कुलभूषण जाधव मामले में मनमर्जी कर रहे पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय अदालत ने झटका दिया है। पाकिस्तान में मौत की सजा का सामना कर रहे भारत के पूर्व सैनिक अधिकारी के खिलाफ चल रहे मामले की सुनवाई हो रही है। अंतरराष्ट्रीय अदालत के आदेशों पर हाईकोर्ट इस्लामाबाद ने जाधव की कानूनी पैरवी के लिए तीन वरिष्ठ वकील नियुक्त करने पर भारत सरकार को मौका देने के लिए कहा है लेकिन यदि पिछला अनुभव देखा जाए तो पाकिस्तान का चेहरा अंदर कुछ और तो बाहर कुछ और ही दिखता है। वास्तव में इस मामले की कानूनी और न्यायिक प्रक्रिया पर सरकार का दबाव है, जो उस (पाक) की कूटनीति को सही लगता है। अंतरराष्ट्रीय अदालत के आदेशों के अंतर्गत पाकिस्तान जाधव के बुनियादी अधिकारों की सुरक्षा का नाटक तो करता है लेकिन लुक-छिपकर इस्लामाबाद प्रशासन के माध्यम से सब-कुछ अपनी मनमर्जी से कर रहा है। इससे पहले भारतीय अधिकारियों को जाधव के साथ संपर्क की अनुमति दी जाती है लेकिन जब अधिकारी पहुंचते हैं तो उन्हें मिलने नहीं दिया जाता। भारतीय अधिकारियों को जहां कहीं जाधव को कानूनी मदद मुहैया करवाने के लिए जाधव के हस्ताक्षरों की जरूरत पड़ती है तब पाक के अधिकारी हस्ताक्षर नहीं लेने देते। इन परिस्थितियों में पाक का जाधव को कानूनी मदद देने के दावे बिल्कुल झूठे हैं, जहां तक आरोपी को कानूनी सलाह की आवश्यकता होती है वहां पुलिस या खुफिया एजेंसी का कोई अधिकारी नहीं होना चाहिए लेकिन जाधव के साथ भारतीय अधिकारियों की मुलाकात के समय पाक अधिकारी बिल्कुल करीब मौजूद रहे। इस तरह कानूनी सहायता देने का कोई औचित्य ही नहीं रह जाता। जाधव के साथ भारतीय अधिकारियों की मुलाकात बिना शर्त होनी चाहिए थी, जिसका पाकिस्तान ने उल्लंघन किया है। दरअसल पाकिस्तान नहीं चाहता कि किसी भी तरह कुलभूषण जाधव उसके शिकंजे से बच निकले। हालांकि जाधव ने सजा के खिलाफ पुर्न:विचार याचिका दायर करने से इनकार कर दिया था। यदि ऐसा वास्तव में होता तो पाक अधिकारियों की जाधव के साथ भारतीय अधिकारियों की मुलाकात में अपनी उपस्थिति क्यों दिखानी पड़ती? पुलिस आम मामलों में ही किसी व्यक्ति से पीट-पीटकर कुछ मर्जी लिखवा लेती है फिर यह तो पाकिस्तान ने भारत के एक अधिकारी को जासूसी के शक में पकड़ा है। इन आरोपों में पकडेÞ गए व्यक्ति के साथ पाकिस्तान पुलिस/सेना किस तरह का व्यवहार करेगी, यह किसी से छिपा नहीं है। भारत सरकार ने जिस प्रकार से दबाव बनाया हुआ है वह रंग ला रहा है। फिर भी पाकिस्तान पर भरोसा नहीं। पैर-पैर पर विदेश मंत्रालय के अधिकारियों को चौकसी बरतने की आवश्यकता है। भारत सरकार को इस मामले पर पैनी नजर रखते हुए आगे बढ़ना चाहिए।
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