सतगुरू जी के चरण-कमलों में बूट सजाए

Spirituality
प्रेमी महेन्द्र सिंह, श्री मुक्तसर साहिब (पंजाब) से लिखते हैं कि सन् 1982 की बात है। एक बार पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज ने अपने लिए बूट बनवाने थे। इसलिए मुझे बूट बनाने की सेवा सौंपी गई। मैंने खुशी-खुशी घर जाकर अपने सतगुरू के चरणों में सजाने के लिए बहुत ही प्यार व सिमरन करते हुए बूट बनाए। उस समय पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज मलोट दरबार में पधारे हुए थे। मैं बूट लेकर मलोट पहुंच गया। उस समय परम पिता जी तेरावास में थे। मैंने सेवादारों को सारी बात बताई व एक सत्बह्मचारी सेवादार ने बूट ले लिए व पूजनीय परम पिता जी के कमरे के पास ले गया। कुछ समय पश्चात उसने आकर बताया कि पूजनीय परम पिता जी ने बूट को बहुत ही पंसद किया है। यह सुनकर मेरी खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा। लेकिन मैं यह सोचकर उदास हो गया कि न तो मुझे प्रशाद मिला व न ही मैं खुद पूजनीय परम पिता जी के चरणों में बूट पहना सका।
यह बात मैंने किसी को नहीं बताई व अपने घर आ गया। एक दिन पूजनीय परम पिता जी ने मुझे अपने पास बुलाया व फिर से बूट बनाने के लिए कहा। मैंने पहले की तरह ही बहुत ही प्यार से पूजनीय परम पिता जी के लिए बूट बनाए। इस बार मेरी बहुत इच्छा थी कि इस बार मैं खुद पूजनीय परम पिता जी के चरणों में बूट पहनाऊंगा। मैं बूट बनाकर आश्रम में ले गया व सेवादारों को इसके बारे में बताया। उस समय पूजनीय परम पिता जी बाग में विराजमान थे। मुझे वहां बुला लिया व बूट अपने कर कमलों में लेकर पूजनीय परम पिता जी ने फरमाया, ‘‘बेटा, बूट बहुत ही अच्छे बनाए हैं।’’ मैं पूजनीय परम पिता जी से कुछ दूरी पर खड़ा था। फिर उस समय पूजनीय परम पिता जी ने एक सेवादार को बुलाकर फरमाया, ‘‘बेटा, जो इनको बनाकर लेकर आया है उसे बुलाओ, वही पहनाएगा।’’ फिर मैंने अपने सतगुरू जी के पवित्र चरण-कमलों में बहुत ही प्यार से बूट सजाए।
उस समय मेरी खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा। फिर पूजनीय परम पिता जी ने मुझे अपने पवित्र कर कमलों से दो हाथी (खिलौने)प्रेम निशानी के रूप में दिए व प्रशाद भी प्रदान किया। मैं दोनों हाथी-खिलौने लेकर घर गया तो मेरी पत्नी ने हैरान होकर पूछा, हमारे घर तो कोई छोटा बच्चा भी नहीं है, यह खिलौने किस लिए दिए हैं? इस पर मैंने कहा, सतगुरू जी ने जो दिया है वह अच्छा ही दिया है। सतगुरू जी ने हमें प्रेम निशानी बख्शी है। समय अनुसार हमारे दो बेटे पैदा हुए। तब हमारी समझ में आया कि पूजनीय परम पिता जी ने हमें दो हाथी-खिलौने क्यों दिए थे? इस तरह पूजनीय परम पिता जी ने दो बेटों की दात बख्शकर हमें खुशियों से नवाजा।

पूजनीय बेपरवाह जी ने नाम-शब्द प्रदान कर किया जीवों का उद्धार

गतांक से आगे :-
जब आश्रम बनकर तैयार हो गया तो गांव के सत्संगी डेरा सच्चा सौदा सरसा में सत्संग में आए व शाह मस्ताना जी महाराज के चरणों में अपने गांव में सत्संग करने के लिए अर्ज की। फिर सत्संग मंजूर कर दिया गया। आप जी ने यह सत्संग बहुत ही धूमधाम से दरबार में किया। इसी सत्संग में बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज ने कपड़े व अपनी खाकी पोटली में से नोट निकालकर बांटे व नामशब्द प्रदान करते हुए अनेकों रूहों का उद्धार किया। सन् 1990 में सारी साध-संगत इक्ट्ठी होकर डेरा सच्चा सौदा सरसा पहुंची। साध-संगत ने पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज के चरणों में अर्ज की कि पिता जी! दरबार में पक्के मकान बनाए जाएं। परम दयालु दातार जी ने मंजूरी दे दी।

कच्चा मकार गिराकर पक्के बनाने शुरू कर दिए गए। चार कमरे पक्के, एक रसोई व बाथरूम व टीन का एक बरांडा तैयार कर दिया। सारे कमरे, रसोई, बाथरूम व बरांडे पक्के कर दिए गए। साध-संगत का उत्साह देखकर दरबार की चारदीवारी भी पक्की कर दी गई। दरबार में एक बड़ा कमरा भी बना दिया गया। इस तरह दरबार की चिनाई का काम पूरा हो गया। दरबार के सत्ब्रह्मचारी सेवादार व साध-संगत दरबार की जमीन पर सब्जियां आदि की पैदावार ले रहे हैं। साध-संगत मिलकर हरीपुरा धाम में नामचर्चा भी करती है। सतगुरू जी की कृपा से अब दरबार दिन-दुगुनी, रात-चौगुनी तरक्की कर रहा है।

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