चंडीगढ़ (सच कहूँ न्यूज)। केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने पिछले सात साल में अब तक 18 आईपीएस (भारतीय पुलिस सेवा) अधिकारियों को उनकी सेवानिवृत्ति से पूर्व सेवामुक्त किया है। वहीं इसी अवधि दौरान पांच आईपीएस अधिकारियों के विरूद्ध विभिन्न अदालतों में लंबित मामलों में मुकदमा चलाने के लिए केंद्र सरकार की तरफ से स्वीकृति प्रदान की गयी है। वर्तमान में देश में 24 आईपीएस अधिकारी निलंबित (सस्पेंड) चल रहे हैं। यह खुलासा पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के एडवोकेट हेमंत कुमार ने सूचना अधिकार (आरटीआई) के तहत जुटाई जानकारी से किया है।
कुमार ने मंगलवार को जारी बयान में बताया कि उन्होंने केंद्रीय गृह मंत्रालय में इस वर्ष 10 फरवरी को एक आरटीआई याचिका दायर कर तीन बिन्दुओ पर जानकारी मांगी थी। एक, उन आईपीएस अधिकारियों की कुल संख्या, नाम और उनका राज्य कैडर, जिन्हे मई, 2014 से आज तक आईपीएस से समय पूर्व रिटायर किया या हटा दिया गया है अर्थात टर्मिनेट या बर्खास्त कर दिया गया है। दूसरे बिंदु में उन्होंने उन सारे आईपीएस अधिकारियों का विवरण मांगा जिनके विरुद्ध अदालती कार्यवाही चलाने के लिए केंद्र सरकार की तरफ से आवश्यक स्वीकृति प्रदान की गयी है। तीसरे बिंदु में उन सभी आईपीएस अधिकारियों बारे सूचना मांगी गयी जो वर्तमान में सेवा से सस्पेंड चल रहे हैं।
क्या है पूरा मामला
कुमार के अनुसार पहले (11 मार्च को) केंद्रीय गृह मंत्रालय ने यह जानकारी देने से यह कहते हुए मना कर दिया कि मांगी गई सूचना में कोई जनहित नहीं है इसलिए आरटीआई कानून, 2005 की धारा 8 (1) (जे) के अंतर्गत सूचना नहीं दी जा सकती। उसके बाद उन्होंने गृह मंत्रालय के संयुक्त सचिव को प्रथम अपील भी दायर कर दी जिसमें उन्होंने प्रश्न उठाया कि देश के दागी आईपीएस अधिकारियों के सम्बन्ध में सूचना माँगना और देना जनहित में क्यों नहीं है? वैसे भी आरटीआई कानून की धारा 8 (1) (जे) में स्पष्ट तौर पर उल्लेख है कि जो सूचना संसद और विधानमंडल (विधानसभा और विधानपरिषद) को देने में इंकार नहीं किया जा सकता, उसे किसी व्यक्ति अर्थात आरटीआई आवेदनकर्ता को भी देने में इंकार नहीं किया जा सकता।
कुमार के अनुसार उन्होंने तर्क दिया कि मांगी गयी उक्त सूचना को अगर कोई सांसद (लोकसभा या राज्यसभा के प्रश्न काल के दौरान केंद्रीय गृह मंत्री या गृह राज्य मंत्री से मांगता है, तो गृह मंत्री/गृह राज्यमंत्री को भी जवाब में यह सूचना सदन के पटल पर रखनी पड़ेगी। इस तरह आरटीआई याचिका के जवाब में भी ऐसी जानकारी देने से गृह मंत्रालय इंकार नहीं कर सकता है।
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