जंगल के पास एक गांव में रतन नाम का अनाथ लड़का रहता था। वह मेहनत-मजदूरी करके अपना पेट पालता था। उसे कहीं भी कोई गिरा-पड़ा जानवर मिलता, वह उसे उठाकर अपने घर ले जाता। इस तरह उसके पास बहुत से पशु-पक्षी इक्ट्ठे हो गए। उनके लिए उसने एक सुंदर सा बाड़ा बनवा दिया था। एक दिन रतन काम से लौट रहा था तो उसने जंगल में सरोवर के पास एक पिल्ले को कराहते देखा। रतन उसे घर ले आया। रतन ने दूध गर्म करके बोतल में डाला और बाड़े में जाकर पिल्ले को पिलाने लगा। नन्हें मेहमान को देखकर बाड़े के सभी जानवर बहुत खुश हुए। रतन को वह पिल्ला बहुत प्यारा लगने लगा। जब भी उसे समय मिलता, वह पिल्ले के साथ खेलता रहता। एक दिन रतन काम पर गया तो पिल्ला भी उसके साथ चला गया।
खूबसूरत पिल्ले को देखकर उसके मालिक ने कहा, रतन, ऐसा सुंदर पिल्ला तो मैंने कभी देखा नहीं। तुम इस पिल्ले को मुझे दे दो, बदले में जो चाहो ले लो। मालिक की बात सुनकर रतन बोला, मालिक, यह पिल्ला तो मुझे जान से भी ज्यादा प्यारा है और मेरे परिवार का हिस्सा है। इसके अलावा मैं आपको अपना कोई और जानवर दे सकता हूं। रतन की बात सुनकर उसके मालिक को बहुत गुस्सा आया। उसने उसे नौकरी से निकाल दिया। रतन पिल्ले को लेकर घर लौट रहा था कि एकाएक पिल्ला जंगल की ओर भागा। रतन भी उसके पीछे दौड़ पड़ा। पिल्ला ठीक उसी जगह रूका, जहां से रतन ने उसे उठाया था। तभी तेज रोशनी हुई और पिल्ला एक परी में बदल गया। उसने रतन की पशु सेवा को परखने के लिए उसकी यह परीक्षा ली थी। इसके बाद रतन कभी गरीब न रहा।
नरेंद्र देवांगन
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