अमेरिका में राष्टÑपति चुनावों से पहले डेमोक्रेटिक पार्टी ने राष्ट्रपति व रिपब्लिकन नेता डोनाल्ड ट्रंप के नहले पर दहला फैंक दिया है। डेमोक्रेट ने उप राष्टÑपति के चुनाव के लिए भारतीय मूल की अमेरिकी नेता कमला हैरिस को उम्मीदवार घोषित कर दिया है। अमेरिका के प्रिय नेता व पूर्व राष्टÑपति डेमोक्रेट बराक ओबामा ने हैरिस के चयन को उत्तम बताया है। डेमोक्रेट्स ने एक तीर से कई निशाने साधने की कोशिश की है। कमला द्वारा डेमोक्रेट भारतीय मतदाताओं के साथ साथ अफ्रीकी-अमेरिकी समुदाय को भी जोड़ने की नीति पर चल रहे हैं। कमला का पिता अफ्रीकी व मां भारतीय हैं। इस तरह पार्टी ने नस्लीय नफरत के खिलाफ भुगतने का संदेश दिया है। बीते कई सालों से गैर अमेरिकियों पर हो रही नस्लीय हिंसा ने जहां प्रवासियों में डर की भावना पैदा कर दी है, वहीं प्रवासियों में एकजुटता व राजनीतिक चेतना भी बढ़ी है।
खासकर अश्वेत जॉर्ज फ्लॉयड की हिंसा में हुई मौत ने पूरे अमेरिकियों को झंझोड़ कर रख दिया था। इस मुद्दे का चुनावों में असर अंदाज होना लाजमी था व डेमोक्रेट्स ने नस्लीय हिंसा प्रति अपना रवैया स्पष्ट कर दिया है। वहीं दूसरी तरफ रि पब्लिकन डोनाल्ड ट्रंप ने ‘हाऊ डी मोदी’ कार्यक्रम में भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को मुख्य मेहमान के रूप में बुलाकर प्रवासी भारतीयों को अपने साथ जोड़ने की मुुहिम चलाई। इसी तरह अहमदाबाद में ‘नमस्ते ट्रंप’ कार्यक्रम में लाखों भारतीयों ने ट्रंप का स्वागत किया। इस कार्यक्रम को इंटरनेशनल मीडिया में ट्रंप के चुनावी अभियान के साथ भी जोड़कर देखा गया गया था। डेमोक्रेट्स ने ट्रंप की मुहिम का तोड़ निकालते कमला हैरिस को उम्मीदवार बना लिया। चुनावों के परिणाम चाहे कुछ भी हों लेकिन नस्लीय हिंसा व अमेरिकी मूलवाद ट्रंप के लिए काफी मुश्किलें पैदा कर रहा है, जिससे निपटने के लिए रि पब्लिकन पार्टी को बड़ी चुनौती का सामना करना होगा।
ट्रंप ने राष्टÑपति चुनाव जीतने से पहले भी चुनाव प्रचार दौरान जिस तरह की बयानबाजी की थी उससे अमेरिकावाद को बल मिला था व समय समय पर प्रवासियों को वीजा देने की शर्तांे में सख्ती बरतने के बयान आते रहे, जिनमें कई बार ट्रंप प्रशासन यूटर्न भी लेता रहा है। कुछ भी हो चाहे, यह तो जरूर स्पष्ट है कि अमेरिका जैसे देश में नस्लीय व मूलवाद जैसी प्रवतियों को हवा देना किसी भी राजनीतिक पार्टी के लिए फायदेमंद नहीं हो सकता। अमेरिका के राष्टÑपति की चुनाव पर सारी दुनिया की नजर है व अलग-अलग देश अपने राजनीतिक चश्मे के साथ इसे देख रहे हैं। अगर अमेरिका में चुनावों में मानववादी मूल्यों को बल मिले तो यह पूरी दुनिया के लिए एक अच्छा संदेश होगा।
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