‘‘याद-ए-मुर्शिद’’
तेरी बेशुमार रहमत के नजारे हमने देख लिए,
नरक सी दुनिया में स्वर्ग के द्वारे हमने देख लिए
किसी मजबूर को किसी लाचार को
हताश दीन-दुखिये किसी परिवार को।
मेरे मुर्शिद! मेरे साईं के प्यारे जब लाएं
सप्रेम भोजन-पानी, रहना-राहत बिन मोल करवाएं
दौड़ते हुए कदमों की वो आहटें
थामे हुए वो बुजुर्गों के वो हाथ
भगवान-से ईलाज करते ये डॉक्टर्स
निस्वार्थ संभाल करती ये जवानियाँ
और कुछ पन्नों पर लिखते अमर कहानियाँ
क्या ये नजारा! कोई सचखंड से कम है!
आंसू न सही, पर हर इक आँख नम है,
हर इक आँख नम है!
‘याद-ए-मुर्शिद’ मीत दास तेरा मनाए हर साल,
कई लाखों अंधेरी नजरों में, चमकते सितारे हमने देख लिए
शाह सतनाम जी तेरी बेशुमार रहमत के नजारे हमने देख लिए
33वीं बार याद-ए-मुर्शिद शिविर के नजारे हमने देख लिए
नजारे हमने देख लिए।।
संजय इन्सां
राम नगर, कांगड़ा हिमाचल प्रदेश
एसएम एमएसजी आईटीडब्ल्यू (एचपी)