देश के पूर्व राष्टÑपति प्रणब मुखर्जी दुनिया को अलविदा कह गए हैं लेकिन वे अपनी राजनीतिक जिंदगी की एक अमिट छाप छोड़ गए हैं जो आज के राजनेताओं के लिए प्रेरणा भी है और चुनौती भी। कभी जिस कांग्रेस पार्टी ने उनको पार्टी से निकाल दिया था, उसी पार्टी में उन्होंने अपनी इतनी जगह बना ली कि पार्टी ने उनको देश के सबसे बड़े पद राष्टÑपति पर सुशोभित कर दिया। पार्टी में सच व गर्व के साथ काम करने का दम रखने वाले प्रणब मुखर्जी जैसे नेता आज बहुत ही कम हैं। उनको पद थाली में परोस कर या छूट के साथ या चमचागिरी के साथ नहीं मिले बल्कि अपनी विचारधारा की परिपक्वता, मेहनत व दृढ़ता के साथ मिले थे। पार्टी में अंदरूनी लोकतंत्र व असूलों को मुख्य रखने वाले इस गौरवपूर्ण नेता ने पार्टी को हमेशा जनता की अमानत माना।
वे आम आदमी के तौर पर समाज के साथ जुड़कर समाज की जरूरतों को पूरा करने के लिए राजनीतिक मैदान में उतरे थे। क्लर्क व अध्यापक रह चुके इस नेता को आम जनता की आवश्यकताओं से लेकर देश के बड़े मसलों तक की गहरी जानकारी व अनुभव था। सहनशीलता व संवाद की मिसाल भी प्रणब मुखर्जी की ऐसी खासियत थी कि जो उनको नेताओं की भीड़ पर हल्की राजनीति करने वालों से दूर करती थी। वे बुद्धि विवेक के मालिक व सामाजिक सांझ के धनी थे। राष्टÑपति स्वयं सेवक संघ(आरएसएस) जैसे कांग्रेस के कट्टर विरोधी संगठन के स्थापना समारोह में जाकर वे आरएसएस भाजपा व कांग्रेस सहित सभी पार्टियों को असली राष्टÑवाद व देशभक्ति का पाठ पढ़ा गए।
जिस माहौल में विरोधी संगठन को दूर से ही नमस्ते की जाती है वहां मुख्य मेहमान बनना व अपने विचार व विचारों को प्रकट करने का तरीका हर स्थिति में उनकी जीत यकीनी बनाता था। पार्टियों के हित अपनी-अपनी जगह होते हैं लेकिन किसी नेता की लोकप्रियता का पार्टी से आगे बढ़ना ही देश की एकता व अखंडता को मजबूत करने का भी आधार बनता है। अगर राजनेता प्रणब मुखर्जी के दिखाए रास्तों पर चल पड़े तो राजनीति ‘जिसे आवश्यक बुराई’ जैसे अपशब्दों का सामना करना पड़ता है, खुद ब खुद देशभक्ति व देश सेवा का रूप धारण कर सकती है। नि:संदेह प्रणब मुखर्जी राष्टÑवाद के असली रहस्य को जानने वाले थे।
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