नोबेल पुरस्कार का सम्मान किसी भी वैज्ञानिक का सपना होता है। और अगर जीवनसाथी को भी साथ में ही यह सम्मान हासिल हो तो बात ही क्या है। ऐसा ही हुआ था आज के दिन 1947 में पहली बार। गेर्टी कोरी और उनके पति कार्ल कोरी पहले ऐसे दंपति थे, जिन्हें 23 अक्टूबर 1947 को चिकित्सा के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उन्हें ये पुरस्कार काबोर्हाइड्रेट साइकल के सिद्धांत के लिए दिया गया था। तत्कालीन चेकोस्लोवाकिया के प्राग शहर में जन्मी गेर्टी कोरी वहीं की जर्मन यूनिवर्सिटी में मेडिसिन पढ़ती थीं। वहीं उनकी मुलाकात कार्ल कोरी से हुई। 1920 में दोनों ने साथ में एमडी की पढ़ाई पूरी की। 1922 में यूरोप में द्वितीय विश्व युद्ध के आसार पनपते देख दोनों न्यूयॉर्क चले गए। यहां कार्ल कोरी ने प्राणघातक बीमारियों के स्टेट इंस्टीट्यूट में नौकरी कर ली। छह महीने बाद गेर्टी ने भी असिस्टेंट पैथोलॉजिस्ट के तौर पर उनके साथ काम करना शुरू कर दिया।
हालांकि संस्थान उनके साथ में काम करने के पक्ष में नहीं था लेकिन दोनो के बीच तालमेल कमाल का था और वे साथ काम करते रहे। 1929 में उन्होंने काबोर्हाइड्रेट साइकिल का सिद्धांत प्रस्तुत किया, इसे ‘कोरी साइकिल’ भी कहते हैं। इसमें बताया गया था कि काबोर्हाइड्रेट कैसे खुद को विघटित कर शरीर को ऊर्जा प्रदान करता है और जरूरत ना होने पर कैसे इसका संचय होता है। कार्बोहाइड्रेट की प्रक्रिया और शरीर में इसके महत्व पर इस तरह का सिद्धांत पहली बार आया था। इससे डाइबिटीज के इलाज में काफी मदद मिली। 1931 में कार्ल कोरी ने वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी से मेडिसिन विभाग के फामोर्कोलॉजी विभाग में अध्यक्ष पद संभाला और यहां भी दोनो साथ में काम करते रहे। भविष्य में दंपति के और प्रयोगों ने काबोर्हाइड्रेट साइकिल को समझने में और कामयाबी हासिल की। चालीस के दशक में उन्हें और प्रसिद्धि मिली और 1947 में उन्होंने नोबेल जीतने वाले पहले दंपति होने का गौरव हासिल किया।
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