कोकुरा शहर अब अस्तित्व में नहीं है। ये उन नगरपालिकाओं में से एक था जिन्हें 1963 में मिलाकर एक नया शहर कीटाक्यूशू बना दिया गया, जिसकी आबादी 10 लाख से कुछ कम है। लेकिन आज भी जापानी लोगों के जेहन में कोकुरा की ना मिटने वाली यादें है। क्योंकि दो दशक पहले इसका अस्तित्व में ना रहना और भी दर्दनाक हो सकता था। कोकुरा, 1945 में जापान में परमाणु बम विस्फोटों के लिए चुने गए लक्ष्यों में से एक था, लेकिन ये शहर चमत्कारिक ढंग से द्वितीय विश्व युद्ध के दिनों की भीषण तबाही से बच गया। असल में, काकुरा 9 अगस्त को बम का निशाना बनने से कुछ मिनटों की दूरी पर था, ठीक उसी तरह जैसे तीन दिन पहले हिरोशिमा था।
लेकिन वो विनाशकारी हथियार वहां कभी तैनात ही नहीं किया गया क्योंकि एक साथ वहां कई ऐसी चीजें हुई जिसकी वजह से अमेरिकी वायु सेना को वैकल्पिक टारगेट यानी नागासाकी की ओर बढ़ना पड़ा। ऐसा अनुमान है कि बम विस्फोटों में हिरोशिमा के एक लाख 40 हजार लोग और नागासाकी में 74 हजार लोग मारे गये थे, और हजारों लोग आगे के कई सालों तक रेडिएशन का असर झेलते रहे। ‘लक आॅफ काकुरा’ अब जापान में एक कहावत बन गई है, जिसे तब बोला जाता है जब किसी के साथ बहुत बुरा होने से बच जाता है। जुलाई 1945 के मध्य में अमेरिकी सेना के अधिकारियों ने जापान के कई शहरों को चुना जहां परमाणु बम गिराये जा सकते थे। ये वो शहर थे जहां फैक्ट्रियां और सैन्य अड्डे थे।
कोकुरा प्राथमिकता के क्रम में सिर्फ हिरोशिमा से पीछे था। यानी सूची में हिरोशिमा के बाद उसका नाम था। कोकुरा हथियार उत्पादन का बड़ा केंद्र था। यहां जापान की सबसे बड़ी और सबसे ज़्यादा गोला-बारूद बनाने वाली फैक्टरियां थी। कोकुरा में जापान की सेना की एक बहुत बड़ी आयुधशाला भी थी। 15 अगस्त को सम्राट हिरोहितो ने बिना शर्त जापान के आत्मसमर्पण की घोषणा कर दी। कोकुरा विनाश से बच चुका था लेकिन लोगों में अब भी घबराहट थी। जब खबर आई कि नागासाकी पर गिरा बम पहले कोकुरा पर गिरने वाला था तो वहां के लोगों को राहत तो महसूस हुई, लेकिन उस राहत में दुख और सहानुभूति भी शामिल थी। राहत भी और दुख भी कीटाक्यूशू में एक नागासाकी परमाणु बम स्मारक है जो एक पूर्व आयुधशाला के मैदान में बने एक पार्क में स्थित है।
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