श्रद्धालु ने दशकों तक अनमोल दात को जान से
भी अधिक प्यारी समझ कर की संभाल
बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज व डेरा सच्चा सौदा की दूसरी पातशाही पूज्य परम पिता शाह सतनाम जी महाराज जी के जीवन के साथ जुड़ी अनेक पवित्र निशानियों में एक जीप को पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज ने गुरूगद्दी पर बिराजमान होने से दो साल पहले अपने प्यारे मुर्शिद बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज के लिए सन् 1958 में अमेरिका से मंगवाया था। उन दिनों में विदेश से गाड़ी मंगवाना आसान काम नहीं था। बुकिंग के बाद ‘विलीज’ कंपनी ने जीप को समुद्री जहाज द्वारा मुम्बई भेजा।
डिलीवरी लेने के लिए पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज दिल्ली के एक श्रद्धालु को साथ लेकर मुम्बई पहुंचे व मुम्बई से ट्रक द्वारा जीप को दिल्ली लाया गया। दिल्ली से पूजनीय परम पिता जी खुद जीप चलाकर सरसा पधारे। जब परम पिता जी जीप को लेकर सरसा पहुंचे तो बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज सत्संग करने के लिए नजदीक के गांव लक्कड़ वाली जिला सरसा गए हुए थे।
पूजनीय परम पिता जी जीप लेकर वहीं पहुंच गए व बेपरवाह जी की हजूरी में गाड़ी को पेश किया। पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी ने जीप को देखा व पूजनीय परम पिता जी व कुछ अन्य श्रद्धालुओं को जीप में बैठाकर डेरा सच्चा सौदा गदराना, श्री जलालआणा साहिब व चोरमार घुमाकर वापिस लक्कड़वाली ले आए। पूजनीय बेपरवाह मस्ताना जी जहां भी सत्संग करने जाते, इसी जीप का प्रयोग किया करते।
पूजनीय बेपरवाह जी द्वारा चोला बदलने के बाद पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज जी ने भी 5-6 सालों तक इस जीप को अपने पास रखा। एक बार शाह सतनाम सिंह जी महाराज जी ने बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज जी के गुणगान गाने वाले सरसा के एक सेवादार से खुश होकर उसे यह जीप दात के तौर पर दे दी व वचन फरमाया, (‘‘यह जीप जिनकी है वह समय आने पर खुद ही ले जाएंगे।’’)
इसके बाद सरसा के प्रेमी गोबिंद मदान ने बेनती करके उस प्रेमी से वह जीप ले ली व अपने मुर्शिद बेपरवाह जी की बतौर निशानी सजा-संवार कर अपने पास रख ली। जीप को मुम्बई भेजकर वहां के मशहूर हंसा बॉडी बिल्डर से उसकी बॉडी बनवाई गई।
उल्लेखनीय है कि उस समय मुम्बई में हंसा बॉडी बिल्डर बहुत ही मशहूर था लेकिन बिल्डर के मालिक का कुछ समय पहले ही निधन होने के कारण व्यापार बेहद मंदी के दौर में से गुजर रहा था। यह बात सौ फीसदी सच है कि जिस दिन से यह जीप उनकी गैरेज में आई उसी दिन से उनका काम बहुत अच्छा चलने लगा। उसके बाद जीप की नई बॉडी बनवाकर सरसा लाया गया।
श्री मदान ने इस जीप को अपने घर में एक विशेष कमरा बनवाकर इस तरह संभाल कर रखा कि उसके टायर भी जमीन को छूएं नहीं। एक दिन उन्होंने पूज्य गुरू संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां जी को यह अनमोल निशानी सौंपने की अर्ज की। फिर वह दिन भी आया जब 19 अक्तू बर 2006 को पूज्य हजूर पिता जी खुद प्रेमी गोबिंद मदान के घर पधारे व इस जीप को अपने कर कमलों के साथ चलाकर लाए।
इस तरह परम पिता जी के वह वचन पूरे हुए कि ‘‘यह जीप जिनकी है वह समय आने पर खुद ही ले जाएंगे’’ शहनशाह मस्ताना जी लगभग तीन सालों तक गाड़ी में विराजते रहे। लगभग 6 सालों तक पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज जी ने भी इस गाड़ी को चलाया। अब इस गाड़ी को डेरा सच्चा सौदा में बने रूहानी म्यूजियम में धरोहर के रूप में संभाला हुआ है।
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