मीडिया को निष्पक्षता का रास्ता अपनाना होगा

Media Democracy

मुंबई पुलिस ने एक हिंदी समाचार टीवी चैनल पर पैसे देकर अपनी टीआरपी बढ़ाने का आरोप लगाया है। पुलिस ने दो मराठी चैनलों के संपादकों को भी गिरफ्तार किया है, बीस लाख रुपये भी बरामद करने का दावा किया है दूसरी तरफ मामले से संबंधित एक टीवी चैनल ने पुलिस के आरोपों को इन्कार कर मानहानि का मुकदमा करने की चेतावनी दी है। मामले की वास्तविक्ता क्या है यह तो पूरी जांच के बाद ही सामने आएगा, लेकिन यहां मीडिया को अपनी साख बरकरार रखने की चुनौती को अवश्य स्वीकार करना होगा। दरअसल मामला एकतरफा भी नहीं है, मामले के राजनीतिक पहलू भी हैं।

पुलिस को भी निष्पक्ष व पारदर्शी कहना आसान नहीं। राजनीतिक हलचलों में पुलिस भी पक्षपात करती रही है और पुलिस कार्रवाई में उतार-चढ़ाव राजनीति से प्रेरित भी रहे हैं। फिर भी यदि यह देखा जाए कि आखिर पुलिस भी कुछ टीवी चैनलों के पीछे क्यों पड़ी है, तब इस चर्चा को भी अनदेखा नहीं किया जा सकता। पुलिस का भी कोई मालिक है और जब मीडिया पर भी किसी को अपना मालिक बनाने या किसी के इशारे पर चलने का संकेत मिलता है तब मीडिया भी निष्पक्ष व स्वतंत्र न होकर खुद एक पक्ष बन जाता है। जब मीडिया किसी पार्टी विशेष या विचारधारा विशेष के संपर्क में आकर गतिविधियां शुरू करता है तब विरोधी पक्ष बदले की भावना से काम करता है, इसी प्रकार सत्तापक्ष के खिलाफ जाने पर सत्तापक्ष सहित पुलिस मीडिया को सबक सिखाने के लिए तत्पर हो जाती है।

ऐसे माहौल में सिद्धातों की दुहाई देना भी अजीब लगता है। पुलिस के दामन पर दाग लगे हुए हैं, लेकिन मीडिया को भी अपना दामन बचाकर चलना होगा। राजनीति की कवरेज होनी चाहिए न कि राजनीति में शामिल हुआ जाए। राजनीति व मीडिया के बीच लक्ष्मण रेखा को समझना होगा। राजनीति में यह प्रपंच प्रचलित हो गया है कि विरोधी को दबाने के लिए पुलिस का प्रयोग किया जाता है, ऐसे माहौल में मीडिया अपनी निष्पक्षता की मर्यादा को कायम रखकर चलेगा, यह एक बड़ी चुनौती है।

 

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