भारत-अमेरिका के साथ तनावपूर्ण संबंधों के बीच चीन ने तिब्बत में अपनी स्थिति को मजबूत दिखाने का प्रयास किया है। प्रधानमंत्री शी जिनपिंग ने आधुनिक समाजवादी तिब्बत बनाने की घोषणा की है। इस घोषणा से चीन का यह डर झलक रहा है कि कहीं तिब्बती अलगाववाद की लहर में न शामिल हो जाएं। दरअसल ताइवान में अमेरिकी दखलअन्दाजी के बाद चीन विवाद वाले भूखंड को बचाने के लिए प्रयत्नशील है। अमेरिका भी तिब्बत के मामले में अपनी पकड़ को मजबूत करने के लिए धड़ाधड़ बयानबाजी कर रहा है। विगत माह अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोंपियो ने दावा किया कि चीन तिब्बत में अमेरिकी पर्यटकों, पत्रकारों और बाहर के देशों से आए लोगों को रोकता है। अमेरिका ने तिब्बत में बाहरी लोगों को रोकने वाले कुछ अधिकारियों को वीजा न देने की बात कही थी। दरअसल बात ताइवान से चलती हुई तिब्बत तक पहुंच गई। अमेरिका ने लापता पंचेन लामा का भी मुद्दा उठाया है।
अमेरिका की ऐसी बयानबाजी चीन को परेशान कर रही है और वह तिब्बत और ताइवान को बचाने के लिए रणनीति बनाने में सक्रिय हो गया है। दूसरी तरफ डोकलाम, अक्साई चिन, लद्दाख, जम्मू कश्मीर संबंधी भारत के सख्त रवैये को देखते हुए चीन के लिए स्थितियां चुनौतीपूर्ण बन रही हैं। भारत के विदेश मंत्री जयशंकर का यह बयान भी चीन के लिए मुश्किल भरा है कि 1962 के बाद अब भारत-चीन सीमा पर हालात सबसे ज्यादा तनाव भरे हैं। इस कूटनीतिक जंग में जीत-हार किसकी होती है यह तो समय ही बताएगा लेकिन इस मामले में भारत को सावधान होकर कदम उठाने होंगे। भारत को कुछ प्राप्त करने के लिए मजबूत रणनीति बनानी चाहिए। तिब्बती नेता दलाईलामा भारत में हैं और उस तरफ से चीन विरोधी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प अगले राष्ट्रपति का चुनाव भी लड़ रहे हैं। ट्रम्प-मोदी की मित्रता भारत-चीन संबंधों में लगातार चर्चा में रहेगी। भारत को चीन के संबंध में ठोस रणनीति तैयार करनी आवश्यक हो गई है, ताकि लेह लद्दाख सहित डोकलाम में भारत अपना पक्ष मजबूत कर सके और चीन को इन मामले में पीछे हटने के लिए मजबूर कर सके। यहां तक जम्मू कश्मीर के मामले में चीन द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से पाकिस्तान का समर्थन भी रोका जा सकता है।
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