सरसा (सकब)। पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां फरमाते हैं कि इन्सान को जब परमपिता परमात्मा निगाह दे देता है, तो उसे वो नजारे मिलते हैं, वो लज्जत मिलती है, जिसकी कभी कल्पना नहीं की होती। वो खुशियां मिलती हैं, जिनका लिख-बोल कर वर्णन नहीं किया जा सकता।
पूज्य गुरु जी फरमाते हैं कि निगाह तो सबको है, सिवाए उनके जिनको मालिक ने नहीं दी, लेकिन इसी निगाह से जब उस परमपिता परमात्मा, सतगुरु, मौला का दीदार होता है तो ये निगाह उस निगाह जैसी हो जाती है, यानि इन्सान से भगवान का रूप इन्सान बनता चला जाता है, लेकिन इसका मतलब ये नहीं होता कि इन्सान भगवान बन जाता है। छोटी-छोटी नदियां-नाले अगर समुंद्र में गिर जाएं तो वो समुंद्र कहलाती हैं, उसी तरह जो आत्माएं परम पिता परमात्मा के नूरी स्वरूप को सुमिरन-भक्ति से पा जाती हैं, वो मालिक, परमात्मा का ही रूप बन जाती हैं। पर वो गाती नहीं, बल्कि उनके अंदर और दीनता-नम्रता आ जाती है।
इतिहास में ऐसे उदाहरण भरे पड़े हैं, कि मालिक के प्यारे, परम पिता परमात्मा स्वरूप होते हुए भी उनके अंदर दीनता-नम्रता हद से ज्यादा थी और जितनी दीनता-नम्रता होती है, उतनी ही मालिक की खुशियां जल्दी व ज्यादा मिला करती हैं। इस लिए अपने अंदर दीनता-नम्रता धारण करो, मालिक से मालिक को मांगो, मालिक के नाम का सुमिरन किया करो, कभी भी किसी का बुरा न सोचा करो, सबका भला मांगा करो और सबका भला किया करो। पूज्य गुरु जी फरमाते हैं कि खुदी से बढ़कर इन्सान का दुश्मन कोई और नहीं होता। पानी टीलों पर नहीं रूकता बल्कि टीलों के नीचे झुकी हुई जगह पर रुकता है, फल उसी पेड़ को ज्यादा लगते हैं जो झुकना जानता है, झोली वो ही ज्यादा भरती है जो झुक जाया करती है। झुकने का मतलब किसी से डरना या किसी के आगे झुकना नहीं है। झुकने का मतलब अपने अंदर दीनता-नम्रता पैदा करना है।
सबका भला मांगने के लिए परमात्मा के आगे झोली फैलाओ और परमात्मा से सबका भला करने की ताकत मांगो। और अगर आप मालिक की औलाद का भला करोगे तो वो आपका ही नहीं बल्कि आपकी कुलों का भी भला कर देगा, क्योंकि वो अल्लाह, वाहेगुरु, राम, खुदा सुप्रीम पावर है, सबसे बड़ी शक्ति है, उसी से सारी सृष्टि चलती है। इसलिए उस परमपिता परमात्मा को पाओ, अहंकार न करो, दीनता-नम्रता धारन करो ताकि आपको मालिक की तमाम खुशियां हासिल हो सकें।
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