न तो मुंबई पाक अधिकृत कश्मीर है और न ही महाराष्टÑ में सत्ता में बैठा कोई नेता बाबर है लेकिन जिस प्रकार शिवसेना के नेताओं द्वारा किसी विरोधी को निशाने पर लिया जाता है वह सत्ता व बाहुबल द्वारा विरोधियों को ठिकाने लगाने का प्रयास है। बॉलीवुड का अपना अंदाज है यहां विवादों को जन्म देकर शोहरत हासिल करने का पैंतरा इस्तेमाल किया जाता है। विवाद के बाद कोई अभिनेता कैसे फिल्मी दुनिया में छा जाता है इसका उदाहरण देने की आवश्यकता नहीं, लेकिन शिवसेना नेताओं द्वारा विरोधी को सबक सिखाने के लिए गुंडागर्दी पर उतर आना भी कोई नई बात नहीं।
वर्तमान घटनाक्रम एक कलाकार और सरकार के बीच टकराव वाली स्थिति बन गई है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता निरंकुश नहीं हो सकती लेकिन हिंसा या बदलाखोरी भी उसका कोई समाधान भी नहीं। एक बुजुर्ग और सेवानिवृत नेवी अधिकारी पर जिस प्रकार शिवसेना कार्यकर्ताओं द्वारा मारपीट की गई वह किसी सभ्य समाज और कानून सम्मत् राज्य में शोभा नहीं देती। सत्तापक्ष इसे गुस्से में हुई कार्यवाही कह रहे हैं जो हिंसा के प्रति उनके नरम रवैये को दर्शाता है। दरअसल मुंबई में तीखे ब्यानों व तोड़फोड़ की कार्यवाई से राजनीति गर्मा गई है। इस मामले को सद्भावना से निपटाया जा सकता है लेकिन जब मामला हितों का आ जाए तब फिर आदर्श बलि चढ़ जाते हैं।
व्यापारीकरण के युग में विवादों के गहरे आर्थिक उद्देश्य होते हैं। फिर भी लोकतंत्र में विरोधी को सिर उठाने से रोकने के लिए अमानवीय व असंवैधानिक कार्यवाही को स्वीकार नहीं किया जा सकता। विरोध को स्वीकार करने और तर्क की भाषा में उसका जवाब देना ही सभ्य समाज की निशानी है। मुंबई का मान-सम्मान इसी बात में है कि क्षेत्रवाद की बजाय मानवीय दृष्टिकोण को राजनीतिक मॉडल का आधार बनाया जाए। मुंबई भारत की है इस पर किसी एक व्यक्ति या पार्टी का अधिकार नहीं।
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