आओ प्रकृति को बचाएं: पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां द्वारा चलाए गए अभियान ला रहे रंग
सरसा (सच कहूँ न्यूज)। विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस प्रत्येक वर्ष 28 जुलाई को मनाया जाता है। वर्तमान परिपे्रक्ष्य में कई प्रजाति के जीव-जंतु, प्राकृतिक स्रोत एवं वनस्पति विलुप्त हो रहे हैं। विलुप्त होते जीव-जंतु और वनस्पति की रक्षा के लिये विश्व समुदाय को जागरूक करने के लिये ही इस दिवस को मनाया जाता है।
डेरा सच्चा सौदा के पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने प्रकृति संरक्षण को लेकर अनेक क्रांतिकारी कदम उठाए हैं, जिनमें पौधारोपण, ‘हो पृथ्वी साफ, मिटे रोग अभिशाप’ सफाई महा अभियान, नदियों की सफाई, पॉलीथीन के खिलाफ जागरूकता अभियान, जहरीले कीटनाशक रहित आर्गेनिक खेती को बढ़ावा देना शामिल है। इन प्रयासों की बदौलत न सिर्फ प्रकृति का रूप निखरा बल्कि आमजन में प्रकृति संरक्षण के प्रति जागरूकता भी बढ़ी। पूज्य गुरु जी की प्रेरणा पर चलते हुए ही डेरा सच्चा सौदा के श्रद्धालु जहां करोड़ों पौधे रोपित कर इस मुहिम को लगातार आगे बढ़ा रहे हैं। इसके साथ-साथ जल संरक्षण, प्रदूषण नियंत्रण, ऑर्गेनिक खेती, पॉलीथीन इस्तेमाल बंद करने के लिए आमजन को निरंतर जागरूक कर रहे हैं। कोरोना वायरस ने देश और दुनिया में त्राहि-त्राहि मचा रखी है। लाखों लोग इसके शिकार होकर अकाल काल कलवित हो रहे है। लेकिन इसी कोरोना काल में कुछ खुशखबरी भी प्रकृति को लेकर सुनने को मिली है, जिसे सुखद कहा जा सकता है। भारत में कई शहरों में हाल के वर्षों में प्रदूषण अपने चरम पर रहा, नदियां दूषित होने लगी। लेकिन इस कोरोना काल में नदियां भी साफ हुई और महानगरों में शुद्ध हवा लोगों को नसीब हुई। पशु पक्षियों को सुकून मिला। पर्यावरण शुद्ध होने से लोगों को निश्चय ही नवजीवन मिला है।
आज भी चिन्तन का बड़ा मसला
आज चिन्तन एवं चिन्ता का बड़ा मामला है भीषण रूप ले रही गर्मी, सिकुड़ रहे जलस्रोत, विनाश की ओर धकेली जा रही पृथ्वी एवं प्रकृति। बढ़ती जनसंख्या, बढ़ता प्रदूषण, नष्ट होता पर्यावरण, दूषित गैसों से छिद्रित होती ओजोन की ढाल, प्रकृति एवं पर्यावरण का अत्यधिक दोहन ये सब पृथ्वी एवं पृथ्वीवासियों के लिए सबसे बड़े खतरे हैं और इन खतरों का अहसास करना ही विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस का ध्येय है। प्रतिवर्ष धरती का तापमान बढ़ रहा है। आबादी बढ़ रही है, जमीन छोटी पड़ रही है। हर चीज की उपलब्धता कम हो रही है। आक्सीजन की कमी हो रही है। साथ ही साथ हमारा सुविधावादी नजरिया एवं जीवनशैली पर्यावरण एवं प्रकृति के लिये एक गंभीर खतरा बन कर प्रस्तुत हो रहा हैं। जल, जंगल और जमीन इन तीन तत्वों से प्रकृति का निर्माण होता है। यदि यह तत्व न हों तो प्रकृति इन तीन तत्वों के बिना अधूरी है। विश्व में ज्यादातर समृद्ध देश वही माने जाते हैं, जहां इन तीनों तत्वों का बाहुल्य है। बात अगर इन मूलभूत तत्व या संसाधनों की उपलब्धता तक सीमित नहीं है। आधुनिकीकरण के इस दौर में जब इन संसाधनों का अंधाधुंध दोहन हो रहा है तो ये तत्व भी खतरे में पड़ गए हैं।
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