है जिन्दगी रेगिस्तान की माफिक,
मृगतृष्णा-सी सारे वादें हैं।
सच्चे रिश्ते हैं क्षण-भंगुर,
सबकुछ यहां छलावा है।।…
मुखौटे के पीछे आदम,
सच तो जैसे इक सपना है।
अजनबी-से चेहरे सारे,
कौन यहां पर अपना है?…
कठपुतली के मानिंद हैं सब,
किसकी चलती मर्जी यहां?…
अब किस पर मैं यकीं करू,
हर रिश्तें हैं फर्जी यहां।।
मुट्ठी में बंद रेत से रिश्ते,
ये तो फिसलते जाते हैं।…
पकड़ो इनको कसकर चाहे,
ये छूटते ही जाते हैं।।
वीरान-सी अब हुई जिन्दगी,
सोचा कहूं अलविदा सबको।
जार-बेजार मेरा दिल रोता,
अपना अब कहूँ किसको?…
कोई कहता है ‘यकीं करो’ ,
कहता कोई ‘तुम थामो हाथ’ ।
चाहे कितना भी हो मुश्किल,
दूंगा हरपल मैं तुम्हारा साथ।।…
छोड़ दो मेरे हाल पर मुझको,
न चाहूं हमदर्दी कोई।
सब्जबाग न दिखाओ मुझको,
न चाहूँ सांत्वना कोई।।…
तो क्या हुआ जो मैं टूटी,
ठोकर खाया हर पल बिखरी।
कर लो तुम भी थोड़ी आजमाइश,
पर अब फिर से मैं न टुटूंगी।।…
अंतर्मन कहता तुम रुकना नहीं,
बढ़ते जाना पर थकना नहीं।
चाहे गिरना पर तुम उठना,
मंजिल को अपने है पाना।।…
कभी तो होगा निशा का अंत,
कभी तो रौशनी आएगी।
जीवन-पटल पर मेरे इकदिन,
सूरज की लालिमा छाएगी।।…
संघर्ष के राह में जो मिला,
करो स्वीकार तुम थमो नहीं ।
जीवन-पथ पर जो बढ़ा चला,
है अडिग और सफल वही।।…
– मोनिका राज, बिहार
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