राजनीतिक हिंसा भारतीय लोकतंत्र पर धब्बा

Process of Democracy

कोरोना काल में पश्चिम बंगाल में सबसे बड़ा त्यौहार दुर्गा पूजा भले ही फीका रहा लेकिन प्रदेश के विधानसभा चुनावों को लेकर माहौल पूरी तरह गर्मा गया है। पिछले हफ्ते पश्चिम बंगाल गए भाजपा के राष्टÑीय अध्यक्ष जेपी नड्डा पर यहां हिंसक हमला हुआ वहीं पं. बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इसे बीजेपी का खुद का प्रायोजित हमला बताया। भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व पर हमले को लेकर गृह मंत्रालय ने कलकत्ता से तीन वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को प्रति नियुक्त पर केन्द्र में बुला लिया जिस पर ममता बनर्जी ने अपने अफसरों का पक्ष लेते हुए कहा कि भाजपा अफसरों को परेशान कर रही है। अभी गृहमंत्री व भाजपा के पूर्व अध्यक्ष अमित शाह पश्चिम बंगाल दौरे पर गए हैं और उन्होंने ममता बनर्जी के एक विधायक को भाजपा ज्वाईन करवाई है, साथ ही कहा कि चुनाव आते-आते ममता दीदी अकेली रह जाएंगी। इस वक्त पं. बंगाल में भाजपा व तृणमूल कांग्रेस मानों अपने-अपने वजूद की लड़ाई लड़ने पर आमादा हो गए हैं।

राजनीति में विचारधाराएं फैलती व सिमटती रहती हैं। पं. बंगाल में कोई समय था जब वामपंथी विचारधारा ने करीब 30 वर्ष तक एकछत्र राज किया। ज्योतिबसु व बुद्धदेव भट्टाचार्य के दौर में वामपंथियों के सामने टिकने का किसी का माद्दा ही नहीं था। ममता बनर्जी ने पं. बंगाल में वामपंथ के विरुद्ध ऐसा बिगुल बजाया कि देखते ही देखते वामपंथी अपने ही घर में बचे रहने के लिए दूसरों का सहारा ढूंढ रहे हैं। अब वक्त एक बार फिर करवट ले रहा है। 2019 के लोकसभा चुनाव में पं. बंगाल में भाजपा ने कुल 42 में से 18 सीटें जीत ली हैं, जहां कि पहले उसका कोई खास आधार नहीं था। 18 सीटों व केन्द्र में सरकार बनने से भाजपा इतनी ज्यादा आक्रमक हो गई है कि वह वहां अब विधानसभा की 200 सीट जीतने का दम ठोक रही है। आए दिन भाजपा की बढ़त रोकने को लेकर पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस व भाजपा के लोग टकराए रहते हैं। अब तक दोनों ही दलों के हजारों कार्यकर्ता घायल हो चुके हैं, कुछ दर्जन लोग इस राजनीतिक हिंसा की बलि भी चढ़ गए हैं। किसी वक्त में रक्तरजिंत राजनीति का यह चलन वामपंथियों द्वारा चलाया जाता था।

पश्चिम बंगाल में अब हालांकि झंडे व झंडों के रंग बदल चुके हैं परन्तु हिंसा का तौर तरीका वामपंथी बंगाल वाला ही है। भारत एक शांत व वृहद लोकतंत्र की पहचान है लेकिन पश्चिम बंगाल में हो रही राजनीतिक हिंसा व हत्याएं इस लोकतंत्र पर काले धब्बे के जैसी हैं। ममता बनर्जी व भाजपा दोनों ही दलों को अपनी वैचारिक व राजनीतिक लड़ाई मुद्दों पर बहस कर लड़नी चाहिए। हिंसा से कभी भी विकास के लक्ष्य हासिल नहीं किए जा सकते। हिंसा की कोई विचारधारा भी नहीं होती, भले ही आज हिंसा कर रहे लोगों की यह पहचान है कि वह राजनीतिक कार्यकर्ता हैं। लेकिन हिंसा करने वाले राजनीति की आड़ में अपने स्वार्थ पूरे कर रहे हैं।

चुनाव पूर्व हो रही घटनाएं अगर यूं ही जारी रहती हैं, तब अप्रैल तक जब विधानसभा चुनाव होंगे माहौल चुनावी होने की बजाय उपद्रव वाला होगा, जिससे आमजन की सही मांगें व मुद्दे खो जाएंगे जोकि अंत में पं.बंगाल का ही नुक्सान होगा। पं. बंगाल के आम नागरिकों को भी अपना राजनीतिक माहौल गर्म विचारों से पलटकर उदार विचारों पर केन्द्रित करना चाहिए ताकि उन्हें भावी विधानसभा में अच्छे विधायक मिल सकें। तृणमूल कांग्रेस व भाजपा दोनों पर भी यह महत्वपूर्ण जिम्मेवारी है कि वह भावी विधानसभा बदमाशों, हत्यारों की बजाए सुशिक्षित, ईमानदार व कर्मठ शांतिप्रिय प्रतिनिधियों की बनाएं।

 

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