप की सत्ता में बने रहने की जिद्द का ही परिणाम है। लेकिन अमेरिकी पुलिस जिस तरह से लोकतंत्र के मंदिर पर हमला होते देख रही थी उससे यह तो साबित हो गया कि अमेरिका वर्षों पुरानी विभाजित समाज की मानसिकता से नहीं अभी बाहर नहीं निकल सका है। पुरे घटनाक्रम के दौरान अमेरिकी पुलिस मुठठी भर दंगाईयों के सामने बेबस नजर आ रही थी। तस्वीरों में जिस तरह से पुलिस के जवानों को भागते हुए दिखाया गया है, उसे देखकर कहा ही नहीं जा सकता है कि यह वही अमेरिकी पुलिस के जवान है, जिन्होंने कुछ माह पहले ही एक अश्वेत जॉर्ज फ्लॉयड की पुलिस हिरासत में हुई मौत के बाद भड़के दंगों को नियत्रित करने के लिए प्रदर्शनकारियों को भगा-भगा कर पीटा था ।
पिछले बुधवार को दुनिया के सबसे शक्तिशाली मुल्क संयुक्त राज्य अमेरिका में सत्ता के भूखे एक सनक मिजाजी शख्स ने जिस तरह से लोकतंत्र के मुंह पर कालिख पोती है, उसे देखकर दुनिया हैरान और परेशान है। हैरानी इस लिए की लोकतंत्र और अपनी संवैधानिक संस्थाओं की सफलता पर गुमान करने वाले अमेरिका पर आज दुनिया हंस रही है। जिस लोकतंत्र पर अमेरिका हमेशा इठलाता रहा है, उसी लोकतंत्र ने उसकी भव्यता और उसकी पहचान पर ऐसा दाग मंढ दिया है, जिसे भुलाने में सदियों लग सकते हैं। जबकि परेशानी की वजह वे तमाम तरह की आशंकाएं हैं, जो कैपिटल हिल की घटना के बाद वैश्विक फलक पर उभर रही हैं। एक आशंका यह कि दुनिया का सबसे पुराना और शक्तिशाली लोकतंत्र जिस कदर औंधे मुंह गिरा है, उसकी धमक से संसार के दूसरे देशों में स्थित लोकतंत्र की चूलें हिल उठी तो लोकतांत्रिक मूल्यों का दंभ भरने वाली दुनिया का क्या होगा। सबसे बड़ा आाश्चर्य तो यह है कि ट्रंप समर्थकों ने ऐसा दुस्साहस उस वक्त किया जब अमेरिकी संसद में जो बाइडेन और कमला हैरिस के राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुने जाने की कार्रवाई चल रही थी।
अमेरिका के इतिहास में पहली बार यूएस कैपिटल में इस तरह की हिंसा एवं उपद्रव देखने को मिला है। गोलियां चली, तोड़फोड़ हुई। चार लोगों को जान गंवानी पड़ी। दर्जनों घायल हो गए। वॉशिंगटन शहर में इमरजेंसी का ऐलान करना पड़ा। हिंसा के दौरान ट्रंप समर्थकों ने रसायनों का इस्तेमाल किया। दो पाइप बम भी मिलने की बात भी कही जा रही हैं। जिस समय ये लोग कैपिटल हिल में घुसे उस समय अमेरिकी सांसद बाइडेन के आधिकारिक रूप से चुनाव में जीत की घोषणा की तैयारी कर रहे थे। टंÑप समर्थकों द्वारा अचानक संसद भवन पर धावा बोल दिये जाने से सुरक्षाकर्मियों को सीनेट के दरवाजे बंद करने पड़े। सांसदों को अपना काम बीच में ही छोड़कर जान बचाने हेतू भागना पड़ा।
ऐसा नहीं है कि यह सब अचानक और अप्रत्याशित तरीके से हो गया हो। दरअसल, पूरे घटनाक्रम की पठकथा उस वक्त से ही लिखी जाने लगी थी जिस दिन राष्ट्रपति चुनावों के नतीजे घोषित हुए थे। पहले तो ट्रंप लगातार चुनाव प्रक्रिया पर सवाल उठाते रहे । फिर चुनाव परिणामों को स्वीकार करने से इंकार कर दिया। मन चाहा परिणाम न आने कारण न्यायलयों का दरवाजा खटखटाया। लेकिन सबूतों के अभाव में अदालतों ने टंÑप की आपत्तियों को खारिज कर दिया। जब किसी भी तरह से बात बनती नजर नहीं आई तो उन्होंने अमेरिकी जनता की भावनाओं को स्वीकार करने की बजाय यह कह कर कि जीत उनसे छीनी जा रही है, अपने समर्थकों को भड़काने का काम किया। खबर तो यह भी है कि ट्रंप ने अपने समर्थकों को कैपिटल हिल में आंमत्रित कर हिंसक प्रतिक्रिया के लिए उकसाया था। अमेरिकी मीडिया की मानें तो इस बात का अनुमान पहले से ही लगाया जा चुका था कि ट्रंप सत्ता हस्तांतरण के लिए आसानी से राजी नहीं होने वाले हैं।
फिर सवाल यह है कि कैपिटल पुलिस, नेशनल गार्ड और अमेरिकी सुरक्षा एजेंसियों के विशाल नेटवर्कं को इस बात की भनक क्यों नहीं लगी कि टंÑप समर्थक लोकतंत्र के मंदिर पर चढ़ाई करने की तैयारी में जुटे हैं? अमेरिका की अति उत्साही पुलिस की सीमित व ठंडी प्रतिक्रिया पर भी सवाल उठ रहे हैं। अफसोस जनक बात यह है कि ट्रंप जिस प्रक्रिया पर सवाल उठा रहे हैं, उसी प्रक्रिया ने उन्हें साल 2016 में व्हाइट हाउस की राह दिखाई थी। उस वक्त ट्रंप पर भी आरोप लगे थे। चुनाव में रूसी सांठगांठ को लेकर संदेह प्रकट किया गया था और साल 2017 में होने वाली विरोध रैलियों में ‘ट्रंप हमारे राष्ट्रपति नहीं’ के नारे लगे थे। दुनिया को हैरान और परेशान करने वाली इस घटना के बाद अमेरिका भले ही इसे विकासशील और पिछड़े देशों की अराजक लोकतांत्रिक गतिविधियों का रूप बता रहा है। लेकिन इस कठोर सच्चाई से इंकार नहीं किया जा सकता है कि कैपिटल हिल पर हुए हमले ने अमेरिका के सदियों पुराने दोहरे चरित्र और उसके मापदंडों का पदार्फाश कर दिया है।
अब चाहे संसद की कार्रवाई वाले दिन ट्रंप द्वारा अपने समर्थकों की रैली बुलाने और उन्हें उकसाने के आरोप लग रहे हों लेकिन वास्तविकता यह है कि यह घटनाक्रम विभाजित अमेरिकी समाज की हकीकत को तो बताता ही। हालांकि घटना के कुछ समय बाद ही ट्रंप ने अनौपचारिक रूप से अपनी पराजय स्वीकार करते हुए सत्ता हस्तांतरण के लिए सहमति जता दी, लेकिन तब तक वे दुनिया के सबसे महान कहलाने वाले संयुक्त राज्य अमेरिका के इतिहास पर ऐसी कालिख पोत चुके थे जिसे साफ होने में सदियों लग सकते हैं। तुनक मिजाजी ट्रंप की सनक से प्रतिद्वद्वी राष्ट्रों को अमेरिका पर हंसने और तंज कसने का अवसर मिल गया। चीनी मीडिया ने लिखा कि अमेरिका में जो कुछ हुआ वो उसके कर्मों का ही फल है और उसके लोकतंत्र का बुलबुला फूट गया है। कुछ ने इसे अमेरिका का अमेरिका पर हमला कहा। कुछ इसे गृह यु़द्ध का आगाज भी बता रहे हैं।
सत्ता हस्तारण से पहले अमेरिकी लोकतंत्र को शर्मसार करने वाली इस घटना ने दुनिया में सुनी जाने वाली अमेरिकी आवाज को तो कमजोर किया ही है। साथ ही आने वाले राष्ट्रपति जो बाइडेन के समक्ष वे तमाम तरह की चुनौतियां पैदा कर दी है, जिससे निबटने में उन्हें खासी मशक्कत करनी पड़ सकती है। जिसमें एक सबसे बड़ी चुनौती विभाजित अमेरिकी समाज को पुन: एकजुट करना भी है। अगले 13 दिन बेहद खतरनाक हंै। सीएनएन विश्व विख्यात समाचार समूह यूएस कैपिटल में बुधवार को जो कुछ हुआ वो सिर्फ शुरूआत है और बहुत मुमकिन है कि आने वाले चार वर्षों में अमेरिकी लोकतंत्र की परतें दुनिया के सामने खुलती रहें।
-डॉ. एन.के. सोमानी
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