देश भर में केंद्र सरकार द्वारा जारी कृषि अध्यादेशों का विरोध हो रहा है। केंद्र सरकार अपनी बात पर अड़ी रही और अध्यादेशों को कानून बनाने के लिए बिल सदन में पेश कर दिए हैं। बिल पास होते हैं या नहीं, यह मामला फिलहाल वोटिंग के साथ भी जुड़ा हुआ है क्योंकि राज्य सभा में एनडीए के पास बहुमत नहीं है। देश भर में विरोध-प्रदर्शन होने के बावजूद तीनों अध्यादेश पर सरकार की मंशा ने यह संकेत दे दिए हैं कि कृषि संबंधी दो बिल देश की राजनीति, विशेष रूप से राज्यों की राजनीति में नए समीकरण पैदा कर सकते हैं। पंजाब में शिरोमणी अकाली दल और भाजपा के गठबंधन पर गहरा प्रभाव पड़ने की संभावनाएं हैं। क्योंकि अकाली दल का मूल आधार किसान वर्ग ही रहा है।
इससे पहले शिरोमणी अकाली दल अध्यादेशों को किसान हितैषी और विरोधियों के प्रचार को बेबुनियाद करार देता रहा है लेकिन जैसे ही किसानों का विरोध आंदोलन में बदल गया तब पार्टी ने अध्यादेशों के समर्थन में अपनी प्रचार मुहिम को धीमा कर दिया। संसद में भी अकाली दल ने दबी आवाज में केंद्र सरकार को किसानों की शंकाओं को दूर करने की विनती की। फिर दबाव बढ़ने पर अकाली दल ने केंद्र सरकार को अध्यादेश टालने की भी विनती कर दी। अकाली दल की विनतियों के बावजूद केंद्र सरकार ने बिल पेश कर दिए। दूसरी तरफ अकाली दल की कोर कमेटी घोषणा कर चुकी है कि पार्टी किसानों के लिए कोई भी कुर्बानी देने के लिए तैयार है। अकाली दल का कुर्बानी को लेकर इशारा भाजपा के साथ गठबंधन तोड़ने और बादल परिवार को केंद्र सरकार में मिले मंत्री पद की तरफ है।
पंजाब कृषि प्रधान प्रदेश होने के कारण अकाली दल किसानों के भी खिलाफ नहीं चल सकता और दूसरी तरफ भाजपा के अकाली दल के साथ संबंध भी सदा एक जैसे नहीं रहे। समय-समय पर पंजाब में गठबंधन सरकार के कार्यकाल में मतभेद होते रहे हैं। अब देखना यह है कि क्या भाजपा अकाली दल से गठबंधन तोड़ेगी या हालात यह भी बन सकते हैं कि भाजपा को गठबंधन तोड़ने की आवश्यकता ही न पड़े, मजबूरी में अकाली दल ही नाता तोड़ ले। सन 2022 में आगामी पंजाब विधान सभा चुनावों के संदर्भ में कृषि बिलों का मामला बेहद महत्वपूर्ण और विशेष रूप से अकाली दल के लिए चुनौतीपूर्ण होगा, जो पंजाब की राजनीति में बड़ा परिवर्तन ला सकता है।
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