2014 में पिता की सड़क हादसे में तो 2016 में मां की करंट लगने से चली गई थी जान,
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छह साल से करते आ रहे परवरिश, बच्चों को नहीं खलने दी माँ-बाप की कमी
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मकान बनाकर देने से लेकर राशन-पानी, पढ़ाई व हर तरह की कर रहे मद्द
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हर दु:ख तकलीफ को खुशियों में बदलकर दे रहे मां-बाप का प्यार
करनाल (सच कहूँ/विजय शर्मा) । छह साल पहले एक मनहूस सड़क हादसे ने सात मासूम बच्चों के सिर से पिता का साया छीन लिया। माँ जैसे-तैसे मासूमों का पालन-पोषण कर रही थी, लेकिन होनी को कुछ और ही मंजूर था। जालिम वक्त ने माँ की ममता का आंचल भी छीन लिया। रोते-बिलखते मासूमों का जीवन पूरी तरह से वीरान हो चुका था। हर काम में दूसरों पर मोहताज रहने वाली वृद्ध बेबस दादी के अलावा इन मासूमों का कोई सहारा न था। दु:खों का ऐसा पहाड़ टूटा कि मासूमों को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था कि अब जाएं तो आखिर कहाँ? इस बीच डेरा सच्चा सौदा के सेवादार मसीहा बनकर आए और थाम लिया अनाथ मासूमों का हाथ, इस भरोसे के साथ कि अब वे ही इन बच्चों के ‘माँ-बाप’ हैं। छह साल से इसी भरोसे पर खरा भी उतरते आ रहे हैं इंसानियत के ये सच्चे मसीहा।
कुदरत भले ही इन अनाथ मासूमों के साथ इंसाफ नहीं कर पाई, लेकिन शाह सतनाम जी ग्रीन एस वेल्फेयर फोर्स विंग के सेवादारों ने परवरिश का बीड़ा इस कदर उठाया कि इन्हें कभी माँ-बाप की कमी नहीं खलने दी। छह साल से राशन, कपड़े, बर्तन व पढ़ाई-दवाई से लेकर घर के हर तरह के खर्च डेरा सच्चा सौदा के सेवादार वहन करते आ रहे हैं। मानवता के इन सिपाहियों ने पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां द्वारा चलाई गई ‘आशियाना’ मुहिम के तहत घर भी बनाकर दिया और दो बड़ी बेटियों का पूरे रीति-रिवाज से विवाह भी किया। सच कहूँ संवाददाता आज आपको इन्हीं सात अनाथ बच्चों की संघर्ष भरी दास्तान बता रहा है।
ये हैं मानवता के योद्धा
इस नि:स्वार्थ परोपकार में सुनील इन्सां, रामकिशन, शिक्षक तनुज इन्सां, सुखविंदर, डॉ. राहुल, डॉ. चरण सिंह, रामचंद्र इन्सां, रामकुमार राणा, हवा सिंह, रण सिंह, गोपाल, मोहित, रोबिन, मा.सुखबीर इन्सां, जयसिंह, बहन डॉ. राधारानी, ममता इन्सां, कुसम, शिल्पी, बेबी इन्सां, शीला, नेहा, रेणु राणा सहित ब्लॉक की साध-संगत जुटी हुई है।
बच्चों की मदद को जब नहीं बढ़ा एक भी हाथ, तब मसीहा बन पहुंचे ‘इन्सां’
हम बात कर रहे हैं जिला करनाल के ब्लॉक ब्याना, गांव नगली कला निवासी स्वर्गवासी मेमपाल पुत्र काबजराम के परिवार की। साल 2014 में एक सड़क हादसे में मेमपाल की मौत हो गई। परिवार में मौजूद सात बच्चे सोनिया (18 वर्ष), मीना (16 वर्ष), तनू (14 वर्ष), मधु (12 वर्ष), नीशा (10 वर्ष), तानिया (6 वर्ष), शिवम (2 वर्ष) के सिर से पिता का साया छीन गया।
ठीक 2 साल बाद मेमपाल की धर्मपत्नी बाला देवी की भी घर में बिजली का करंट लगने से मौत हो गई। मां का आंचल छीनने के बाद अनाथ और बेघर हुए ये बच्चे अपनी 74 साल की बुजुर्ग दादी अत्री देवी के साथ भूख से तड़पने लगे। इंसानियत तो तब शर्मसार हो गई जब भूख से तड़पते इन बच्चों के आंसूओं को पोंछने के लिए एक हाथ तक नहीं बढ़ा। ऐसे में इन बच्चों को उम्मीद की एक किरण तब दिखाई दी जब उनके पास ‘‘शाह सतनाम जी ग्रीन एस वेल्फेयर फोर्स विंग’’ के जवान पहुंचे। ब्लॉक की समस्त साध-संगत व शाह सतनाम जी ग्रीन एस वेल्फेयर फोर्स विंग के इन सेवादारों ने अनाथ बच्चों का हाथ थामा और इनकी हर दु:ख तकलीफ को खुशियों में बदलकर माँ-बाप का प्यार दिया।
बनाकर दिया मकान, उठा रहे सारा खार्चा
ब्लॉक ब्याना के 15 मैंबर प्रदीप इन्सां ने बताया कि जिम्मेवारों व साध-संगत ने अपनी नेक कमाई में से परमार्थ एकत्रित कर सबसे पहले इन बच्चों के लिए पक्का मकान बनाकर दिया, जिसमें एक कमरा, रसोई, बाथरूम, शौचालय शामिल है। प्रदीप इन्सां ने बताया कि पूज्य गुरु जी की दी गई पावन शिक्षा पर चलते हुए पिछले 6 सालों से सातों बच्चों व वृद्ध महिला की साध-संगत द्वारा पूरी देखभाल की जा रही है। इन बच्चों की शिक्षा, उनका राशन, दूध, कपड़े, दवाइयां व हर तरह की सुविधा इन्हें अपनी औलाद की तरह दी जा रही है।
दो बहनों की करवाई शादी, भाई बनकर निभा रहे हर फर्ज
पूज्य गुरु जी की पावन शिक्षाओं का ही असर है कि ये डेरा श्रद्धालु मां-बाप, भाई बनकर अपना हर फर्ज अदा कर रहे हैं। शाह सतनाम जी ग्रीन एस वेल्फेयर फोर्स विंग के सेवादरों व ब्लॉक साध-संगत ने वर्ष 2018 में दो बहनों सोनिया और मीना की शादी में पूरा सहयोग किया। ये दोनों बहनें अब अपने पति विनोद और मनोज के साथ उत्तर प्रदेश के जिला शाहरनपुर में सुखी जीवन व्यतीत कर रही है।
इतना ही नहीं इन सेवादारों द्वारा बहनों की हर जरूरत को पूरा भी किया जाता है और हर तीज-त्यौहार के अवसर पर बहनों के घर पहुंचकर ये भाई अपना आशीर्वाद देते हैं। बतां दें कि अन्य बहनों में तन्नु और मधु घर संभालती है जबकि नीशा 8वीं कक्षा में पढ़ती है, तानिया छठी में और सबसे छोटा भाई शिवम अभी दूसरी कक्षा में पढ़ रहा है। इनकी शिक्षा का खर्च भी साध-संगत स्वयं वहन कर रही है।
सेवादारों ने महसूस नहीं होने दी बेटे की कमी
बेटे और बहू की मौत के बाद इन बुढ़े कंधों पर मैं 6 पौतियों और एक पौते की जिम्मेवारी नहीं उठा सकती थी। इनके भविष्य को लेकर मन में कई सवाल पैदा होने लगे थे। अगर मुझे कुछ हुआ तो इनका क्या होगा? इस समाज में बिना सहारे के ये बेटियां कैसे जी सकेगी। लेकिन कहते हैं न कि जिसका कोई नहीं होता उसका भगवान होता है। ये डेरा सच्चा सौदा के सेवादार, जिन्हें मैं जानती तक नहीं, हमारे लिए तो भगवान बनकर आए हैं। अगर मेरा बेटा भी आज जिंदा होता तो शायद इतना नहीं कर पाता, जितना ये डेरा अनुयायी कर रहे हैं। इन सेवादारों ने कभी बेटे की कमी तक महसूस नहीं होने दी।
अत्री देवी, दादी (80 वर्षीय)।
मां-बाप से बढ़कर कर रहे परिवार की देखभाल
साल 2014 में मेमपाल की सड़क हादसे में मौत के बाद से अनाथ बच्चों की पूरी देखभाल डेरा अनुयायियों द्वारा की जा रही है। परिवार में 6 लकड़ियां, एक दो साल का लकड़ा व 80 साल की उनकी दादी है। जिसका सारा खर्च डेरा अनुयायी उठा रहे हैं। मैं हैरान हूँ इनकी सेवा भावना देकर, जिस अनाथ परिवार की मदद के लिए कोई भी रिश्तेदार सगा-संबंधी आगे नहीं आया। उनकी देखभाल ये मां-बाप से भी बढ़कर कर रहे हैं। मैं कोशिश करूंगा कि डेरा श्रद्धालुओं की इस नि:स्वार्थ सेवा के लिए इन्हें जिला प्रशासन द्वारा सम्मानित किया जाए।
सरपंच प्रतिनिधि, सरवण सिंह,
ग्राम पंचायत नागल, जिला करनाल।
आपको भगवान की सेवा करनी है, उसकी खुशियों को पाना है तो गरीब, आर्थिक रूप से कमजोर, लाचार, अनाथ, जिनका कोई नहीं उनकी नि:स्वार्थ सेवा करें। जो लोग मालिक की सृष्टि का भला करते हैं, मालिक की औलाद का भला करते हैं, मालिक उन्हें अंदर-बाहर कोई कमी नहीं आने देते। किसी को भी दु:ख दर्द तकलीफ में तड़फता देखकर उसमें शामिल होना और उसे दूर करना इंसानियत है। इसलिए हमेशा हमेशा इंसानियत को बुलंद रखों। वो लोग भागों वाले होते हैं जो मालिक की औलाद की सेवा करते हैं और उनके माँ-बाप भी भाग्यशाली होते हैं, जिनके बच्चे सेवा करते हैं।
-पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां
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