विश्वविख्यात पंडित गंगाधर शास्त्री का बीमार बेटा एक दिन इस दुनिया से चल बसा, परंतु पंडित जी ने हमेशा की तरह उस दिन भी अपने विद्यार्थियों को पढ़ाया। पाठ समाप्त होने पर सहपाठियों ने पंडित जी के बेटे को आवाज लगाई तो पंडित जी बोले,‘‘वह अब इतनी दूर चला गया है कि तुम्हारी आवाज वहां तक नहीं पहुंच सकती।
’’ पहले तो विद्यार्थी समझ न सके, पर जब असली बात पता चली तो उनमें से एक ने हैरानी से पूछा, ‘‘गुरु जी, इस मर्मांतक शोक में भी आपने पढ़ना बंद नहीं किया?’’ ‘‘बंद कैसे करता।’’ पंडित जी समझाने लगे, ‘‘तुम न जाने कितनी दूर से आए हो? भला तुम्हारा एक दिन कैसे बरबाद करता? पुत्र शोक तो मेरा निजी मामला है, परंतु ज्ञान की आराधना का संबंध तो तुम सबसे है। इसमें विघ्न डालकर तुम्हारा विकास रोकता तो क्या मेरे लिए यह उचित होता?’’ उनकी कर्तव्यनिष्ठा पर सब हैरान रह गए।
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