76th Foundation Day: जीवन में हमेशा अच्छा बोलो, अच्छा खाओ, अच्छा सोचो, अच्छे काम करो और भगवान का नाम जपो और उसकी रजा में राजी रहो, लेकिन परिस्थितियों के सामने कभी भी घुटने न टेको, हमेशा आगे बढ़ने के लिए सकारात्मक सोचो। ऐसी शिक्षाओं पर चलने व ऐसा जीवन जीने का नाम है डेरा सच्चा सौदा। इसी शिक्षा की आज सबसे अधिक आवश्यकता है। आधुनिक जीवन शैली में नई पीढ़ी आज तनावग्रस्त है, बच्चे माता-पिता के संस्करों व मार्गदर्शन से वंचित है, धर्मों की वैचारिक सांझ से वंचित है, ऐसे लोगों के लिए डेरा सच्चा सौदा का रूहानी, सामाजिक व सांस्कृतिक जिंदगी जीने का तरीका सही मार्गदर्शक बन रहा है। बहुत ही अलग नजारा है डेरा सच्चा सौदा का। आज आधुनिक युग में व्यक्ति जहां खुदा, भगवान के नाम से दूर होने की बातें करता है और धर्मों की शिक्षा को प्रतिगामी सोच बताता है, महंगे खान-पान, पहनावे व गाड़ियों-कोठियों को ही जिंदगी की सफलता मानता है, वहीं डेरा सच्चा सौदा के करोड़ों युवा परमात्मा की भक्ति व समाज सेवा को जिंदगी का सच्चा गहना एवं ऊंचा रूतबा मानते हैं।
अपने आप को खानदानी सत्संगी सेवादार कहलवाने में गर्व महसूस करते हैं। इन युवाओं द्वारा अपनी दिनचर्या के दौरान कार्यालयों, खेतों, फैक्ट्रियों में अपनी ड्यूटी देने के अलावा जितना भी समय बचता है उसे मानवता भलाई के कार्यों में लगाना आज दुनिया में किसी अजूबे से कम नहीं है। इनमें करोड़ों सेवादार ऐसे भी हैं जो दिन में समय न मिलने के कारण रात को जरूरतमंदों के लिए मकान बनाने को निकल पड़ते हैं और रातों-रात निर्धन का आशियाना बना देते हैं। अगर, रक्तदान की बात करें तो यह सेवादार फोन की घंटी बजते ही तुरंत ब्लड बैंक में पहुंच जाते हैं और रक्तदान कर मरीजों की जान बचाते हैं। रक्तदान करके इन सेवादारों के चेहरों पर किसी जंग को जीतने जैसी अनोखी खुशी खाफ दिखाई देती है। यह डेरा सच्चा सौदा की पावन शिक्षाओं का ही कमाल है कि पोता अपने दादा को नाम शब्द (गुरूमंत्र) लेने के लिए बार-बार आग्रह करता है और उन्हें सत्संग में लेकर आता है। अकसर माता-पिता अपने बच्चों को समझाते हैं, लेकिन जब कोई मासूम बच्चा अपने बाप-दादा को शराब व अन्य बुराईयों छुड़वाने का जरीया बने, तो यह अजूबा नहीं तो और क्या है?
जान न पहचान, फिर भी हमारा ‘मेहमान’
आजकल किसी के पास दूसरे को राह बताने तक की फुर्सत नहीं है, लेकिन डेरा सच्चा सौदा के सेवादार ऐसे मंदबुद्धि लोगों की भी संभाल कर रहे हैं, जिनका कोई अता-पता नहीं कि वह कौन और कहां का रहने वाला हैं? बस इन्सानियत की एक सांझ है, जिसकी चमक समाज को रोशन कर रही है। डेरा सच्चा सौदा के सेवादार अनजान और मानसिक तौर पर परेशान व्यक्ति की पहले संभाल करते हैं, उसे नहलाकर दुर्गंध से मुक्ति दिलवाते हैं, उसे भोजन खिलाते हैं, उसका इलाज करवाते है और तंदरूस्त होने पर उसके गांव-शहर का पता ढूंढकर उसको परिवार से मिलवाते हैं। ऐसे हजारों उदाहरण हैं, जब 15-15 सालों से लापता व्यक्ति डेरा सच्चा सौदा के सेवादारों की बदौलत अपने परिजनों से मिले तो माता-पिता की खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा। उनके लिए सेवादार किसी फरिश्ते से कम नहीं होते। पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां की प्रेरणा से साध-संगत ऐसे हजारों लोगों की संभाल कर उनके सून्ने घरों में खुशियां लौटा रही है।
नशा पीड़ितों का उद्धार
पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने नशा पीड़ित परिवारों के सून्ने पड़े घरों, माताओं-बहनों के मुरझाए चेहरों की चिंता की व नशा खत्म करने के लिए डैप्थ कैंपेन चलाई। आप जी की पावन प्रेरणाओं से साध-संगत ने नशा ग्रस्त युवाओं का इलाज करवाने की मुहिम शुरु की। इसी के साथ ही नशा पीड़ित परिवारों को वित्तीय सहायता दी व उनके लिऐ अच्छा पौष्टिक आहार भी उपलब्ध करवाया। समाज में लोग नशा पीड़ित की परछाई भी अपने बच्चों पर नहीं पड़ने देते हैं, पूज्य गुरु जी की पावन प्रेरणाओं से साध-संगत ने नशा पीड़ितों को भी अपने गले लगाया व उनके लिए देसी घी, बादाम, महंगी व कारगार खुराक का प्रबंध किया। डेरा सच्चा सौदा में अजूबा यह हुआ कि नशा छोड़ने वालों ने खुद साध-संगत की नशा विरोधी मुहिम में शामिल होकर अनगिनत नशेड़ियों का नशा छुड़वाया। लाखों युवा डेरा सच्चा सौदा रूपी नशा मुक्ति केन्द्र में आए और अपनी तंदरूस्ती वापिस पाकर खुशी-खुशी घरों को लौट गए।