बहुत ही राहत भरी खबर है कि देश में तेदुंओं की आबादी में चार सालों में 60 फीसदी वृद्धि हुई है। वर्ष 2014 में इनकी आबादी 8000 थी जो वर्ष 2018 में बढ़कर 12852 हो गई है। मध्यप्रदेश, कर्नाटक व महाराष्टÑ की सरकारों ने इस मामले में प्रशंसनीय कार्य किया है। इससे पहले बाघों की संख्या में काफी अच्छा इजाफा हुआ है। शेर, बाघ व तेंदुए की आबादी में भारत का नाम पूरा दुनिया में सबसे ऊपर है। देश में 2400 शेर व 2967 बाघ हैं। नि:संदेह जंगली जीव प्रकृति की शोभा हैं, जिनसे वातावरण का संतुलन कायम रहने के साथ-साथ पर्यटन उद्योग भी प्रफु ल्लित होता है। दरअसल पशु-पक्षियों की संभाल में सुधार करने के साथ-साथ एक संस्कृति को जिंदा रखने की भी आवश्यकता है।
शेर, बाघ, तेंदुआ जैसे जानवर बहादुरी, हिम्मत जैसे गुणों के प्रतीक रहे हैं। हर मां अपने बेटे को ‘शेर’ कहकर प्यार करती है। कोई भी ‘मां’ अपने ‘बेटे’ की तुलना गीदड़ से नहीं करती। इसलिए ये जानवर हमारी चेतना का अंग हैं। जब ये जानवर भावी पीढ़ियों को देखने को मिलेंगे तो शेर जैसे शूरवीरों की उस्तुति भी सार्थक होगी। वहीं दूसरी ओर जानवर पर्यटकों के लिए भी आर्क षण का केन्द्र हैं। दु:ख की बात यह है कि वन्य जीव विभाग को अधिक अहमियत नहीं दी जाती बल्कि इसे अतिरिक्त विभाग ही समझा जाता है। वास्तव में वन्य जीव विभाग सम्पूर्ण जानकारी व विशेषज्ञता की मांग करता है। हमारे देश में बहुत से बाघ व तेंदुए जंगल से बाहर आबादी क्षेत्र में आने के कारण मारे जा रहे हैं। कई बार गांवों-शहरों के लोगों ने डर के कारण इन जानवरों को पकड़ने की बजाय मार दिया।
यह जरूरी है कि जंगल के साथ सटते गांवों-शहरों के लोगों को जंगली जानवरों से बचाव के तरीके बताने के साथ-साथ उनको मारे जाने से बचाने के लिए भी जागरूक किया जाए। वन्य जीव विभाग के अधिकारियों की आसान पहुंच इन गांव-शहरों तक होनी चाहिए ताकि किसी भी जंगली जीव के मानव आबादी में घुसने पर लोग घबराएं नहीं। जानवरों को वन्य क्षेत्र में रखने के लिए प्रयास किए जाने की आवश्यकता है। बाघ व तेंदुए के सरंक्षण के बाद अब राष्टÑीय पक्षी मोर व चिड़िया पक्षियों की विलुप्त हो रही प्रजातियों को बचाने के लिए भी सरकारी एवं गैर सरकारी प्रयास तेज करने होंगे।
अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook और Twitter पर फॉलो करें।