युवा पीढ़ी को जागरूक होने की आवश्यकता

Young-Generation
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युवा देश की असली शक्ति हैं जो देश की सुरक्षा से लेकर जीडीपी तक सबसे अधिक योगदान देते हैं। युवाओं के बिना देश की तरक्की की कल्पना भी नहीं की जा सकती लेकिन यह चिंता वाली बात है कि हमारे देश की राजनीति के मंसूबे बहुत ही खतरनाक होते जा रहे हैं जो युवाओं को अपने हितों की खातिर आग में झोंकने से जरा भी संकोच नहीं कर रहे। राष्टÑीय नागरिकता शोध कानून पास हुए को आज करीब डेढ़ महीने से अधिक का समय बीत गया है लेकिन इस मुद्दे पर देश में धर्मों के नाम पर लड़ाई व नफरत की आग लगातार भड़काई जा रही है। कानून के हक व विरोध में दलीलें तो बहुत दी जा रही हैं लेकिन  राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री को छोड़कर किसी भी पार्टी के नेता ने युवाओं को हिंसा का राह छोड़ने की अपील नहीं की। मामला इतना पेचीदा हो गया है कि दोनों पक्षों की ओर से एक दूसरे के खिलाफ हिंसक कार्रवाईयां शुरू हो गई हैं। सीएए के विपक्षी व समर्थक दोनों ही राजनीतिक पार्टियों को रास नहीं आ रहे हैं। जिस बात का डर था वह होनी शुरू हो गई है।

सीएए के समर्थक एक युवक ने दिल्ली में सीएए का विरोध करने वालों पर गोली दाग दी। कुछ दिन पहले भी एक व्यक्ति पिस्तौल लेकर सीएए विरोध के प्रदर्शन वाली जगह पर पहुंच गया था। अगर युवाओं के दरमियान यह टकराव इसी तरह बढ़ता रहा तो हालात और भी खतरनाक हो सकते हैं। कांग्रेस व भाजपा सहित सभी पार्टियों के बड़े व छोटे नेता सीएए मुद्दे पर संयम अपनाने की हिम्मत नहीं कर रहे। कोई न कोई भड़काने वाला ब्यान आ ही रहा है। देश में राजनीतिक व धार्मिक नफरत का माहौल पैदा हो रहा है, जिससे निपटने के लिए निष्पक्ष कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए। केवल कानूनी सख्ती ही काफ ी नहीं बल्कि सद्भावना व अहिंसा की अपील भी बहुत ही जरूरी है। किसी भी पक्ष द्वारा फैलाई जा रही भड़काहट अभी सभी राजनीतिक पार्टियों को रास आ रही है।

राजनीतिक पार्टियां चुपचाप युवाओं की बर्बादी का तमाशा देख रही हैं। लेकिन यहां युवाओं की जिम्मेवारी बनती है कि वह राजनीतिक पार्टियों के हाथों में खेलने की बजाय अहिंसा व सद्भावना की सोच से काम लें। किसी भी मुद्दे का विरोध व समर्थन करने के लिए लोकतांत्रिक तरीके ही अपनाए जाने चाहिए। देश के महान् नेता महात्मा गांधी ने अहिंसा के रास्ते पर चलते हुए जबरदस्त आंदोलन किए थे। संघर्ष का मतलब केवल तोड़फोड़ या गोलीबारी नहीं होता बल्कि जनता की सोच बदलना होता है। राजनीतिक पार्टियां अपने हितों का लोभ त्यागकर युवाओं की भलाई के प्रति अवश्य सोचें। हिंसा में युवाओं की ली जाने वाली बलि किसी भी राजनीतिक पार्टी के लिए जीत साबित नहीं होगी।

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