बाल कविता : नये युग का बालक

घिसे-पिटे परियों के किस्से नहीं सुनूँगा,
खुली आँख से झूठे सपने नहीं बुनूँगा।

मुझे पता चंदा की धरती पथरीली है,
इसलिए धब्बों की छाया भी नीली है।

चरखा कात रही है नानी मत बतलाओ,
पढ़े-लिखे बच्चों को ऐसे मत झुठलाओ।

इन्द्रधनुष के रंग इन्द्र ने नहीं बनाएं,
पृथ्वी का है बोझ न कोई बैल उठाए।

मुझे पता है बादल कब जल बरसाते हैं,
मुझे पता है कैसे पर्वत हिल जाते हैं।

मुझे सुनाओं बातें जग की सीधी-सच्ची,
नहीं रही है अक्ल हमारी इतनी कच्ची।

-माधव कौशिक