बढ़ते उत्सर्जन के सांथ इस समस्या पर गंभीरता से ध्यान देना होगा हालांकि देश में कुछ कदम उठाए गए हैं और अक्षय उर्जा पर ध्यान दिया जा रहा है। इसके साथ ही वाहनों से उत्सर्जन, औद्योगिक प्रदूषण, बाहरी प्रदूषण आदि रोकने के लिए भी कदम उठाए जाने चाहिए। अर्ध-शहरी क्षेत्रों और छोटे शहरों में ट्रकों तथा मेटाडोर से उत्पन्न प्रदूषण बढ़ता जा रहा है और इन पर विनियामक एजेंसियों का भी कोई नियंत्रण नहीं है। वाहनों और परिवहनों का विद्युतीकरण किए जाने की आवश्यकता है। उद्योेगों में विद्युत भट्टी लगायी जानी चाहिए।
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम द्वारा हाल ही में जारी उत्सर्जन अंतर रिपोर्ट में पाया गया है कि इस वर्ष कोरोना महमारी के कारण कार्बन डाइ आक्साइड उत्सर्जन में 7 प्रतिशत की गिरावट आने की संभावना है किंतु विभिन्न देशों की नीतियों के कारण धरती के तापमान में 3 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होने की संभावना है। रिपोर्ट में संभावना व्यक्त की गयी है कि वर्ष 2020 सबसे गर्म वर्ष होगा। इस वार्षिक रिपोर्ट में प्रत्याशित उत्सर्जन और पेरिस समझौते लक्ष्यों के अनरूप धरती के ताामपन को सीमित रखने के स्तर के बीच अंतर का आकलन किया जाता है। रिपोर्ट में पाया गया है कि जीएचजी उत्सर्जन में वर्ष 2010 से औसतन 1.4 प्रतिशत की वृद्धि हई है। जहां तक भारत का संबंध है, यहां कुल उत्सर्जन वर्ष 2019 में 37 जीटीसीओ2ई रहा है जबकि चीन में यह 14जीटीसीओई2ई और अमरीका में 6.6 जीटीसीओ2ई रहा है।
प्रति व्यक्ति उत्सर्जन के मामले में यह विश्व के सबसे बडेÞ प्रदूषक देश का लगभग सातवां हिस्सा है। एक दशक से विशेषज्ञ सलाह दे रहे हैं कि जीवाश्म र्इंधन पर निर्भरता कम की जाए और अक्षय ऊर्जा के स्रोतों का दोहन किया जाए। हालांकि भारत सहित अधिकतर देशों ने इस संबंध में कदम उठाए हैं किंतु ऐसा लगता है कि ये प्रयास पर्याप्त नहीं हैं। वर्तमान में ऊर्जा खपत के कारण 80 प्रतिशत वायु प्रदूषण और 70 प्रतिशत वैश्विक तापमान उत्सर्जन है। अमेरिकी पर्यावरण संरक्षण एजेंसी के आंकड़ों से पता चलता है कि जीवाश्म र्इंधन के कारण 75 प्रतिशत ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन होता है और इससे उत्पन्न प्रदूषण के कारण प्रति वर्ष दिल की बीमारियों, कैंसर आदि से 70 लाख लोगों की मृत्यु होती है। कार्बन डाइआक्साइड द्वारा पर्यावरण में प्रदूषण के बारे में काफी बातें की जाती हैं किंतु डीजल, जेट र्इंधन आदि के दहन से प्रदूषण के बारे में चर्चा नहीं होती है।
वस्तुत: अनुसंधानकतार्ओं का मानना है कि कार्बन डाइआक्साइड के बाद यह धरती के तापमान में वृद्धि का दूसरा सबसे बड़ा कारण है जो मीथेन से भी बड़ा कारक है। भारत और अन्य विकासशील देशों की एक बडी समस्या घर के अंदर वायु प्रदूषण है जिसके कारण प्रति वर्ष अनेक समय पूर्व मौतें होती हैं। यदि वर्तमान स्थिति जारी रहने दी गयी तो इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि यह मानव स्वास्थ्य और कल्याण के लिए विनाशक होगा। इसका समााधान अक्षय उर्जा स्रोतों विशेषकर सौर और वायु उर्जा स्रोतों पर ध्यान देना होगा। विशेषज्ञों का मानना है कि अक्षय उर्जा स्त्रोतों पर तेजी से ध्यान दिया जाना चाहिए। विकसित देशों की तुलना में भारत की स्थिति अलग है। अधिकतर महानगरों में वायु प्रदूषण के कारण झुग्गी झोंपडी बस्तियों और फुटपाथ पर रहने वाले लोग अत्यधिक प्रभावित हो रहे हैं। ये लोग प्रदूषण से अधिक प्रभावित हो रहे हैं क्योंकि ये लोग अधिक प्रदूषित वायु ले रहे हैं।
हाल की दो घटनाओं पर विशेष ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है। पहला, भारत में खतरनाक सल्फर डॉइआक्साइड के उत्सर्जन में 2019 में गिरावट आयी है। फिर भी भारत विश्व में सल्फर डॉइआक्साइड के उत्सर्जन में 21 प्रतिशत का योगदान करता है। विश्व के तीन सबसे बड़े उत्सर्जकों भारत, रूस और चीन में सल्फर डॉइआक्साइड के उत्सर्जन में गिरावट आयी है। सेन्टर फॉर रिसर्च आॅन एनर्जी एंड क्लाइमेट एयर तथा ग्रीन पीस के अनुसंधान के अनुसार सल्फर डाइआक्साइउ के उत्सर्जन में कमी का कारण अक्षय उर्जा स्रोतों पर बल देना और कोयला की कम खपत है तथापि रिपोर्ट में भारत में कोयला आधारित विद्युत संयंत्रों द्वारा समयबद्ध ढंग से स्वच्छ प्रौद्योगिकी अपनाने का विरोध करने के बारे में चिंता व्यक्त की गयी है।
सल्फर डॉइआक्साइड जहरीला वायु प्रदूषण है और इससे स्ट्रोक, दिल की बीमारियां, फेफडों के कैंसर आदि का खतरा बढ़ता है। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवतर्न मंत्रालय ने कोयला आधारित विद्युत संयंत्रों के लिए वर्ष 2015 में सल्फर डॉइआक्साइड उत्सर्जन मानदंड निर्धारित किए थे और इन संयंत्रों से कहा गया था कि दो वर्ष के भीतर सल्फर डॉइआक्साइड उत्सर्जन कम करने के लिए फ्यूल गैस डिसल्फाराइजेशन स्थापित किए जाएं। इसके लिए दिसंबर 2017 तक की समय सीमा दी गयी थी किंतु अधिकतर संयत्र इस समय सीमा के भीतर ऐसा नहीं कर पाए इसलिए उन्हें वर्ष 2022 तक का समय दिया गया जो एक शुभ समाचार नहीं है। दूसरा, मोदी सरकार ने हाल ही में भारत के कोयला क्षेत्र को कार्बन पर निर्भरता कम करने के लिए नई प्रौद्योगिकी पर 40 हजार करोड़ रूपए खर्च करने का निर्णय किया है। ओडिशा के अंगूल जिले में स्थापित इस परियोजना पर 13 हजार करोड़ रूपए की लागत आई।
बढ़ते उत्सर्जन के सांथ इस समस्या पर गंभीरता से ध्यान देना होगा हालांकि देश में कुछ कदम उठाए गए हैं और अक्षय उर्जा पर ध्यान दिया जा रहा है। इसके साथ ही वाहनों से उत्सर्जन, औद्योगिक प्रदूषण, बाहरी प्रदूषण आदि रोकने के लिए भी कदम उठाए जाने चाहिए। अर्ध-शहरी क्षेत्रों और छोटे शहरों में ट्रकों तथा मेटाडोर से उत्पन्न प्रदूषण बढ़ता जा रहा है और इन पर विनियामक एजेंसियों का भी कोई नियंत्रण नहीं है। वाहनों और परिवहनों का विद्युतीकरण किए जाने की आवश्यकता है। उद्योेगों में विद्युत भट्टी लगायी जानी चाहिए। उर्जा के कुशलता से उपयोग पर बल दिया जाना चाहिए और इसके लिए उठाए गए उपायों में एलईडी बल्बों आदि के उपयोग को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। इसके अलावा हमें विद्युत भंडारण, बिजली ताप, कोल्ड स्टोरेज और हाइड्रोजन भंडारण की भी आवश्यकता है।
तथापि 70 देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने पेरिस में घोषणा की है कि वे ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कटौती करेंगे। जलवायु परिवर्तन के बारे में दीर्घकालिक दृष्टिकोण के बारे में सुधार आया है। तथापि जलवायु परिवर्तन का प्रभाव अमेजन, आस्ट्रेलिया और अमरीका में जंगलों में आग, भारत, बंगलादेश और पूर्वी अफ्रीका में बाढ़, आर्कटिक में तापमान बढ़ना आदि के रूप में देखा जा रहा है। संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटोरेज ने विश्व के नेताओं से आग्रह किया है कि वे जलवायु आपातकाल की घोषणा करें। इसलिए प्रौद्योगिकी में बदलाव की आवश्यकता है और इसके लिए प्रौद्योगिकी में बड़े बदलावों की आवश्यकता नहीं है आवश्यकता इस बात की है कि उर्जा कुशल उपकरणों का उपयोग किया जाए तथा अक्षय उर्जा सोतों का उपयोग बढ़ाया जाए। स्वच्छ प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा दिया जाए और उनकी लागत कम की जाए। इसलिए अक्षय उर्जा स्रोतों को अपनाने से उत्सर्जन में कमी आएगी, वायु प्रदूषण पर अंकुश लगेगा और पर्यावरण तथा लोगों का जीवन बच पाएगा।
-धुर्जति मुखर्जी
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