सरसा। पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां फरमाते हैं कि संत जीवों को समझाते हैं कि इन्सान उस मालिक से बिछुड़ कर आया है और बिछुड़े हुए को सदियां बीत चुकी हैं। अब मालिक इन्सान को वापिस बुला रहा है कि तूं निजघर, सतलोक, सचखंड, अनामी में वापिस आ। इस मृतलोक में और अगले दोनों जहानों की बेइंतहा खुशियां ले, क्योंकि तुझे सुनहरी अवसर मिला है। मालिक की यही आवाज लोगों तक पहुंचाने के लिए संत, पीर-फकीर सत्संग लगाते हैं। जो जीव संतों की बातों को सुनकर अमल कर लेते हैं वो दोनों जहानों की खुशियों के हकदार बन जाते हैं।
आप जी फरमाते हैं कि संत अपनी कोई बात नहीं सुनाते बल्कि वो उस मालिक का संदेश देते हैं। सतगुरु, मालिक संतों को जो अनुभव करवाते हैं और दुनिया में रहकर उन्हें जो कुछ भी महसूस होता है, संत उसी की बात सुनाते हैं। पूज्य गुरु जी फरमाते हैं कि संत परमार्थ के लिए दुनिया में आते हैं। वो कभी भी अपने स्वार्थ, खुशी के लिए कोई अलग से कार्य नहीं करते। जिस तरह पेड़-पौधे अपने फल खुद नहीं खाते, वो दूसरों के लिए फल लगाते हैं। सरोवर, झील, समुद्र अपने लिए पानी इकट्टा नहीं करते, वो परहित के लिए होता है। इन सबसे बढ़कर संत, पीर-फकीर परहित के लिए आते हैं क्योंकि पानी पीने से प्यास बुझती है, फल खाने से भूख कुछ देर के लिए शांत हो सकती है, लेकिन संत राम-नाम का ऐसा फल चखाते हैं, अल्लाह, वाहेगुरु, राम के नाम का रस पिलाते हैं जिससे जन्मों-जन्मों की भूख मिट जाती है। इन्सान फूल की तरह खिल जाता है, खुशियों से मालामाल, लबरेज हो जाता है।
संत सभी का भला करने के लिए आते हैं। वो किसी का बुरा करना तो दूर है वो ऐसा सोचते भी नहीं। संतों को कोई बुरा बोले तो भी संत उसके लिए मालिक से सद्बुद्धि मांगते हैं। आप जी फरमाते हैं कि संत ऐसी शिक्षा देते हैं जिसको कोई पुर्णत: ग्रहण कर ले, वो न तो यहां दुखी रहता है और न ही अगले जहान में दुखी होता है। हमेशा खुशियों से मालामाल रहता है। लेकिन दु:ख की बात यही है कि लोग संतों के वचन पूर्णत: नहीं मानते। केवल उतने ही वचन मानते हैं जिनको मानने में ज्यादा जोर न लगाना पड़े। फिर जहां थोड़ा सा पसीना आने लगता है, वहां कहता है कि सारे वचन मानने का मैंने ठेका थोड़े ही ले रखा है। फिर मालिक भी सारी खुशियां देने का ठेका नहीं लेता।
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