देश में किसान आंदोलन की चर्चा है, सरकार अपने बिल वापिस लेने को तैयार नहीं दिख रही वहीं किसान भी रोज अपनी रणनीति बनाकर न केवल आंदोलन को आगे बढ़ा रहे हैं वहीं भारत बंद, टोल फ्री जैसे कदम भी उठा चुके हैं। इस सबके बीच भारतीयों के लिए विचलित कर देने वाली बात है। पहली तो वर्ष 2020 की हंगर इंडेक्स सर्वे रिपोर्ट ने भारत की हालत को बेहद खराब बताया है, जोकि चिंता का विषय है। नोटबंदी, से शुरू हुई खस्ताहालत जीएसटी व कोरोना लॉकडाउन में इतनी गंभीर हो चुकी है कि भारत भुखमरी के मामले में पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश से भी पिछड़ गया है। भुखमरी से कुपोष्ण पनपता है, भारत में हर तीन में से एक बच्चा कुपोषित है।
कुपोषण से भावी पीढ़ी के दिमाग, कद-काठी का विकास बुरी तरह से प्रभावित हो रहा है।देश हालांकि खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर हो चुका है परन्तु खाद्यान्न के अलावा दूध, सब्जियों की देश में भारी कमी है। जो भोजन उपलब्ध है गरीब परिवारों के पास उसे खरीद पाने की क्षमता भी नहीं बची है। ये सब इस कारण भी बहुत कष्ट कर हो रहा है कि सरकार सामाजिक स्वास्थ्य की योजनाओं में बजट को घटा रही है या समय पर उसका भुगतान नहीं कर रही। लॉकडाउन के कारण स्कूल व आंगनबाड़ी केन्द्रों का संचालन बुरी तरह डगमगा गया है, जहां गरीब बच्चों को दोपहर का पौष्टिक भोजन मिलता था। इसके विपरीत सरकार का जोर धार्मिक आधार पर कानून बनाने या थोपने पर ज्यादा है, कभी एनआरसी या लव-जिहाद पर सरकार फिक्रमंद है। कभी गौरक्षा की आड़ में देश में हिंसा व वर्ग विभेद हो रहा है।
अब किसान आंदोलन को भी खालिस्तानी, विदेशी चंदे एवं वामपंथी विचारधारा की उपज बताया जा रहा है। किसानों की मांग सिर्फ इतनी है कि उन्हें कृषि फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य दिया जाता रहे व कांट्रेक्ट फार्मिंग को बढ़ावा न दिया जाए ताकि किसान का भी पेट भरता रहे और वह देश का भी पेट भरता रह सके। भारत में करोड़ों किसान व मजदूर कृषि कार्यों से अपना जीवन-यापन करते हैं ऐसे में कृषि का व्यापारीकरण हो जाने से सीमांत किसानों व खेत-मजदूरों में भुखमरी एवं गरीबी बढ़ेगी जबकि देश पहले ही भुखमरी व कुपोषण से जूझ रहा है। सामाजिक सुरक्षा पर देश में परिस्थितियां बेहद डरावनी हो गई हैं। सरकार को जल्द ही सामाजिक स्वास्थ्य की सुरक्षा पर सकारात्मक निर्णय लेने चाहिए। कृषि व ग्रामीण अर्थव्यवस्था का भुखमरी एवं कुपोषण से सीधा संबंध है, कृषि व ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सहारा नहीं मिलेगा तो देश में सामाजिक गरीबी बढ़ेगी, बढ़ती गरीबी भुखमरी व कुपोषण को बढ़ाएगी जिससे देश का विकास ही नहीं दुनिया में प्रभाव भी घटेगा।
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