वोट, गरीबी और महंगाई

Vote, Poverty and inflation
Vote, Poverty and inflation

देश में राष्ट्रीय नागरिकता कानून, राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर जैसे मुद्दों से चाहे देश की राजनीति गर्माई हुई है लेकिन दिल्ली चुनावों ने यह साबित कर दिया है कि देश में अगर कोई सबसे बड़ा मुद्दा या समस्या है तो वह है गरीबी और मंहगाई। आज जिनती भी पार्टियां अपने चुनाव घोषणा-पत्र जारी कर रही हैं, उनमें ‘सस्ता’ शब्द केन्द्र बिन्दू की तरह उभर कर सामने आता है, जिससे साफ है कि आम आदमी प्रतिदिन की जरूरतों को पूरी करने में सक्षम नहीं रहा है। दिल्ली चुनावों के लिए भाजपा व कांग्रेस अपना-अपना चुनाव घोषणा-पत्र जारी कर चुकी हैं।

भाजपा ने 2 रूपये प्रति किलो आटा देने, के साथ-साथ कई अन्य लोग लुभावने वायदे किए हैं। इधर कांग्रेस के वायदे भी अलग नहीं हैं। कांग्र्रेस ने एमए पास बेरोजगारों को 7500 रूपये प्रति महीना भत्ता देने, बुजुर्गे को नि:शुल्क बस यात्रा व 300 यूनिट तक नि:शुल्क बिजली व लड़कियों को पीएचडी तक की शिक्षा नि:शुल्क देने की बात कही है। इससे पहले आम आदमी पार्टी की सरकार सस्ती बिजली व पानी देने के वायदों के साथ सत्ता में आई थी। कांग्रेस व भाजपा सस्ते में आम आदमी पार्टी से एक कदम आगे निकलने की कोशिशें कर रही हैं। राजनीति पार्टियों के मापदंड दोहरे नजर आ रहे हैं। जितनी आलोचना एक-दूसरे की अन्य मुद्दों पर होती उतनी कभी भी महंगाई, बेरोजगारी व गरीबी पर नहीं होती। देश के अंदर प्रतिदिन ही लोग गरीबी व बेरोजगारी के कारण आत्महत्याएं कर रहे हैं।

भूखमरी व अन्य कई समस्याओं में अभी भी हमारा देश गरीब देशों की श्रैणी में आता है। जनता का धर्माें-मजहबों के झगड़ों व अन्य राजनीतिक पैंतरेबाजियों के साथ कोई लेना-देना नहीं है। लोग रोजगार व बुनियादी सुविधाएं चाहते हैं। दिल्ली के चुनाव दिल्ली के मतदाताओं की अलग मानसिकता के कारण देश से अलग है। यहां लोग सरकार से काम व मूलभूत आवश्यकताएं पूरी करने की उम्मीद रखते हैं। इसी कारण ही सभी पार्टियों का जोर ‘सस्ते’ पर लगा हुआ है। अगर राजनीतिज्ञ लोगों को अन्य मुद्दों पर भरमाने की बजाय गरीबी, बेरोजगारी जैसे मुद्दों पर ईमानदारी व वचनबद्धता के साथ काम करें तो यह मामले थोड़े समय में ही हल हो सकते हैं। अच्छा हो अगर पार्टियां पैंतरेबाजी खेलने की बजाय सार्वजनिक मुद्दों को पहल दे। इन मुद्दों से कोई भी पार्टी मुंह नहीं मोड़ सकती। आमजन की बेहतरी को केवल चुनाव जीतने की मजबूरी की बजाय सेवा भावना के साथ किया जाए तो आदर्शों की उपलब्धि कोई मुश्किल काम नहीं।

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