बेटा आपको एबीसीडी आती है? प्रिंसीपल के इतना पूछते ही नन्हीं परी सी खुशी माँ की गोदी से उतरी और ठुमकते-ठुमकते शुरू हो गई एबीसीडी गेट अप एंड स्टैंड, इएफ जीएच वेव योर हैंड…।
दाखिले के लिए पूछे गए इस सवाल पर दिए गए जवाब का प्रिंसीपल पर जो प्रभाव पड़ो, लेकिन खुद खुशी की माँ कविता हैरान थी। इसे तो ये कभी सिखाया ही नहीं, कहां से सीखा! बाद में पता चला कि उसके जन्मदिन पर जब चाचा आए थे तो दो-तीन दिन में उन्होंने मोबाइल पर विडियो दिखाकर ये सब सिखाया था।
कविता को याद आ गए वे दिन जब छोटी बहन के बेटे को इसी एबीसीडी सिखाने के लिए उन्हें पसीने आ गए थे। आज बच्चे बड़े चाव से इन मजेदार विडियोज से प्राथमिक ज्ञान अर्जित कर रहे हैं। माता-पिता को भी अब ज्यादा सिर खपाई नहीं करनी पड़ती।
न गुरु दक्षिणा की जरूरत
बेशक हम आज भी गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागू पाव… का संस्कार और सम्मान रखते हैं। लेकिन यह भी सच है कि आज की तारीख में इंटरनेट से बड़ा कोई शिक्षक नहीं है। भूमिकाएं और परंपराएं बदल सी गई नजर आती हैं। इस नए शिक्षक के दौर में गुरु दक्षिणा मांगने वाला गुरु द्रोण जैसा कोई नहीं है, सब सिर्फ एक बटन, एक क्लिक भर करने पर उपलब्ध हो जाता है। पाठ याद न करने पर न कोई कान मरोड़ता है और न क्लास मिस करने का भय। न क्लास के बाद सर या मैडम ने कहा क्या, यह नोट्स में ढूंढते रहने की दरकार।
इंटरनेट (Internet) के इस सुखद दौर में हर कोई एकलव्य बन रहा है।
स्मार्ट कक्षाओं का बढ़ रहा प्रचलन
एक वक्त था जब बच्चे का एडमिशन करवाने से पहले अभिभावक वहां पढ़ाने वाले शिक्षकों की शैक्षणिक योग्यता देखते थे, लेकिन आज देखते हैं कि स्कूल में स्मार्ट क्लास सुविधा है या नहीं। स्मार्ट क्लासेज का बिजनेस आज 20 फीसदी सालाना की दर से बढ़ रहा है। एवरॉन, कोर एजुकेशन, एडुकॉम्प, टाटा इंटरएक्टिव सर्विस, एनआईआईटी जैसी कंपनियां इस क्षेत्र में मुस्तैद हैं।
आत्मविश्वास भर रहे तकनीकी शिक्षक
होम मेकर राधा महेश्वरी कहती हैं कि एक वक्त उन्हें इंटरनेट की एबीसीडी का पता नहीं था, लेकिन यहीं से वीडियो पर मैंने नई-नई रेसेपी बनाना सीखा और आज किटी पार्टियों में अपना बनाया हुआ खाना सप्लाई करती हूँ।
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