जब अस्तित्व बचाने में नाकाम रहा सोवियत संघ

Disintegration of Soviet Union

19 नवंबर 1985 को पहली बार विश्व की दो महाशक्तियों- पूर्व सोवियत संघ और अमेरिका के बीच स्विट्जरलैंड शिखर वार्ता की शुरूआत हुई थी। अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन और सोवियत संघ के तत्कालीन राष्ट्रपति मिखाइल गोर्बाचोव के बीच यह बातचीत 6 साल के बाद हो रही थी। दोनों देश परमाणु हथियार में कटौती करना चाहते थे। अमेरिका का मानना था कि दुनिया में शांति के लिए हथियारों की तैनाती जरूरी है। पहले दिन की बैठक में सबसे पहले गोर्बाचोव ने रीगन से कहा, ”सोवियत संघ और अमेरिका दुनिया के महान देश हैं और महाशक्तियां हैं। दोनों ही तीसरा विश्वयुद्ध शुरू कर सकते हैं और चाहे तो दुनिया में शांति लाने के लिए काम कर सकते हैं।” पहले दिन की बैठक तय समय से आधा घंटा ज्यादा खिंच गई।

दूसरे दिन की बैठक में दोनों नेताओं ने एक दूसरे को अपने देश आने का न्योता दिया। दूसरे दिन रीगन ने मानवाधिकारों से जुड़े मुद्दे उठाए जिसमें रीगन ने गोर्बाचोव से कहा कि वह उन्हें नहीं बताएंगे कि किस तरह से देश चलाया जाए। शिखर वार्ता के दौरान गोर्बाचोव एक योद्धा की तरह अपनी बातों पर टिके रहे तो रीगन भी अपनी बातों पर अडिग दिखे। इस मुलाकात को सोवियत संघ के अंत की शुरूआत कहा जा सकता है। पूर्वी यूरोप में घटनाक्रम तेजी से बदलता गया। गोर्बाचोव के सुधारों और पश्चिम के नजदीक आने के साथ न सिर्फ पूर्व और पश्चिम के बीच दीवार गिरी, जर्मन एकीकरण हुआ और शीत युद्ध भी समाप्त हो गया। लेकिन इसके बोझ तले सोवियत संघ अपना अस्तित्व बचा नहीं पाया।

 

अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook और Twitter पर फॉलो करें।