यह शाश्वत है -जीवन है तो मृत्यु भी तय है, लेकिन निरोगी काया और बेमिसाल कर्मयोग के चलते कोई हमें यकायक अलविदा कह जाए तो दिल-ओ-दिमाग यकीन नहीं करता है। यूँ तो देश की पहली ह्रदय रोग विशेषज्ञ डॉ. सिवारामाकृष्णा अय्यर पद्मावती ने 103 वर्ष का आनंदित जीवन जिया है। वह कितनी फिट थीं, इसका अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है, 95 वर्ष की उम्र तक वह नियमित रुप से स्वीमिंग भी करती थीं, लेकिन कोरोना वायरस ने उन्हें भी अपने आगोश में ले लिया और हिंदुस्तान से यह बेशकीमती हीरा हमेशा-हमेशा के लिए छीन लिया।
पदमभूषण और पदमविभूषण से सम्मानित एवं बर्मा में जन्मीं डॉ. पद्मावती की आयरन लेडी ऑफ़ इंडिया एवं पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी भी उनकी मुरीद रहीं हैं। जब एक पत्रकार ने मदर ऑफ़ हार्ट डॉ. पद्मावती से सवाल किया, आपकी लम्बी उम्र का राज जानने का मन करता है। इस पर वह हंसते हुए बोलीं, कोई खास राज नहीं है। अनुशासित जीवन जीती हूँ। खुश रहती हूँ। अपने काम में खुद को व्यस्त रखती हूँ। यदि कभी रिलैक्स करना है तो कर्नाटक संगीत सुनती हूँ। मदर ऑफ़ हार्ट की माँ का देहावसान 105 की उम्र में हुआ था। डॉ. पद्मावती बताती थीं, उनकी माँ कभी किसी को लम्बी उम्र का आशीर्वाद नहीं देतीं थीं। वह हमेशा यह कहती थीं- सदा स्वस्थ रहो। यदि सेहतमंद रहोगे तो उम्र अपने आप लम्बी होगी। भागम-भाग की जिंदगी जी रहे लोगों के लिए यह किसी अनमोल टिप्स से कम नहीं है। यह भी किसी आश्चर्य से कम नहीं था, जीवन की सेंचुरी लगाने के बाद भी वह काफी सक्रिय थीं।
प्रशासनिक कार्यों के साथ मरीज देखती थीं। लेख और किताबें लिखती थीं। शोधपत्र पढ़ती थीं। लोगों की मेल के जवाब देती थीं। योग करती थीं। जबर्दस्त बिल पॉवर के चलते मेडिकल सेमिनारों में हिस्सा लेती थीं। विश्व हृदय दिवस और मेडिकल कॉन्फ्रेंसों में उनका लेक्चर सुनकर देश के नामी-गिरामी डॉक्टर्स खुद को धन्य समझते थे। हिंदुस्तान की संस्कृति, हवा और माटी की खुशबू में वह पूरी तरह रच-बस गई थीं। पदमश्री/पदमविभूषण/ देश के मशहूर ह्रदय रोग विशषेज्ञ/ फोर्टिस एस्कॉर्ट्स हार्ट इंस्टीटयूट के चेयरमैन डॉ. अशोक सेठ ने वतन वापसी डॉ. पद्मावती की सलाह पर ही की। टाइम्स ऑफ़ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार डॉ. पद्मावती 12-12 घण्टे तक काम करती थीं। काम के प्रति इसी जोश और जुनून ने उन्हें मदर ऑफ़ कार्डियोलॉजी ऑफ़ इंडिया के नाम से मशहूर कर दिया। दिल्ली हेल्थ एंड लंग्स इंस्टीटयूट के चेयरमैन डॉ. केके शेट्ठी सच कहते हैं, वह एक रोल मॉडल थीं।
मशहूर बैरिस्टर की बेटी मशहूर डॉक्टर : भारतीय चिकित्सा क्षेत्र में अपने नए-नए शोध, नयी-नयी उपलब्धियों से नया इतिहास लिखने वाली डॉ. पद्मावती का जन्म 20 जून, 1917 को रंगून में हुआ। इनके पिता वहाँ मशहूर बैरिस्टर थे लेकिन पदमावती का सपना एक डॉक्टर बनने का था। डॉ. पद्मावती शुरू से ही प्रतिभाशाली और पढ़ाई में होशियार थीं, इसीलिए अपनी पढ़ाई में आगे बढ़ते हुए उन्होंने रंगून विश्वविद्यालय से एमबीबीएस कर लिया। दूसरे विश्व युद्द के दौरान वह तो सन 1942 में अपनी माँ दो भाई और दो बहनों के साथ भारत आ गईं लेकिन यह सब इतनी अफरातफरी में हुआ कि पद्मावती के पिता और एक भाई वहीं रह गए।
भारत आगमन के चार बरस तक पद्मावती को यह पता नहीं था कि उनके पिता और भाई कहाँ हैं, जीवित भी हैं या नहीं, लेकिन बाद में उनका पता लगा और वह भारत आ गए। यहाँ आकर उनके पिता ने कोयंबटूर में वकालत भी की। डॉ.पद्मावती की एक और बहन एस. जानकी भी डॉक्टर थीं। मदर ऑफ़ हार्ट के माता पिता खुले और आधुनिक विचारों वाले व्यक्ति थे। कहती थीं, मैंने एक दिन डरते-डरते अपने पिता से तैराकी सीखने की इच्छा व्यक्त की तो उन्होंने जरा भी ना-नुकुर किए बिना, खुशी-खुशी मुझे तैराकी सीखने की अनुमति दे दी वरना उस दौर में दक्षिण भारतीय लड़की का स्वीमिंग सीखना तो दूर, स्वीमिंग के बारे में सोचना भी संभव नहीं था।
दूसरी ओर डॉ. पद्मावती ने भी मेडिकल स्टडी को भी अपने से दूर नहीं किया। पद्मावती एमबीबीएस तो हो गईं थीं लेकिन उन्हें इससे संतुष्टि नहीं थी, इसलिए वह इसी क्षेत्र में आगे की पढ़ाई के लिए 1949 में लंदन और एडिनबरा चली गईं जहां से पद्मावती ने एफआरसीपी की डिग्री हासिल की। साथ ही वहाँ नेशनल हार्ट हॉस्पिटल में काम भी किया। यहीं से उनके मन में दिल के रोगों के प्रति रुझान और बढ़ गया, उसके बाद कार्डियोलॉजी में और भी दक्षता प्राप्त करने के लिए उन्होंने अमेरिका के जॉन्स हॉपकिंस और हार्वर्ड में फेलोशिप के लिए आवेदन किया और वह 1952 में अमेरिका चली गईं, जहां उन्हें उस समय के विश्व विख्यात हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ पॉल डुडले के साथ काम करने का मौका मिला। भारत की प्रथम महिला हृदय रोग विशेषज्ञ बनकर जब वह दिल्ली पहुंची तो उनके नाम की चर्चा धीरे-धीरे सभी ओर होने लगी थी।
बेशुमार उपलब्धियां ही उपलब्धियां झोली में: भारत की प्रथम और तत्कालीन स्वास्थ मंत्री राजकुमारी अमृत कौर को भी जब उनकी योग्यता के बारे में पता लगा तो उन्होंने डॉ. पद्मावती को अपने यहाँ बुलाया। डॉ. पद्मावती से मिलने पर अमृत कौर काफी प्रभावित हुईं और उन्होंने डॉ. पद्मावती को शुरू में दिल्ली के लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज में लेक्चरर बनने का प्रस्ताव दे डाला। उनका प्रस्ताव मानकर सन 1953 से डॉ. पद्मावती ने लेडी हार्डिंग कॉलेज से लेक्चरर के रूप में अपना करियर शुरू किया। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। जल्द ही वह इसी मेडिकल कॉलेज में प्रोफेसर बन गईं। लेडी हार्डिंग में पद्मावती ने जहां उत्तर भारत की पहली कार्डियोलॉजी पैथ लैब खोली वहाँ 1954 में पहले कार्डियोलॉजी क्लीनिक की स्थापना भी कर दी।
यहाँ यह भी दिलचस्प है कि महिलाओं का अस्पताल होने के बावजूद पद्मावती ने अपने प्रयासों से वहाँ पुरुषों को भी अलग से देखने की व्यवस्था करा दी, जिससे पुरुष रोगी भी इस सुविधा का लाभ उठा सकें। अपने इन दो-तीन प्रयासों की सफलता से पदमावती रोगियों में लोकप्रिय होने लगीं लेकिन डॉ. पद्मावती का नाम एकदम सुर्खियों में तब आया जब 1966 में अपने प्रयासों से दिल्ली में ‘वर्ल्ड कॉंग्रेस ऑफ़ कार्डियोलॉजी’ का आयोजन कराने में सफलता प्राप्त कर ली। श्रीमती इंदिरा गांधी भी डॉ. पद्मावती के कार्यों से इतना प्रभावित हुईं कि 1967 में एस पद्मावती को पद्मभूषण से सम्मानित किया। साथ ही, इसी वर्ष इन्हें मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज अस्पताल में निदेशक भी बना दिया। बाद में वह जीबी पंत अस्पताल में कंसलटेंट कार्डियोलॉजी के साथ वहाँ की भी निदेशक बन गईं।
तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी पद्मावती को कितना पसंद करती थीं उसकी मिसाल इस बात से भी मिलती है कि उनके इस अस्पताल का उद्घाटन इंदिरा गांधी ने ही किया था। जीबी पंत अस्पताल में रहकर डॉ. पद्मावती ने इतने बड़े-बड़े कार्य किए कि उन्हें आज तक नहीं भुलाया जा सका है, इन कार्यों में एक बड़ा काम यह था कि पंत अस्पताल में पद्मावती ने अपने प्रयासों से एम्स से भी पहले 1971 में उत्तर भारत का पहला सीसीयू बनवा दिया। साथ ही दिल के रोगियों के लिए 30 बिस्तर का पहला वातानुकूलित वार्ड भी वहाँ बनवा दिया। मेडिकल के विद्यार्थी जीबी पंत अस्पताल में ही कार्डियोलॉजी में एमडी कर सकें, इसके लिए पद्मावती ने वहाँ एमडी का पाठ्यक्रम भी शुरू कराया। डॉ. पद्मावती ने वहाँ रियूमैटिक बुखार को लेकर भी शोध करके इस रोग के उपचार तलाशे।
25 लाख के कर्ज से शुरू किया था हार्ट इंस्टीट्यूट: इंग्लैंड के नेशनल हार्ट हॉस्पिटल में काम करते हुए ही डॉ. पद्मावती के मन में यह बात कहीं घर कर गई थी कि अपने देश में वह इसी की तर्ज पर अपना एक ऐसा अस्पताल बनाएँगी इसलिए जब वह 1978 में अपनी सरकारी नौकरी से रिटायर हुईं तो उन्होंने अपने ‘ब्रेन चाइल्ड’ के लिए काम शुरू कर दिया। पहले उन्होंने ‘ऑल इंडिया हार्ट फाउंडेशन’ की स्थापना की, फिर अस्पताल बनाने की योजना पर काम शुरू किया। डॉ. एस पद्मावती ने अपना पूरा जीवन सेवा में लगाया, उन्होंने शादी नहीं की. उन्होंने इतनी सफलता और लोकप्रियता पाने के बाद विवाह क्यों नहीं किया, यह तो कभी नहीं बताया लेकिन वह इतना जरूर कहती थीं कि लड़कियों की शादी समय रहते कर देनी चाहिए। मदर ऑफ़ हार्ट डॉ. पद्मावती की जन्म भूमि बर्मा और कर्म भूमि भारत रही, लेकिन देश के करोड़ों-करोड़ो देश के बाशिंदों की दिली चाह है, मदर ऑफ़ कार्डियोलॉजी ऑफ़ इंडिया भारत में ही जन्म लें। अलविदा डॉ. पद्मावती।
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