शख्सियत। हरियाणा, पंजाब, राजस्थान व दिल्ली में बिखेर चुके हैं अपनी गायकी का हुनर (Folk Singing Buta Ram)
सच कहूँ/राजू ओढां। एक वो समय था जब लोक गायकी को लोग बड़े चाव से सुनते थे। क्योंकि उस गायकी में एक अलग ही कशिश होती थी। जब रेडियो पर कोई गीत चलता था तो लोग उसे बड़े चाव से सुनते थे। आज भी लोगों का पुरानी गायकी की तरफ रू झान बढ़ रहा है। तंूबी की तान पर गायकी की जब बात आती है तो लोकगायक लालचंद यमला, कुलदीप मानक व मोहम्मद सदीक जैसे अनेक नामी कलाकारों का नाम सामने आ जाता है।
हम आपको एक ऐसे लोक गायक से रू-ब-रू करवा रहे हैं जिसने तंूबी की तान पर आज भी लोक गायकी की कर्णप्रिय स्वर लहरी को जिंदा रखा हुआ है। भंगू निवासी बूटा राम नामक इस शख्स ने कहा कि वह अपने आखिरी दम तक इस गायकी में ही डूबा रहना चाहता है। इनकी आवाज मेंं वो कशिश है कि सुनने वाला मंत्रमुग्ध हो जाता है। संवाददाता से बातचीत में उन्होंने गायकी की लगन से लेकर अब तक के सफर को सांझा किया।
सवाल: आपको गायकी का शौंक कहां से और कितनी उम्र में लगा ?
जवाब: मैं किशोरावस्था में ही पुराने लोक गायकों को सुनता था। जिनमें मेरे सबसे प्रिय लोक गायक लालचंद यमला जट्ट थे। गायकी की प्रेरणा घर से ही मिली थी। मेरे माता-पिता मुझे गायकी के लिए प्रेरित करते थे। क्योंकि मेरे बाप-दादा सहित 4 पीढ़ियां इस लोकगायकी में ही थी।
सवाल: आपने गायकी क हां से सीखी ?
जवाब: मेरा चचेरा भाई काका सिंह व मैं दोनों घर में ही रिहर्सल करते थे। उस समय लालचंद यमला का लोकगायकी में नाम चलता था। लोग उनके गाने बड़े शौंक से सुनते थे। मैंने लालचंद यमला को अपना संगीत गुरू मान लिया। मैं व काका सिंह दोनों उनके साथ करीब 32 वर्ष तक रहकर गायकी सीखते रहे। उस्ताद लालचंद यमला ने हमें गायकी के हर सुर से अवगत करवाया। आज मेरी गायकी उन्हीं की बदौलत है।
सवाल: लोगों का नए कलाकारों की तरफ रूझान है। ऐसे में पुरानी लोकगायकी के क्या मायने ?
जवाब: हां, ये बात तो है। लेकिन पुरानी लोकगायकी व किस्सों को आज भी लोग चाव से सुनते हैं। कारण ये है कि लोकगायकों ने जो भी गीत गाए थे। उनके हर लफ्ज का एक अर्थ था। ये दुनिया है। यहां पर सभी तरह के गायकार है और सभी तरह के सुनने वाले। लोकगायकी अश्लीलता से परे है। लालचंद यमला की आवाज का जादू आज भी लोगों के कानों में गूंजता है।
सवाल: आप कहां-कहां गा चुके हैं ?
जवाब: मैं पिछले मैं पिछले करीब 35-40 वर्षांे से लोकगायकी में हूं। मैं क्षेत्र ही नहीं बल्कि हरियाणा, पंजाब, राजस्थान व दिल्ली सहित अनेक राज्यों में गा चुका हूं। लोकगायकी ही मेरा जीवन है। मैं अंतिम समय तक इसमें डूबा रहना चाहता हÞूं। हमारी 4 पीढ़ियां इस लोकगायकी में रही हैं। लोग पुराने लोकगायकों के अलग-अलग गीतों की डिमांड करते हैं। मैं सभी गीत गा लेता हूं।
सवाल: क्या आपके बेटे भी इसमें आना चाहेंगे ?
जवाब: लोकगायकी मेरी नस-नस में बसी हुई है। तूंबी की तान पर स्वर लहरी अपने आप ही बनती रहती है। मुझे मेरे गुरू ने यही सिखाया है कि लोकगायकी को अश्लीलता में कभी भी नहीं परोसना। एक अच्छी गायकी रखना ताकि लोकगायकी का नाम हमेशा सम्मान के साथ लिया जाता रहे। मेरे 3 लड़के हैं। अफसोस ये है कि वे इस क्षेत्र में नहीं आना चाहते।
सवाल: आप आज के गायकारों को क्या संदेश देना चाहते हैं ?
जवाब: देखिए गायकार वही गाता है जो लोग सुनना चाहते हैं। बाकी गायकार पर निर्भर होता है कि वह क्या गाना चाहता है। मैं तो यही कहूंगा कि अच्छी गायकी की पहचान बहुत लंबी होती है।
सवाल: कोरोना काल में क्या आपकी गायकी पर असर पड़ा ?
जवाब: हां, कोरोना काल की वजह से लोकगायकी का क्षेत्र बूरी तरह से प्रभावित हुआ है। क्योंकि विवाह-शादियों में भीड़ नहीं हो रही जिसके चलते कार्यक्रम ठप्प होकर रह गए हैं। सरकार को इस लोकगायकी को बचाने के लिए कोई न कोई प्रयास जरूर करना चाहिए।
सवाल: आपने संगीत गुरू के अलावा भी किसी को गुरू धारण किया है?
जवाब: मैंने संगीत के लिए लालचंद यमला जट्ट को गुरू बनाया और रूह का गुरू मैंने परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज को बनाया हुआ है। उन्हीं की रहमत से सब-कुछ संभव हो पा रहा है।
अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook और Twitter पर फॉलो करें।