इस वर्ष महामारी के बावजूद पर्यावरण के संबंध में चिंताएं जस की तस बनी हुई हैं और यह प्राधिकारियों के एजेंडा में भी नहीं है। हाल की रिपोर्टों के अनुसार प्रदूषण और प्राकृतिक आपदाओं के कारण (Environmental crisis) पर्यावरण को गंभीर नुकसान पहुंचा है तथा अधिकतर देश विशेषकर भारत गंभीर समस्याओं का सामना करेगा यदि उसने सुधारात्मक नहीं उठाए। साथ ही देश की राजधानी दिल्ली में सर्दी शरू होते ही प्रदूषण का स्तर खतरनाक स्तर तक पहुंच गया है।
हाल की दो वैश्विक रिपोर्टों के अनुसार पर्यावरण के कारण भारत को गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ेगा। इसके अलावा बार बार आ रही प्राकृतिक आपदाओं और उच्च उत्सर्जन परियोजनाओं के कारण भी भारत को समस्याओं का सामना करना पड़ेगा। ग्लोबल एयर 2020 के अनुसार भारत और चीन में वायु प्रदूषण से होने वाली विश्व में कुल मौतों में आधे से अधिक मौतें होती हैं और भारत में वायु प्रदूषण मौतों का चैथा सबसे बड़ा कारण है और इसका खतरा निरंतर बढता जा रहा है।
हालांकि इस रिपोर्ट में भारत के राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम की प्रशंसा की गयी है। इस कार्यक्रम के अंतर्गत भारत के विभिन्न शहरों में वायु प्रदूषण के विभिन्न स्रोतों के विरुद्ध कार्यवाही शुरू की गयी है। तथापि रिपोर्ट में कहा गया है कि यहां पर पीएम स्तर 2.5 बना हुआ है। पीएम 2.5 के कारण न केवल मौतों की संख्या बढ रही है अपितु 2000 और 2019 के बीच इसमें भारी वृद्धि भी हुई है। इसके अलावा ओजोन से जुड़ी मौतों में भी वृद्धि हो रही है और इसमें 84 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। पराली जलाने की समस्या के बारे में गंभीर चिंता व्यक्त की जा रही है।
एक आकलन के अनुसार पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में लगभग 15 से 20 मिलियन टन पराली जलायी जाती है जिससे पीएम 2.5 उत्सर्जित होती है अैर पराली के कारण पीएम 2.5 की मात्रा इसके वार्षिक उत्सर्जन से पांच गुना अधिक है। रिपोर्ट के अनुसार हरियाणा में लगभग 25 प्रतिशत और पंजाब में 50 से 60 प्रतिशत पराली जलायी जाती है।
इस तथ्य से इंकार नहीं किया जा सकता है कि प्रदूषण करने वाले वाहनों के कारण बड़े शहरों में गंभीर समस्याएं पैदा हुई हैं और सरकारी एजेंसियों द्वारा इस संबंध में किए गए उपायों के वांछित परिणाम नहीं मिले हैं। न्यायपालिका और राष्ट्रीय हरित अधिकरण के सक्रिय हस्तक्षेप के बावजूद प्रदूषण की समस्या बढती जा रही है। कोयला आधारित विद्युत संयंत्रों के कारण पर्यावरण संकट और बढा है। दुर्भाग्यवश भारत में दो तिहाई विद्युत उत्पादन कोयला आधारित है और यहां पर कोयल आधारित विद्युत पर निर्भरता बढती जा रही है।
वर्ष 1994 के बाद कोयला खनन दोगुना होकर 500 बिलियन टन तक पहुंच गया है। कोयला खदानों का स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ता है। स्थानीय स्तर पर वायु प्रदूषण बढता है और इसके कारण इन क्षेत्रों में समय पूर्व मृत्यु दर 80 हजार से 1 लाख 15 हजार प्रति वर्ष तक पहुंच गयी है। यह सब बताता है कि विद्युत क्षेत्र में कोयला अभी भी सबसे बड़ा स्रोत है हालांकि सौर ऊर्जा सहित अक्षय ऊर्जा स्रोतों के क्षेत्र में कुछ सफलता प्राप्त हुई है तथापि इस तथ्य से इंकार नहीं किया जा सकता है कि सौर ऊर्जा उत्पादन में वृद्धि से कोयला आधारित विद्युत पर निर्भरता कम होगी। भारत में सौर ऊर्जा उत्पादन क्षमता 30 गीगावाट है और भारत में इसे ताप विद्युत ऊर्जा के स्तर तक पहुंचाने में काफी समय लगेगा।
पर्यावरण संकट का दूसरा पहलू प्राकृतिक आपदाएं हैं। संयुक्त राष्ट्र के आपदा जोखिम उपशमन कार्यालय के हाल के अध्ययन के अनुसार चीन में 577, अमरीका में 467 और भारत में 321 तथा फिलीपींस में 304 प्राकृतिक आपदाएं आयी है। इस अध्ययन में चेतावनी दी गयी है कि धरती के तापमान में वृद्धि से जलवायु संबंधी आपदाएं बढ रही हैं और पिछले दो दशकों में ऐसी आपदाओं की संख्या में 83 प्रतिशत की वृद्धि हई है।
जहां तक भारत में बाढ़ का संबंध है इस अध्ययन में पाया गया कि विश्व में आने वाली बाढ़ों में 41 प्रतिशत एशिया में आती हैं तथा चीन के बाद भारत सर्वाधिक बाढ़ प्रभावित देश है जहां पर प्रति वर्ष बाढ़ की 17 घटनाएं होती हैं। इस अवधि के दौरान भारत में 34.5 करोड़ लोग बाढ़ से प्रभावित हुए हैं। भारत में जून 2013 में आई बाढ़ सबसे गंभीर रही है जिसमें 6 हजार लोगों की मौत हुई।
दु:खद तथ्य यह है कि अधिकतर राजनेता और नीति निमार्ता पर्यावरणय समस्याओं के विनाशक प्रभावों के बारे में चिंतित नहीं हैं क्योंकि इससे गरीब और वंचित वर्ग अधिक प्रभावित होता है जिनके पास उपचार के लिए बुनियादी साधन भी नहीं हैं। ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में झुग्गी-झोंपड़ी और मलिन बस्तियों में रहने वाले लोग बाढ़ सूखा, उत्सजर्न विद्युत संयंत्रों से वायु प्रदूषण के कारण सर्वाधिक प्रभावित होते हैं।
भारत में बाढ़ और सूखा के कारण लोगों को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। हमारे यहां नीति निमार्ता अधिकतर शहर केन्द्रित है और वे गरीब तथा कम आय वर्ग के लोगों की समस्याओं को नहीं समझ पाते हैं। हमारे देश में केन्द्र और राज्य सरकारों ने प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए दीर्घकालीन योजनाओं पर गंभीरता से विचार नहीं किया है जिसके कारण न केवल मानव जीवन का नुकसान होता है अपितु प्रति वर्ष करोड़ों रूपए की संपत्ति का भी नुकसान होता है।
विकास और पर्यावरण में टकराव सर्वविदित है। विश्व भर में सतत विकास की बात की जाती है हालांकि पर्यावरणविदों का मानना है कि यह आर्थिक लाभ प्राप्त करने के लिए निहित स्वार्थी तत्वों के लिए एक आवरण मात्र है। भारत में पर्यावरण से जुड़े मामलों के प्रति सरकार का ढुलमुल रवैया पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन को अंतिम रूप देने में दिखाई देता है जहां पर समाज के सीमान्त वर्ग की पर्यावरणीय चिंताओं पर ध्यान नहीं दिया जाता है। जब तक गरीब वर्ग की चिंताओं पर ध्यान नहीं दिया जाएगा तब तक पर्यावरणी समस्याओं को समझने के लिए बनायी गयी रणनीति और इन समस्याओं से निपटने के उपायों का कोई परिणाम नहीं निकलेगा।
केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को सुदृढ़ बनाए जाने की आवश्यकता है और इसे अधिक शक्तियां दी जानी चाहिए साथ ही संपूर्ण देश में इसकी उपस्थिति सुनिश्चित की जानी चाहिए। दुर्भाग्यवश केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की स्वायत्ता की दिशा में बहुत कुछ किए जाने की आवश्यकता है। बोर्ड के पास सीमित संख्या में कर्मचारी हैं जो अधिकतर देशों में अपनी उपस्थिति दर्ज नहीं कर सकते हैं। इसके अलावा यदि हमें पर्यावरणीय समस्याओं का गंभीरता से समाधान करना है तो रणनीति में बदलाव करना होगा। सरकार को अंतराषर््ट्रीय मानकों के अनुसार अपनी रणनीति बनानी होगी और यह रणनीति गरीबों के हित में होनी चाहिए। सरकार की कथनी और करनी में अंतर नहीं होना चाहिए।
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