पड़ोसी या दुश्मन? दोनों। वास्तव में भारत और चीन के संबंध उतार-चढ़ाव पूर्ण हैं और यह इस बात पर निर्भर करता है कि राजनीतिक हवा किस दिशा में बह रही है। वर्तमान में दोनों देश एक दूसरे के सामने टकराव की मुद्रा में हैं। दोनों अपने-अपने रूख पर कायम हैं कि हमारे मामले में हस्तक्षेप न करें। किंतु ताली एक हाथ से नहीं बजती है। कल तक भारत भी इस बात को मानता था कि सीमा मुद्दे को और मुद्दों से अलग किया जा सकता है और अन्य द्विपक्षीय संबंधों को आगे बढाया जा सकता है किंतु गलवान टकराव और पूर्वी लद्दाख में फिर से संघर्ष ने चीन की इस धारणा को झुठला दिया है जिसके चलते भारत अब अपनी चीन नीति को पुन: निर्धारित कर रहा है और यह स्पष्ट कर रहा है कि यदि उसे हाशिए पर ले जाने का प्रयास किया जाएगा तो वह प्रतिकार करेगा।
29-30 अगस्त को भारतीय सेना द्वारा पैंगोंग त्सो झील के दक्षिणी तट पर चीन द्वारा एकपक्षीय ढंग से यथास्थिति को बदलने के प्रयासों को रोकने के लिए अग्रलक्षी कार्यवाही की गयी और यह बताता है कि अब 1962 की तरह चीन हम पर दादागिरी नहीं चला सकता है। इस पर चीन ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की और जिससे लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर तनाव बढा। वास्तविक नियंत्रण रेखा के बारे में दोनों देशों की अलग-अलग धारणाएं हैं और यह स्पष्ट रूप से निर्धारित नहीं हैं।
भारत ने सीमा मुद्दे के मामले में चीन के साथ व्यवहार में दो बदलाव किए हैं। पहला, चीन द्वारा जमीन पर स्थिति को बदलने के प्रयास को रोकने के लिए सेना तुरंत कदम उठा रही है। चीफ ऑफ़ डिफेंस स्टाफ जनरल रावत ने कहा कि भारत के पास सैन्य विकल्प मौजूद हैं। सीमा पर तनाव कम करने की बातों के बावजूद सैन्य कमांडर सीमा पर तनाव कम करने का प्रयास कर रहे हैं और इसके लिए बातचीत भी चल रही है किंतु इस दिशा में कोई ठोस प्रगति नहीं हो रही है। दूसरा, कूटनयिक दृष्टि से दोनों देशों के सैन्य कमांडरों और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के बीच बातचीत के अनेक दौरों के बावजूद इस मामले में कोई प्रगति नंही हुई है।
भारत चाहता है कि चीन यथास्थिति को बहाल करे जबकि चीन चाहता है कि भारत व्यापारिक द्विपक्षीय संबंधों को सीमा मुद्दे से अलग रखे किंतु भारत ने चीन की इस मांग को खारिज कर दिया। क्या भारत इस तनाव को दूर कर सकता है? इस क्षेत्र में चीन द्वारा वर्चस्व स्थापित करने के प्रयासों का मुकाबला करने के लिए भारत ने कूटनयिक दृष्टि से विश्व के नेताओं का समर्थन जुटाया है। इसके बावजूद हमारे पास क्या विकल्प हैं?
क्या विदेश नीति के वर्चस्ववादी रूख का आक्रामक परिणाम निकलेगा? सीमा पर दोनों देशों के सैनिक एक दूसूरे पर बंदूकें ताने खड़े हैं इसलिए अनिश्चितता की स्थिति बनी है। चीन के कदमों का मुकाबला करने के लिए भारत को कूटनयिक, आर्थिक और सैनिक प्रतिरोधक क्षमता विकसित करनी होगी। एक ऐसी सीमा जिसका निर्धारण नहीं किया गया है और जिस पर विवाद सात दशकों से अधिक समय से चला आ रहा है वह भी एक ऐसे पड़ोसी देश के साथ जो बीच-बीच में बल प्रयोग करता रहा हो। हमें इस बात को ध्यान में रखना होगा कि सीमा विवाद का समाधान न होना चीन के हित में है क्योंकि इससे चीन हमारे भूभाग पर नए नए दावा कर सकता है और नियंत्रण रेखा को भारत की ओर बढा सकता है ताकि वह भारत पर दबाव बना सके।
चीन ने पैगोंग त्सो, गोगरा और ड़ेपसांग में अपने सैनिक वापिस बुलाने से इंकार कर दिया है। हालांकि इस बारे में बातचीत जारी है। इसके अलावा चीन सीमा पर शांति और सौहार्द बनाए रखने में अब रूचि नहीं ले रहा है। इसके बजाय शी जिनपिंग एकपक्षीय रूप से तथ्यों को बदलकर अपने पड़ोसी देशों पर अपनी बात थोपना चाहता है और वह सीमा मुद्दे के समाधान के लिए आक्रामक और हिंसक रणनीति अपनाना चाहता है। इसके अलावा वह विवादास्पद वासतविक नियंत्रण रेखा पर अपने विचारों को थोपना चाहता है। उसका उद्देश्य है कि सीमा विवाद के समाधान से पूर्व वह अधिकाधिक भूमि पर कब्जा कर ले।
आज चीन एक अलग तरह का आक्रामक देश है और हम उसे नहीं समझ पाए हैं। हम उसके साथ अपनी शर्तों पर दोस्ती भी कामय नहीं कर पाए हैं। चीन चाहता है कि वह दूसरे देश को अपने अधीन लाए और इसके लिए वह अपनी शक्ति का प्रयोग करता है और अपने प्रतिद्वंदी को अपमानित करता है और उसे कमजोर करता है। दक्षिण तथा पूर्वी चीन सागर और लददाख में चीन की यही आक्रामक सैन्य रणनीति रही है जहां पर वह अंतर्राष्ट्रीय समझौतों और नियमों का उल्लंघन कर दूसरे के भूभाग पर अतिक्रमण करता रहा है। थियामेन स्क्वेर से लेकर के हांगकांग विरोध प्रदर्शन तक वियतनाम के पोत को डुबाने से लेकर भारतीय सैनिकों पर कील लगी छड़ों से हमला करने चीन अपनी मर्जी को पूरा करने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है। चीन नेपाल में लिपुलेख दर्रे पर अवसंरचना का विकास कर वहां अपना प्रभाव बढा रहा है। इससे भारत की सुरक्षा के लिए एक नया खतरा पैदा हो रहा है।
चीन ढाका और सिलहट में अनेक अवसंरचनात्मक परियोजनाओं के लिए भारी वित्तीय सहायता दे रहा है और बंगलादेशी सामान के लिए शु:ल्क मुक्त प्रवेश की अनुमति दे रहा है । आज चीन बंगलादेश का सबसे बड़ा व्यापारिक साझीदार और निवेशक बन गया है। चीन ने कॉक्स बाजार में एक पनडुब्बी अडडा और पथुआकली में एक नौसैनिक अड्डा बनाकर दोनों देशों के बीच रक्षा संबंध मजबूत करे हैं और बंगलादेश की नौसेना को मजबूत करने के लिए चीन ने कोरवेट उपलब्ध कराए हैं। चीन द्वारा भारत को घेरने की रणनीति के जवाब में भारत ने लुक एक्ट नार्थ ईस्ट पालिसी बनायी है जिसका उद्देश्य चीन के पड़ोसी देशों के साथ गठबंधन बनाना है। भारत-चीन जटिल संबंधों के बारे में हमें किसी भ्रम में नहीं रहना चाहिए किंतु चीन की वर्चस्ववादी महतवाकांक्षा और सीमा पर विवाद को देखते हुए एक अनिश्चितता बनी हुई है।
दोनों पक्ष अपनी शक्ति का प्रदर्शन कर रहे हैं इसलिए वास्तविक नियंत्रण रेखा पर सैनिक टकराव का खतरा बढ गया है। इसलिए इस खतरे को कम करना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। चीन के साथ हमारे संबंध एक गंभीर समस्या बनी रहेगी जिसके लिए हमें उसके साथ लगातार बातचीत करनी होगी। भारत ने पहले ही चीन को वित्तीय रूप से नुकसान पहुंचने के लिए कदम उठाने शुरू कर दिए हैं। भारत ने 224 चीनी एप्स बंद कर दिए हैं और भारतीय कंपनियों में चीनी निवेश पर अंकुश लगा दिया है। प्रधानमंत्री मोदी एक वैकल्पिक वैश्विक आपूर्त श्रृंखला के रूप में भारत को प्रस्तुत करने का प्रयास कर रहे हैं। किंतु हमें इस बात का भी अहसास है कि चीन का निवेश महत्वपूर्ण है और एक मजबूत पड़ोसी देश के साथ टकराव नहीं होना चाहिए।
अतीत में चीनी सैनिक भारतीय सैनिकों को धमकाते रहे हैं किंतु अब चीन के सैनिक यह जानकर हैरान होंगे कि 2020 का भारत 1962 का भारत नहीं रह गया है और वह दृढता से सामना करने के लिए तैयार है। हमें अपनी क्षमता को और बढाना होगा। मोदी जानते हैं कि आज के भू-रणनीतिक, राजनीतिक वास्तविकता में व्यावहारिकता ही कूटनीति को निर्देशित करती है। भारत की नई वर्चस्ववादी नीति में विवेक, परिपक्वता और संयम की आवश्यकता है ताकि भारत-चीन संबंधों में एक नियंत्रित स्थिति बनी रहे। दीर्घकाल में भारत-चीन संबंध भारत के रणनीतिक लक्ष्यों और क्षेत्रीय तथ वैश्विक सुरक्षा वातावरण के संबंध में भारत के लक्ष्यों पर निर्भर करेगा। भारत को धैर्यपूर्वक इस समस्या का समाधान करना होगा। लद््दाख टकराव भारत-चीन सीमा के निर्धारण में चीन की गंभीता को दशार्ता है किंतु वह स्थिति को अस्पष्ट बनाए रखना चाहता है ताकि वह समय-समय पर हमारे भूभाग को हड़प सके। इसलिए भारत को किसी भी उकसावे की कार्यवाही का करारा जवाब देना होगा और एक लक्ष्मण रेखा खींचनी हागी और यही इस उपमहाद्वीप में शांति की गारंटी है।
आज भारत-चीन संबंध ठंड़े बस्ते में जा चुके हैं। दोनों देशों के बीच अविश्वास पैदा हो गया है। भारत को कूटनयिक दृष्टि से संभलकर कदम उठाने होंगे। कुछ कठिन निर्णय लेने होंगे। तथापि अभी दोनों ने बातचीत बंद नहीं की है। हालांकि दोनों अपने-अपने रूख पर कायम हैं। भारत को संतुलन बनाना होगा और चीन की वर्चस्ववादी नीति के विरुद्ध समुचित कदम उठाकर उसे उसी के खेल में हराना होगा। भारत को आक्रामक रूख अपनाना होगा।
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