बीते जून विश्व बैंक का अनुमान था कि 1979 के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था सबसे बुरे दौर से गुजरने वाली है और यह आर्थिक विकास दर को ध्यान में रख कर आंका और नापा गया था परन्तु स्थिति देख कर तो ये लगता है कि भारत की अर्थव्यवस्था इतनी गर्त में कभी नहीं रही होगी। यहां बड़ी बातों का कोई मतलब नहीं है बल्कि बड़ी समस्याओं से जूझ रहे छोटी संस्थाओं और अर्थव्यवस्था के लिए संघर्ष कर रहे लोगों की बात करना तार्किक होगा।
इन्हीं में एक देश में फैले कोचिंग सेन्टर हैं हालांकि इसमें कई पूंजी की क्रान्ति ला चुकी हैं और कई किराये के लिए भी संघर्ष करते हैं। इनसे जुड़े कार्मिक अर्थात शिक्षक, सहायक व तकनीकी आदि देखे जा सकते हैं। मतलब साफ है कि एक सेंटर यदि बर्बाद होता है तो कई घर तबाह होते हैं। इनमें मसलन सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी कराने वाली संस्थाएं, इंजीनियरिंग, मेडिकल से जुड़ी संस्थाएं व सीडीएस, एनडीए, एसएससी और बैंकिंग समेत अन्य संस्थाएं देखी जा सकती हैं। मसला यह है कि विगत 5 माह से सब कुछ तहस-नहस हो गया है। पढ़ाई बदल गयी है, पढ़ाने वाले भी बदल गये हैं मगर अस्तित्व के संघर्ष से कोचिंग सेन्टरों को मुक्ति नहीं मिल रही है।
सरकार की तरफ बरबस नजर चली जाती है कि क्या पता कुछ सावधानी और गाइडलाइन के साथ गर्त में जा चुकी अर्थव्यवस्था को ध्यान में रखकर सेन्टर खोलने का कोई फरमान आ जाये मगर यहां बात उम्मीदों के सिवा आगे नहीं बढ़ पा रही है। हालांकि कोरोना ने ऐसा सरकार को भी सोचने नहीं दिया है। फिर भी सवाल यह है कि जो बिगड़ रहा है वह कैसे बनेगा और साथ ही क्या केवल कोचिंग सेंटर बर्बाद हो रहे हैं, एक चिंतक की दृष्टि से देखें तो भारत और राज्य सरकार को मिलने वाली 18 फीसद जीएसटी की प्राप्ति भी तो इसके चलते नहीं हो रही है।
जिस तरह परीक्षाओं के आयोजन को लेकर संघ लोक सेवा आयोग व लोक सेवा आयोग तारीख घोषित कर रहा है, आगामी कलेंडर जारी कर रहा है उसे देखते हुए यह भी लगता है कि कोरोना की दहशत इन पर नहीं है। हालांकि इसके लिए दुनिया नहीं रोकी जा सकती मगर पढ़ाई के संकट से जूझ रहे प्रतियोगी क्या मुक्त होकर उन्मुक्त भाव से परीक्षा दे रहे हैं। जबकि जिन कोचिंगों के सहारे प्रतियोगी अपनी पढ़ाई की कठिनाई को समाधान में बदलता था वे बंद पड़ी हैं। हालांकि ऑनलाइन में परिवर्तन भी तेजी से हो रहा है मगर इसमें भी सभी की पहुंच अभी बनी नहीं है। उसका प्रमुख कारण डूबी अर्थव्यवस्था और इंटरनेट की कनेक्टिविटी भी है।
कोरोना की वजह से छात्रों के अपने-अपने घर लौट जाने के कारण स्थानीय लोगों की आमदनी अचानक गिर गयी है। कोचिंग क्लासेज अमूमन जून तक अपना नया सत्र शुरू करते हैं और इसी समय स्थानीय मकान मालिक से लेकर चाय-समोसे या भोजन देने वाले भोजनालय भी बड़े रोजगार की ओर चले जाते हैं। बात यहां प्रत्यक्ष रूप से कोचिंग सेंटर के बंद होने की हो रही है परन्तु इसके सहारे रहने वाले कई रोजगार भी खत्म हो गये हैं। केपीएमजी की एक ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि साल 2016 में ऑनलाइन कोचिंग करने वालों की तादाद महज 16 लाख थी 2021 तक यह एक करोड़ हो जायेगी। वैसे देखा जाय तो कई मिथक भी टूटे हैं। पहले ऑनलाइन शिक्षा या कोचिंग उतनी असरदार नहीं मानी जाती थी लेकिन कोरोना ने ऑनलाइन कोचिंग को बड़ा अवसर दिया है। जिसके चलते अब प्रतियोगी भी डिजिटल कोचिंग को एक विकल्प बना रहे हैं।
अच्छी बात यह है कि छोटे शहरों के प्रतियोगियों को कम खर्चे पर यह सुविधा मिल सकती है। दिल्ली समेत बड़े शहरों की कोचिंग सेंटरों में लाखों फीस जमा करने के बाद जो शिक्षा मिलती थी अब वह कुछ हजार रुपए में ही उनके घर पर पहुंच रही है। इंजीनियरिंग और मेडिकल की कोचिंग हब कोटा इन दिनों वीरान है। जिस तरह कोरोना अभी पैर पसार रहा है उसे देखते हुए लगता है कि इंतजार अभी लम्बा है। सरकार क्या सोचती है, कैसे करेगी यह तो वो जाने पर छोटे और मझोले किस्म के बहुतायत में कोचिंग सेंटर या तो इन दिनों बंद हो चुके है या बंद होने के कगार पर है। जिस तरह कोचिंग का कारोबार तेजी से बढ़ा है उसे देखते हुए बड़ी अर्थव्यवस्था की दृश्टि से इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
वैश्विक महामारी कोरोना का प्रभाव हर सेक्टर पर पड़ा है। एजूकेशन इंडस्ट्री भी इससे अछूति नहीं है। लॉकडाउन के साथ आये शब्द सोशल डिस्टेंसिंग ने भविष्य में आने वाले बदलाव के संकेत दिये हैं। बीते 5 माह में शिक्षा जगत के बड़े समूह कोचिंग इंडस्ट्री पर इस महामारी का जबरदस्त प्रभाव पड़ा है। इसी के कारण इसने खुद को काफी बदल लिया है और यह बदलाव ऑनलाइन क्लासेज है। ऑनलाइन क्लास एक सुविधा तो है मगर कईयों के लिए यह एक नया संघर्ष है। मैं स्वयं एक संस्था का संस्थापक हूं जिसकी स्थापना 2002 में हुई थी। मैं यह मानता हूं कि 2020 में आई कोरोना महामारी मेरे संघर्ष को 2002 के बराबर में लाकर खड़ा कर दिया है।
ऑनलाइन क्लास में मेरी संस्था भी जा चुकी है जिसके चलते यह रोज आभास होता है कि पहले एक प्राध्यापक के तौर पर कक्षा में जाते ही क्लास शुरू हो जाती थी और अब पहले मशीन, वीडियो, ऑडियो आदि दुरूस्त होता है तब अपनी बारी आती है। तकनीकी रूप से ऑनलाइन शिक्षा भारत में अभी भी काफी महंगी है मुख्यत: उपकरण की दृष्टि से। कोरोना काल में इस क्षेत्र के कारोबारी भी कोचिंग सेंटर की मजबूरी का लाभ उठा रहे हैं और उन्हें इससे जुड़ा सब सामान महंगा दे रहे हैं। अब कोचिंग सेंटर एक स्टूडियो में सिमटता जा रहा है। यदि यह लम्बे समय तक चला तो एक कयास यह है कि कहीं प्रतियोगी और पढ़ाने वाले ऑनलाइन के आदती न हो जायें।
कोरोना की वजह से देश में 75 हजार करोड़ के कोचिंग कारोबार को नुकसान पहुंचा है। देश में बहुत कम लोग होंगे जिन्होंने दिल्ली, इलाहाबाद और कोटा का नाम नहीं सुना होगा। हालांकि लखनऊ, देहरादून, हैदराबाद, बंगलुरू, जयपुर सिविल सेवा सहित अन्यों की कोचिंग के लिए उभरा क्षेत्र है। इन छोटे जगहों में भी लाखों-करोड़ों का खूब कारोबार होता है मगर यहां भी सन्नाटा उतना ही पसरा है। कोचिंग संस्थानों की सांस उखड़ रही है और यह कब खुलेगा इसके आसार बनते नहीं दिख रहे हैं। देश में कई स्थानों पर किराया माफी को लेकर कोचिंग संस्थानों ने एसोसिएशन बना लिया है इसके भी कई स्वरूप हैं।
कोरोना जहां एक ओर जीवन पर भारी है वहीं बंद पड़ी कोचिंगें जेब पर भारी हैं। ई-एजूकेशन को इन दिनों बढ़ावा मिला है। छोेटे बच्चों के स्कूल से लेकर बडे-बड़े विश्वविद्यालय इसी माध्यम का सहारा ले रहे हैं। मगर क्या शिक्षा की यह विधा कक्षा वाली शिक्षा का विकल्प बन पायेगी यह प्रश्न पहले भी जिन्दा था अभी भी है। कारोबार में आसमान छू रहे कोचिंग सेंटर जहां बच्चों का भविष्य संवार रहे थे वहीं अपनी और देश की अर्थव्यवस्था में भी योगदान कर रहे थे अब सब कुछ सिमटता दिख रहा है। स्वरूप इतना बिगड़ गया है कि कोचिंग सेंटर अस्तित्व की लड़ाई में दो-चार हो रहे हैं।
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