केंद्रीय वातावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने पराली की समस्या का समाधान निकालने के लिए पंजाब, दिल्ली, राजस्थान और उत्तर प्रदेश सरकार के नुमाइंदों के साथ बैठक की। राज्य सरकारों को पराली जलाने से रोकने के लिए कदम उठाने के लिए कहा लेकिन ताजा हालातों को देखते हुए ऐसा लग रहा है कि एक-दो सप्ताह बाद ही किसान पराली को जलाना शुरू कर देंगे। मामले दर्ज होने के बावजूद किसान पराली को आग लगा रहे हैं। इस बार भी पंजाब के किसान संगठनों ने ऐलान किया है कि वे पराली को आग लगाने के लिए मजबूर हैं। दरअसल केंद्र और राज्य सरकारें दोनों ही अभी तक इसका कोई स्थायी समाधान नहीं निकाल सकी, ताकि किसान पराली को आग न लगाएं।
खेतों में पराली को नष्ट करने वाले यंत्रों पर सब्सिडी पिछले कई सालों से मुहैया करवाई जा रही है फिर भी यह मशीनरी खरीदना छोटे व मध्यम किसानों के बस की बात नहीं। पंजाब और हरियाणा सरकार ने पराली न जलाने वाले किसानों को सहायता राशि देने की योजना भी शुरू की है लेकिन मामला तो यह है कि किसान पराली को आग न लगाकर उसका समाधान कैसे निकालें। केंद्रीय कृषि जांच केंद्र (पूसा) ने इस बार डीकंपोजर तकनीक अपनाई है जिसमें कैप्सूल, गुड़ और बेसन का घोल तैयार कर पराली पर छिड़काव किया जाएगा। कृषि विशेषज्ञों के अनुसार इस छिड़काव से पराली नष्ट होकर खाद बन जाएगी। यदि यह तकनीक सफल होती है तब 2021 में इसे देश में बड़े स्तर पर अपनाया जाएगा। दरअसल तकनीक ही इस समस्या का समाधान है। पंजाब सरकार केंद्र से मुआवजे की मांग कर रही है फिर भी समस्या पराली की संभाल या नष्ट करने से ही खत्म होगी, इसीलिए इसका स्थायी समाधान तकनीक से ही होगा।
आज से तीन दशक पूर्व शैलरों में मिलिंग के बाद धान के छिलकों के अंबार देखे जाते थे, मुफ्त में भी छिलके को कोई नहीं उठाता था। आखिर तकनीक विकसित हुई तो अब शैलर मालिक 5-7 किलो छिलका भी खराब नहीं होने देते और इसे बेचकर कमाई कर रहे हैं। ऐसा कुछ ही पराली के लिए करना चाहिए। मामला दर्ज करना किसी समस्या का समाधान नहीं है। दिल्ली सहित पूरे देश के लोगों के स्वास्थ्य का मामला महत्वपूर्ण है। किसानों के साथ टकराव रोकने के लिए इस समस्या का समाधान निकाले जाने पर ध्यान देना चाहिए।
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