नौंवे गुरु श्री तेग बहादुर जी का 400वां प्रकाश उत्सव राष्ट्रीय स्तर पर मनाया जा रहा है। केंद्र के साथ-साथ राज्य सरकारें भी इस पावन दिवस पर कार्यक्रम करने जा रही हैं। देश का सौभाग्य है कि हमारे पास श्री गुरु तेग बहादुर जी की महान कुर्बानी की मिसाल और जीवन दर्शन है। गुरू साहिब जी की कुर्बानी धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा का ऐसा संकल्प है जो पूरी दुनिया के लिए प्रेरणादायक है लेकिन यदि देश के मौजूदा परिस्थितियों को देखें तब राजनीतिक रोटियां सेकने के लिए आज भी एक-दूसरे की धार्मिक स्वतंत्रता को छीनने के प्रयास हो रहे हैं। कहीं धार्मिक स्थानों में स्पीकरों के नाम पर और कहीं धार्मिक ग्रंथों के पढ़ने पर बवाल हो रहा है। कोई दूसरों को चिढ़ाने के लिए दूसरों के स्थानों के आगे ऊंची आवाज में ग्रंथ पढ़ने पर उतारू हैं। इस जिद्द ने कानून-व्यवस्था की समस्या उत्पन्न कर दी है।
कोई ग्रंथ पढ़ने की धमकी दे रहा है और कोई पढ़ने वालों को रोकने की तैयारी कर रहा है। क्या यह हमारे इतिहास, परंपराएं और संस्कृति का अपमान नहीं? नि:संदेह समय के बदलाव के साथ कुछ नियमों में बदलाव भी संभव है। स्पीकरों की आवाज को कम किया जा सकता है और यह काम कानूनी व सद्भावना से किया जा सकता है लेकिन एक-दूसरे को धमकियां देना और उन्हें चिढ़ाना यह किसी भी धर्म की श्रेण में नहीं आता। ऐसी परिस्थितियों से राजनीतिक स्वार्थ तो सिद्ध हो सकते हैं लेकिन देश की सदभावना पर केंद्रित संस्कृति का सम्मान कभी नहीं हो सकता। ऐसी घटनाएं समाज में नफरत के बीज बोने की सिवाय कुछ नहीं करती। दूसरों के धार्मिक अकीदों की रक्षा करने के लिए कुर्बानी देने वाले महापुरुषों के देश में धर्म के नाम पर टकराव होना धर्मों का अपमान है।
भले ही ऐसी घटनाओं का गढ़ आज महाराष्टÑ बना हुआ है लेकिन आधुनिक युग में एक छोटी सी घटना भी पूरे देश पर प्रभाव छोड़ सकती है। बेहतर हो, यदि सरकारें महापुरुषों के दिवस मनाने के साथ-साथ ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए दृढ़ संकल्प लें। प्रत्येक धर्म ही मनुष्य को धार्मिक स्वतंत्रता प्रदान करता है और देश का कानून इसकी रक्षा की गारंटी देता है। धर्म मनुष्य को ऊर्जावान बनाते हैं, इनके नाम पर समाज में टकराव न पैदा हों।
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