25 अगस्त 2017 का दिन इतिहास का वह काला दिवस है जिस दिन मानवता के रक्षक एक ऐसे संत सतगुरू जिन्होंने दिन-रात, धूप-छांव, गर्मी व सर्दी की परवाह किए बिना अपने जीवन का हर एक क्षण जीवों के उद्धार के लिए, समाज से बुराइयों को खत्म करने के लिए लगा दिया, ऐसे सच्चे सतगुरु पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां पर दोषारोपण किया। यह सच है कि झूठ के बादल सच के सूर्य को ज्यादा समाय तक ढांपकर नहीं रख सकते। कुछ समय के बाद सच का सूर्य फिर और अधिक ऊर्जा के साथ पृथ्वी पर अपनी आभा बिखेरता है। लेकिन जो सूर्य की किरणों के बिना नहीं रह सकते उनके लिए ऐसा वक्त बहुत ही मुश्किल होता है। ऐसा ही हाल आज छह करोड़ से अधिक लोगों के साथ प्रत्यक्ष रूप में और न जाने कितने जीवों के साथ अप्रत्यक्ष रूप से हो रहा है।
25 अगस्त 2017 का वो दिन, जिसका मातम अभी भी दिलों में दर्द की टीस बना हुआ है। 40 से अधिक डेरा श्रद्धालु पंचकुला और सिरसा में पुलिस/सुरक्षा बलों की गोलियां लगने के कारण मारे गए। मीडिया के एक वर्ग ने भी शर्म की तब सारी हदें पार करते हुए निर्दोष डेरा श्रद्धालुओं की दु:खद मृत्यु पर सच को उजागार करने और इंसानियत के साथ खड़े होने की बजाए डेरा श्रद्धालुओं के लिए गुंडे जैसे अपशब्द प्रयोग किए। तब ऐसे मीडिया को गोलियों से तड़पते डेरा श्रद्धालु नजर नहीं आए। अपने गुरू के दर्शनों के लिए श्रद्धालुओं का एकत्रित होना, कोई गुंडागर्दी नहीं है। गुंडों के पास हथियार होते हैं लेकिन सरकार के ब्यानों में श्रद्धालुओं के पास एक लाठी भी नहीं थी। कई-कई बार श्रद्धालुओं की तलाशी ली गई थी, पुलिस के रिकार्ड में उनके पास कोई हथियार नहीं था। डेरा श्रद्धालुओं के पास धूप से बचने के लिए सिर्फ छाते थे। वह भी पुलिस ने छीन लिए थे। एक भी पुलिस कर्मचारी की मौत नहीं हुई, जो अपने-आप में सबूत है कि श्रद्धालु निहत्थे थे और उन्होंने किसी पर भी हमला नहीं किया था, जो भी नुक्सान हुआ है उसकी जांच होनी चाहिए और प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा हुए कत्लेआम के दोषियों के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए।
वास्तव में यह श्रद्धालु, जिंदगी लेना नहीं बल्कि जिंदगी देना जानते हैं। डेरा श्रद्धालु रक्तदान के आभाव में जिंदगी व मौत से लड़ रहे मरीजों को नई जिंदगी देते हैं। रक्तदान के क्षेत्र में पूरे विश्व में इनका कोई सानी नहीं। इंसानियत की भलाई के लिए डेरा सच्चा सौदा के श्रद्धालु नेत्रदान, गुर्दादान और शरीरदान जैसे महान कार्य करते हैं। डेरा के ये श्रद्धालु कभी देशद्रोही नहीं हो सकते, जिन्होंने देश की सेना, पुलिस के लिए रक्तदान किया है, शहीद सैनिकों के परिवारों की मदद की। देश के किसी भी हिस्से में प्राकृतिक आपदा आई तब सरकार के साथ कंधे से कंधा मिलाकर सहयोग किया। सरकारों ने समय-समय पर डेरा सच्चा सौदा द्वारा किए गए सहयोग के लिए अनेकोनेक प्रशंसा पत्र देकर डेरा श्रद्धालुओं की प्रशंसा की है। आज 25 अगस्त को उन डेरा श्रद्धालुओं को श्रद्धा के फूल भेंट करते हैं, जो इंसानियत की सेवा के लिए पूरे जज्बे से जुटे रहे। भले ही सेवा कार्यों में उनकी जान चली गई।
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