प्रिय देशवासियों! आप जितना भला बुरा कह सकते हो कह डालो। कोरोना महामारी तेजी से बढ़ती जा रही है, चीन ने लद्दाख में घुसपैठ की है तथा कांग्रेस और भाजपा के बीच राजस्थान में द्धंद्ध चल रहा है। भला बुरा कहने से यदि हमारी समस्याओं का समाधान हो जाता तो हमें कोई आपत्ति नहीं होती और इस पर कोई खेद नहीं होता किंतु वर्ष दर वर्ष हमारा आक्रोश और हमारी बातें अनसुनी कर दी जाती हैं और जिस किसी ने भी यह कहा है कि जब दुखों की बारिश होती है तो यह मूसलााधार होती है यह सही कहा है।
गर्मी के मौसम में देश के कई भागों में सूखे की स्थिति बनी हुई थी और मानसून के आते ही भारी वर्षा ने स्थिति को बदल दिया और उत्तर, पश्चिम तथा दक्षिण सभी भागों में भीषण बाढ़Þ की स्थित बनी हुई है। बाढ़ से अब तक लगभग 3500 लोग मारे जा चुके हैं और 59 लाख लोग बेघर हो गए हैं बिहार में 47 लाख लोग बाढ़ से प्रभावित हैं और 3 लाख से अधिक लोग राहत शिविरों में रह रहे हैं। उत्तर प्रदेश में डेढ़ लाख से अधिक लोग बाढ़ से प्रभावित हैं तो केरल में 1 लाख से अधिक लोग राहत शिविरों में रह रहे हैं। इसके अलावा पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, ओडिशा, गुजरात और महाराष्ट्र में भारी बारिश हो रही है जिससे वहां पर जनजीवन ठप्प हो गया है।
बाढ़ की इस समस्या के बारे में बहुत कुछ लिखा जा चुका है किंतु इसका प्राधिकारियों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। बुनियादी प्रश्न यह है कि क्या वास्तव में कोई इसकी परवाह करता है। बिल्कुल नहीं। बादल फटने, भूस्खलन, अचानक बाढ़ आने जैसी घटनाएं हर साल होती रहती हैं जिनमें हजारों लोग मारे जाते हैं और लाखों लोग बेघर होते जाते हैं तथा करोड़ों की संपत्ति बरबाद हो जाती है। इस पर हमारे नेताओं की प्रतिक्रिया आशानुरूप रहती है। वे हर वर्ष नौटंकी करते हैं, हर कोई घिसी-पिटी बातें करता है। बाढ़ आने के बाद राहत सामग्री पहुंचायी जाती है। प्रधानमंत्री मुआवजे की घोषण करते हैं। उसके बाद मुख्यमंत्री भी मुआवजे की घोषणा करते हैं, सरकार आपदा प्रबंधन दल का गठन करती है। राज्य सरकार केन्द्र से राहत सहायता मांगती है, नौकरशाह बाढ़ की स्थिति का विश्लेषण करते हैं। उनके विचार और उनके द्वारा सुझाए गए उपाय भी बाढ़ में बह जाते हैं और हर कोई इस बात पर संतुष्ट होता है कि उन्होंने राष्ट्र के लिए अपने कर्तव्यों का पालन कर दिया है। यह हमारा भारत है।
यहां पर हर चीज कामचलाऊ की जाती है। विसंगति देखिए। खाद्यान्न और चारा तब बाढ़ प्रभावित इलाकों में पहुंचता है जब बाढ़ समाप्त हो जाती है और इसका कारण नौकरशाही की थकाऊ प्रक्रिया है। हवाई जहाज से राशन के पैकेट गिराए जाते हैं किंतु इस बात की किसी को परवाह नहीं होती है कि वे पानी में गिरते हैं या लोगों तक पहुंचते हैं और यदि लोगों तक पहुंचते भी हैं तो लोगों में राशन के पैकेट पकड़ने की मारामारी मच जाती है। आपदा राहत कोष से धनराशि दी जाती है और अधिकतर राज्य सरकारों इस राशि का उपयोग लोगों को सहायता पहुंचाने के बजाय आपदा प्रबंधन से भिन्न अन्य परियोजनाओं के लिए करते हैं जिसका उपयोग वे अवसरंचना के निर्माण के लिए करते हैं जिनके लिए नियमित बजट में धनराशि उपलब्ध करायी जाती है। राज्य आपदा प्रबंधन बोर्ड किसी भी परियोजना को ढंग से कार्यान्वित नहीं करते हैं।
वस्तुत: आपदा प्रवण के मामले में भारत विश्व में 14वें नंबर पर है और वैश्विक जलवायु जोखिम सूचकांक रिपोर्ट 2019 के अनुसार इसका कारण मौसम संबंधी उतार-चढाव है। देश में आने वाली कुल आपदाओं में से 52 प्रतिशत बाढ़ का हिस्सा हैं उसके बाद 30 प्रतिशत चक्रवात, 10 प्रतिशत भूखसलन, 5 प्रतिशत भंूकप 2 प्रतिशत सूखा है। वर्ष 2017 में प्राकृतिक आपदाओं में 2736 लोगों की जानें गयी थी। भारत ने संयुक्त राष्ट्र सेन्डाई फ्रेमवर्क फोर डिजास्टर रिडक्श्न पर हस्ताक्षर किए हैं किंतु वास्तव में स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया है। बाढ़ नियंत्रण नीतियां मुख्यतया इस धारणा पर आधारित होती हैं कि बाढ़ मानव निर्मित नहीं अपितु प्राकृतिक घटना है जबकि वास्तविक तथ्य यह है कि बाढ़ के कारण होने वाले नुकसान का मुख्य कारण मानवीय भूलें हैं। इसका मुख्य कारण खराब भू-प्रबंधन और बाढ़ नियंत्रण रणनीति है।
विश्व गतिशील जलाशय संचालन की ओर बढ रहा है जो मौसम भविष्यवाणी पर निर्भर होता है किंतु हमारे बांध प्रबंधक अपनी नौकरियों को जोखिम में डालना नहीं चाहते हैं और भाखड़ा बांध को छोड़कर वे पहले से नियंत्रित जल निकासी का आदेश नहीं देते हैं। इसके अलावा विकास की गलत नीतियों के कारण भारी बारिश के परिणामस्वस्प स्थिति और बिगड़ती जा रही है। उदाहरण के लिए पश्चिमी हिमालय में ऐसी अवसरंचना के निर्माण पर बल दिया जा रहा है जिससे इस क्षेत्र के प्राकृतिक वातावरण पर दबाव बढा है। संवेदनशील पर्वतीय पारितंत्र के लिए खतरे की चेतावनी के बावजूद सरकार ने चार धाम राजमार्ग परियोजना का कार्य जारी रखा है। इस परियोजना के अंतर्गत उत्तराखंड में हिन्दुओं के चार प्रसिद्ध तीर्थ स्थलों को जोड़ा जाएगा।
इसके साथ ही भारत में आपदा प्रबंधन की तैयारियों की सुविधाएं भी समुचित नहीं है और सरकार इस बात को स्वीकार नहीं करती है। पर्यावरण मंत्री जावडेकर के शब्दों में विश्व के विभिन्न भागों में जलवायु में परिवर्तन हो रहा है। किंतु वर्तमान में आयी बाढ़ को जलवायु परिवर्तन से जोड़ना गलत और अवैज्ञानिक होगा। पर्यावरणविदों ने हिमाचल और उत्तराखंड में सड़क और सुरंगों के निर्माण की परियोजनाओं के विरुद्ध चेतावनी दी है। हमारे देश में कोई भी आपदा प्रबंधन की बुनियादी बातों को सीखना नहीं चाहता है और न ही इन समस्याओं का दीर्घकालिक समाधान ढूंढना चाहता है। इसके लिए उन्हें दूर जाने की जरूरत नहीं है। यदि खुले स्थानों पर पौधारोपण किया जाए और वहां पेड़ हो तो धरती द्वारा वर्षा का जल अवशोषित किया जाएगा किंतु यदि हम कंक्रीट के जंगल बनाते जाएंगे तो फिर बाढ़ आएगी ही।
सरकारी आपराधिक उदासीनता के इस वातावरण में समय आ गया है कि इसमें सुधार किया जाए। सबसे पहले सरकार को यह स्वीकार करना होगा कि समस्या है। उसके बाद उसे बुनियादी सुझावों को लागू करना होगा और दीर्घकालिक उपाय ढूंढने होंगे। इसके लिए केन्द्र और राज्यों के बीच ठोस समन्वय होना चाहिए। आपदा से पहले और आपदा के बीच राज्य और केन्द्र के बीच सहयोग होना चाहिए। साथ ही आपदा के कारण मौतों को रोकने के लिए बेहतर आपदा प्रबंधन नीति बनायी जानी चाहिए। आपदा का सामना करने वालेी अवसंवचना पर अधिक ध्यान दिया जाना चाहिए। बांधों के निर्माण, जल निकासी, नदी तटबंधों की सुरक्षा और नहरों के निर्माण के लिए अधिक धनराशि आवंटित की जानी चाहिए। साथ ही अग्रिम आपदा चेतावनी प्रणाली विकसित की जानी चाहिए। बाढ़ के मामले में विशेषकर निचले इलाकों में यह प्रणाली स्थापित की जानी चाहिए ताकि वर्षा के बारे में सटीक भविष्यवाणी की जा सके।
कुल मिलाकर हमें गरीब लोगों को बाढ़ से बचाना होगा क्योंकि ये लोग ऐसी अपदा के समय में बहुत कष्ट झेलते हैं। कुल मिलाकर हमारे नेताओं को अपनी विवेकहीन नीतियों को छोड़ना होगा। किसी भी समस्या का शार्टकट समाधान नहीं है। मोदी जी को यह सुनिश्चित करना होगा कि उनका प्रशासन लोगों की अपेक्षाओं पर खरा उतरे। जब तक हमारे नेतागण अपनी उदासीनता को नहीं छोड़ते और अल्पकालिक योजना के बजाय दीर्घकालिक योजनाओं पर ध्यान नहीं देते मौसम में उतार-चढाव के कारण नुकसान बढता जाएगा। देश की आम जनता कब तक हमारे राजनेताओं और प्रशासन की उदासीनता की मूक दर्शक बनी रहेगी। कब तक लोग भगवान इन्द्र से प्रार्थना करते रहेंगे कि उनके क्षेत्र में कोई आपदा न आए। हमें इस बात को ध्यान में रखना होगा कि जीवन केवल संख्या नहीं है अपितु यह हाड, मांस और धड़कते दिल से बना हुआ है और न ही आम आदमी केवल एक संख्या जिसके साथ हमारे राजनेता खिलवाड़ करते रहेंगे।
-पूनम आई कौशिश
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