बुरे का साथ निभाते समय आपको उचित सावधानी बरतनी होगी’ यह पुरानी कहावत मोदी के नेतृत्व वाली राजग सरकार को परेशान कर रही है क्योंकि वह तीन विवादास्पद कृषि सुधार विधेयकों के राजनीतिक परिणामों से जूझ रही हे। इन विवादास्पद कृषि सुधार विधेयकों को लेकर भाजपा की सबसे पुराने सहयोगी शिरोमणि अकाली दल की मंत्री ने मंत्रिमंडल् से त्यागपत्र दे दिया है।
भारत के अनाज के कटोरे पंजाब और हरियाणा के किसानों ने अपने आंदोलन को उग्र कर दिया है। वे राजमार्गों पर बाधा पैदा कर रहे हैं और किसान आत्महत्या कर रहे हैं। इससे विपक्ष को भाजपा सरकार को किसान विरोधी कहने का एक मौका मिला है तथा राजग में भी दरार देखने को मिल रही है। मोदी सरकार की समस्याएं बढ़ती जा रही हैं हालांकि प्रधानमंत्री ने कहा है कि यह ऐतिहासिक कृषि सुधार किसानों को सुरक्षा कवच प्रदान करेगा और उन्हें बंधन से मुक्त करेगा। शिरोमणि अकाली दल की मंत्री का मंत्रिमंडल से त्यागपत्र से मोदी सरकार भौंचक्की रह गयी। राजीतिक दृष्टि से इससे मोदी सरकार को कोई परेशानी नहीं होगी किंतु यह बताता है कि भाजपा के अपने सहयोगियों की अगली पीढी के नेतृत्व के साथ सहानुभूतिपूर्ण संबंध नहीं है और पंजाब मे शिरोमणि अकाली दल का प्रभाव कम हो रहा है।
भाजपा नेता निजी तौर पर कहते हैं कि जूनियर बादल ढीठ हैं और वे तत्काल परिणाम चाहते हैं और उन्हें अपने पिता जो पांच बार पंजाब के मुख्यमंत्री रह चुके हैं उनसे सबक लेना चाहिए। वे अपने शब्दों के पक्के थे और उन्होंने 1996 से भाजपा के साथ अपने गठबंधन को हर भले-बुरे वक्त में बनाए रखा। सौ वर्ष पुरानी शिरोमणि अकाली दल के लोक सभा में केवल दो और राज्य सभा में तीन सदस्य हैं तथा उसकी केन्द्र में कोई विशेष उपलब्धि नहीं है तथा पंजाब में भी उसका प्रभाव कम हो रहा है। 2017 के विधान सभा चुनावों में उसका सबसे खराब प्रदर्शन रहा जहां पर वह 15 सीट ही जीत पाई जबकि उसने 94 सीटों पर अपने उम्मीदवार खडे किए थे। दूसरी ओर भाजपा ने 23 उम्मीदवार खड़े किए थे और उसके भी केवल तीन उम्मीदवार जीत पाए थे।
भाजपा और शिरोमणि अकाली दल के संबंध तब खराब होने लगे जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने यह मत प्रकट किया कि सिख हिन्दू धर्म के अंग थे जिसके चलते अकाल तख्त के मुख्य जत्थेदार ने संघ पर प्रतिबंध लगाने की मांग की थी। राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ ने इसके प्रतिकार में मालवा क्षेत्र में अपना प्रभाव बढाने पर ध्यान दिया जहां पर राज्य विधान सभा की 117 सीटो में से 69 सीटें हैं जिसके चलते दोनों सहयोगियों के बीच पारस्परिक विश्वास कम होता गया। भगवा संघ इस बात से बिल्कुल चिंतित नहीं हैं कि अकाली मंत्री के त्यागपत्र से विपक्ष को आगामी बिहार विधानसभा चुनावों में भाजपा के विरुद्ध शक्तियों को एकजुट करने का एक और औजार मिल जाएगा कि भाजपा का रवैया तानाशाहपूर्ण है, वह सहयोगी दलों का सम्माान नहीं करती है और मनमर्जी से कानून पास करवाकर राज्यों के अधिकार छीन रही है।
यदि भाजपा पर दबाव डाला गया तो वह पंजाब में अकालियों के बिना भी चुनाव लड सकती है। पहले से इस बात की खबरें मिल रही है कि वह शिरोमणि अकाली दल से अलग हुए राज्य सभा सांसद ढींडसा के गुट के साथ मेलजोल बढा रही है। ढींडसा को मोदी सरकार ने पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित भी किया। पंजाब में अगले 18 महीने में विधान सभा चुनाव होने हैं । मोदी मंत्रिमंडल से अकाली मंत्री का त्यागपत्र शिरोमणि अकाली दल के लिए राजनीतिक दृष्टि से आवश्यक था। पार्टी को किसानों के पक्ष में खडा होना पडा क्योंकि वह किसानों को नाराज नहीं कर सकती क्योंकि पंजाब में किसान उसका प्रमुख वोट बैंक है। शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष बादल के अनुसार प्रत्येक अकाली किसान है और प्रत्येक किसान अकाली। केवल 15 प्रतिशत सीट प्राप्त कर शिरोमणि अकाली दल अपने मुख्य वोट बैंक से अलग- थलग नहीं हो सकता है क्योंकि यह पार्टी के लिए अस्तित्व का प्रश्न बन चुका है।
वस्तुत: किसानों का आंदोलन अकालियों के लिए एक अच्छे अवसर के रूप में आया और उन्हें आशा की एक नई किरण दिखी। अकाली भाजपा शासन के दौरान 2015 की घटना के कारण उनके विरुद्ध जनता का गुस्सा कम करने में भी मदद मिलेगी। इसके अलावा अकाली दल के केन्द्र में भाजपा के साथ गठबंधन में भी अडचनें आने लगी थी क्योंकि हाल के समय में अनेक मुद्दों पर अकाली दल और भाजपा के बीच मतभेद सामने आने लगे थे। बिहार में राजग के सहयोगी जनता दल यू की तरह पंजाब में शिरोमणि अकाली दल ने नागरिकता संशोधन कानून के विरुद्ध प्रस्ताव को समर्थन दिया। इसके अलावा भाजपा के साथ मतभेद के चलते उसने दिल्ली विधान सभा चुनाव नहीं लड़ा। अभी कुछ दिन पूर्व बादल जूनियर ने जम्मू कश्मीर संघ राज्य क्षेत्र के नए भाषा विधेयक में पंजाबी को शामिल न करने पर आपत्ति व्यक्त की। यह अलग बात है कि एक माह पूर्व अकाली दल इन तीन विवादास्पद विधेयकों कें संबध्ां में लाए गए अध्यादेशों का समर्थन कर रहा था।
पिछले माह बादल जूनियर ने केन्द्रीय कृषि मंत्री तोमर का एक पत्र जारी किया जिसमें कहा गया था कि न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खाद्यान्नोंं की खरीद की परंपरा में कोई बदलाव नहीं आएगा और पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिन्दर सिंह पर पंजाब के किसानों को गुमराह करने का आरोप लगाया था। किंतु अब बादल और अमरिन्दर इन अध्यादेशों के विरुद्ध एक ही भाषा में बात कर रहे हैं। आर्थिक दृष्टि से भाजपा के समक्ष किसानों को शांत करने की एक कठिन चुनौती है। देश में 70 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या अपनी आजीविका के लिए खेती पर निर्भर है और यह एक महत्वपूर्ण वोट बैंक है। किसान पहले ही कोरोना महामारी के प्रभावों से जूझ रहे हैं। इससे भाजपा का शहरी वोट बैंक प्रभावित हो सकता है जिसमें कमीशन एजेंट भी शामिल हैं।
ये तीन विधेयक किसान, उत्पाद, व्यापार, वाणिज्य संवर्धन और सुविधा विधेयक, 2020, किसान सशक्तीकरण और संरक्षण विधयेक, 2020 और आवश्यक वस्तु संशोधन विधेयक, 2020 है और इन विधेयकों को लेकर किसान व्यापक स्तर पर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। उन्हें आशंका है कि अब उन्हें न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं मिलेगा। इन विधेयकों के संबंध में सरकार के कदमों का विरोध ऐसे राज्यों से शुरू हुआ जो कृषि प्रधान है और जो देश की खाद्यान्न सुरक्षा में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। किसानों को आशंका है कि अब उन्हें न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं मिलेगा और कमीशन एजेंटों को आशंका है कि अब उनका कमीशन मारा जाएगा।
देश में कहीं भी बेहतर मूल्य पर अपने उत्पादों को बेचने की सुविधा दी है, आपूर्ति श्रृंखला का आधुनिकीकरण किया है और इसमें बडे कृषि व्यवसाइयों के प्रवेश की अनुमति दी है जो सीधे किसानों से संपर्क कर सकते हैं। किसानों को बडा बाजार उपलब्ध कराकर उनकी आय बढा सकते हैं और सीधे बाजारों तक उनकी पहुंच सुनिश्चित कर सकते हैं। आलोचकों का मानना है कि इन विधेयकों के माध्यम से किसानों को खुले बाजार में अपने उत्पाद बेचने की अनुमति दी गयी है जिससे देश की सार्वजनिक खरीद प्रणाली समाप्त होगी और निजी कंपनियों द्वारा किसानों का शोषण किया जाएगा और इससे किसान, जो मुख्य रूप से जाट हैं और कमीशन एजेंट, जो मुख्यतया शहरी हिन्दू हैं तथा भूमिहीन श्रमिक प्रभावित होंगे और भुगतान की अनिश्चितता बनी रहेगी।
आलोचक मध्य प्रदेश के छोटे किसानों का उदाहरण देते हैं जिन्हें अपने उत्पादों के लिए खरीदार नहीं मिलता है या उन्हें बडी मात्रा में खाद्यान्न लाने के लिए कहा जाता है। मंडियों का प्रभाव समाप्त होने से किसानों को आशंका है कि इस बात को कौन सुनिश्चित करेगा कि उन्हें अपने उत्पादों का न्यूनतम समर्थन मूल्य मिलेगा। इसके चलते किसानों को गैर-पंजीकृत व्यापारियों के पास जाना पडेगा। मंडियों में खरीद का रिकार्ड रखा जाता था किंतु अपंजीकृत व्यपारियों के पास इसका रिकार्ड नहीं रखा जाएगा जिससे किसानों के साथ धोखाधडी हो सकती है।
किंतु कृषि सुधार समर्थक विशेषज्ञों का कहना है कि इन विधेयकों से ठेके पर खेती को बढावा मिलेगा जैसा कि अनेक राज्य कर भी रहे हैं क्योंकि इसमें किसानों और बाजारों के बीच निजी क्षेत्र की सक्रिय भागीदारी से लिंकेज का तंत्र उपलब्ध कराया गया है। 19 राज्यों ने पहले ही ऐसे कानून बनाने के लिए कदम उठा दिए हैं जिनके अंतर्गत निजी मार्केट, यार्ड और सीधे खरीद और बिक्री की अनुमति दी जाएगी। विपक्ष सरकार को घेरना चाहती है किंतु आशा की जाती है कि कृषि सुधार से भारत विश्व का अनाज का कटोरा बनेगा और लाइसेंस राज तथा भ्रष्टाचार को समाप्त करेगा। हमें संकीर्ण राजनेताओं को अपने नए प्रभाव क्षेत्र बनाने की अनुमति नहीं देनी चाहिए और राजनेताओं को छोटी-छोटी बातों पर झगडने से परहेज करना चाहिए।
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