बाजार खुले धर्म स्थान बंद, लॉकडाउन के नियम बने राजनीतिक मोहरा

Markets open, religious places closed, the rules of lockdown became a political pawn
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के बीच धार्मिक स्थानों को खोलने को लेकर जिस प्रकार की बयानबाजी हो रही है, वह हलके स्तर की और पक्षपात वाली राजनीति है। राज्यपाल ने मुख्यमंत्री को राज्य में धार्मिक स्थान खोलने संबंधी पत्र लिखा था। राजपाल ने पत्र में लिखा है कि क्या मुख्यमंत्री सेक्युलर हो गए हैं। वहीं राज्यपाल के इस पत्र पर उद्धव ने भी पलटवार किया। उन्होंने लिखा- जैसे तुरंत लॉकडाउन लगाना ठीक नहीं था, वैसे ही तुरंत ही इसे हटाना ठीक नहीं है। और हां, मैं हिंदुत्व को मानता हूं। मुझे आपसे हिंदुत्व के लिए सर्टिफिकेट नहीं चाहिए। बहुत हैरानी है कि राज्यपाल जैसे संवैधानिक पद पर बैठे नेता ने सेक्युलर शब्द का प्रयोग किया।
राज्यपाल ने मुख्यमंत्री को उनकी धार्मिक विचारधारा के अनुसार व्यवहार करने की नसीहत दी जो अपने आप में पद की मर्यादा के विपरीत है। राज्यपाल का यह तर्क उचित है कि जब राज्य में शराब के ठेके खोले जा सकते हैं तब धार्मिक स्थानों को क्यों नहीं खोला जा सकता। भले ही कोरोना महामारी का प्रकोप जारी है लेकिन देश के अन्य राज्यों की तरह आवश्यक सावधानियों में रहकर मंदिर और अन्य धार्मिक स्थान भी खोले जा सकते हैं लेकिन राज्यपाल ने जिस प्रकार सेक्युलर शब्द का प्रयोग किया, वह शब्दों के साथ खिलवाड़ जैसा है। धार्मिक निष्पक्षता शब्द उस संविधान की आत्मा है जिस संविधान की मर्यादा कायम रखने के लिए राष्ट्रपति ने उनकी नियुक्ति की है। अब यह घमासान एक बार फिर राज्यपाल के पद के राजनीतिकरण का मुद्दा बन गया है।
भले ही राजनीतिक जंग में इस शब्द का दुरुपयोग हुआ है फिर भी राज्यपाल को ऐसे शब्द का प्रयोग पार्टी नेताओं के भांति नहीं करना चाहिए था, उन्हें सावधान रहना चाहिए। दो पार्टियों के नेता तो ऐसी बयानबाजी करते देखे जाते हैं लेकिन राज्यपाल को यहां पूरा धैर्य रखने की आवश्यकता है। राज्यपाल को किसी पार्टी के नेता की तरह बयानबाजी और व्यवहार करने से बचना चाहिए। ऐसी बयानबाजी राज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच पार्टियों की लड़ाई का माहौल बनाती हैं। राज्यपाल का पद संवैधानिक और पार्टीबाजी से ऊपर है, फिर भी इस विवाद में मुख्यमंत्री को इस बात का जवाब देना है कि उनकी सरकार धार्मिक स्थानों को खोलने में बेबस क्यों है? जबकि बाजार और संस्थान खोले जा चुके हैं।

 

अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook और Twitter पर फॉलो करें।