एक भारत, एक संविधान और एक कानून की वीरता

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जम्मू-कश्मीर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ऐतिहासिक वीरता पर दो महापुरुषों को याद किया जाना चाहिए, पूरे देश को इन दो महापुरूषों की याद भी आ रही है। ये दोनों महापुरूष हैं, सरदार पटेल और श्यामा प्रसाद मुखर्जी। सरदार पटेल ने विखंडित भारत के विरोधी थे, भारत विखंडन वे किसी भी स्थिति में नहीं चाहते थे, सरदार पटेल ने एक सशक्त भारत का सपना देखा था और अंग्रेजों की कारस्तानी को जड़ से उखाड़ फेकना चाहते थे। अंग्रेजों ने भारत को आजाद तो जरूर किया था पर रियासतों का हथकंडा भी छोड़ दिया था। सरदार पटेल ने पांच सौ से ज्यादा रियासतों को भारत में विलय कराया था।

तीन ऐसे रियासत थे जिनकी मानसिकता भारत विरोधी थी। ये रियासतें जूनागढ, हैदराबाद और जम्मू-कश्मीर की थी। सरदार पटेल ने सेना भेज कर जूनागढ और हैदराबाद का विलय भारत में कराया था। जम्मू-कश्मीर रियासत को भी सरदार पटेल भारत में मिलाने का पराकर्म दिखाने के लिए तैयार थे पर जवाहर लाल नेहरू ने सरदार पटेल के हाथ बांध दिये थे और जम्मू-कश्मीर रियासत का मामला नेहरू ने अपने हाथ में ले लिये थे। दुष्परिणाम धारा 370 और 35 ए आयी थी, जिसकी बहुत बड़ी कीमत सिर्फ जम्मू-कश्मीर के कश्मीरी पंडित ही नहीं बल्कि पूरे देश की जनता ने चुकायी है। उस काल में जम्मू-कश्मीर में प्रवेश करने के लिए देश की ही जनता को परमिट लेने की जरूरत होती थी, एक देश दो संविधान, एक देश दो झंडा था।

यह स्थिति बहुत ही पीड़ादायक थी, अपने ही देश में आने-जाने के लिए परमिट की जरूरत थी, ऐसी व्यवस्था विश्व में शायद ही कहीं होगी? इस पीड़ा को पहचानने वाले सबसे पहले महापुरूष श्यामा प्रसाद मुखर्जी थे। श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने महासंग्राम किया था। जवाहर लाल नेहरू के साथ ही साथ शेख अब्दुला को ललकारा था। मुखर्जी स्वयं ही बिना परमिट के जम्मू-कश्मीर चले गये। मुखर्जी को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया, जेल में ही साजिशपूर्ण ढंग से श्यामा प्रसाद मुखर्जी की हत्या होती है। श्यामा प्रसाद मुखर्जी के बलिदान ने जवाहर लाल नेहरू की प्रधानमंत्री की कुर्सी हिलायी थी। सुखद परिणाम यह निकला था कि जम्मू-कश्मीर जाने के लिए परमिट सिस्टम को समाप्त कर दिया गया था, एक देश दो झंडे का दुष्परिणाम को समाप्त कर दिया गया था। नरेन्द्र मोदी की इस वीरता से निश्चित तौर सरदार पटेल और श्यामा प्रसाद मुखर्जी की आत्मा आज जरूर गर्व-हर्ष कर रही होगी।

कश्मीर को लेकर दो प्रमुख धाराएं जो एक देश, एक संविधान और एक कानून की मुंह चिढाती हैं, वे सिर्फ और सिर्फ जवाहर लाल नेहरू की कारस्तानी थी। देश की जनता यह मानती है कि नेहरू ही धारा 370 और 35 ए को लेकर खतरनाक तौर पर आग्रही थे। जवाहर लाल नेहरू ने बिना सोचे-समझे और दुष्परिणामों का अध्ययण किये बिना ही धारा 370 और 35 ए दिये थे। खास कर धारा 35 ए तो गैर संवैधानिक है। सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि एक आपराधिक कृत्य है और इस आपराधिक कृत्य पर पर्दा डाला गया था। इस आपराधिक कृत्य पर पर्दा क्यो डाला गया था, इसका विरोध क्यों नहीं हुआ था? यह प्रश्न बहुत ही महत्वपूर्ण हं। उस समय नेहरू की छवि बहुत ही एकात्मक थी, नेहरू का विरोध करने की क्षमता अन्य किसी में थी नहीं।

इसलिए नेहरू की उस आपराधिक कृत्य का राजनीतिक विरोध हुआ नहीं था। कोई संवैधानिक धारा संसद में पास होने के बाद ही संविधान की धारा बनती है। पर इस कसौटी पर धारा 35 ए कहीं नहीं ठहरती थी। धारा 35 ए पर संवैधानिक जरूरतों को पूरा नहीं किया गया था। फिर यह प्रश्न उठता है कि धारा 35 ए संविधान का अंग कैसे बनी। धारा 35 ए का सर्वाधिक शिकार कश्मीरी पंडित हुए हैं। इस धारा में एक अन्य व्यवस्था तो और भी खतरनाक है। अगर कोई महिला राज्य के बाहर के व्यक्ति से शादी करता है तो फिर उसकी संपत्ति पर अधिकार समाप्त हो जाता है, वह संपत्ति राज्य सरकार के हाथों में चली जाती है। कश्मीरी पंडित पुरूष अगर राज्य के बाहर की महिला से शादी करता है तो फिर उसको भी इसी तरह की पीड़ा से गुजरना होता है। कश्मीर से पांच लाख से अधिक पंडितों को बलपूर्वक, हिंसापूर्ण और जेहादी मानसिकता के कारण भगा दिया गया। पलायन झेलने को मजबूर कश्मीरी पंडित राज्य के बाहर शादियां करने के लिए विवश हुए। ऐसे कश्मीरी पंडितों को अपनी संपत्ति से ही बेदखल होना पड़ा है। कश्मीरी पंडितों की संपत्तियों पर गैरकानूनी कब्जे भी एक प्रश्न के तौर खड़े हैं।

अब हम कश्मीरियत पर आते हैं। विरोधी राजनीतिक धाराएं कह रही हैं कि कश्मीरिय को समाप्त किया जा रहा है, कश्मीर के पाकिस्तान परस्त राजनीतिक धाराएं कह रही है कि नरेन्द्र मोदी की सरकार कश्मीरियत को समाप्त कर रही है, कश्मीरी लोगों का अधिकार छिन्न रही है, सविधान प्रदत्त अधिकार लूटे जा रहे हैं। कश्मीरियत क्या सिर्फ जेहादी लोगो और पाकिस्तान परस्त लोगों की ही विरासत थी? कश्मीरियत तो उसी दिन दफन हो गयी थी कि जब मजहब के आधार पर कश्मीर में जेहाद शुरू हुआ था, जेहादी मानसिकताएं परोसी जानी शुरू हुई थी, कश्मीरी पंडितों को घाटी छोड़ने के लिए मस्जिदों से ऐलान कराये जाते थे, मस्जिदों से फतवे दिये जाते थे। सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि मुसलमान बनने या फिर घाटी छोड़ने का विकल्प दिया जाता था, ऐसा नहीं करने पर मौत की धमकियां पिलायी जाती थी।

सिर्फ धमकिया ही नहीं होती थी बल्कि धमकियों को अंजाम तक पहुंचा दिया जाता था। कश्मीरी पंड़ितों की हत्याएं हुई, कश्मीरी पंडित महिलाओं के साथ सरेआम बलात्कार हुए। पांच लाख से अधिक कश्मीरी पड़ितों को बल पूर्वक, साजिशपूर्ण ढंग से और जेहादी मानसिकता के सहचर होकर घाटी छोड़ने के लिए बाध्य किया गया। अगर कश्मीर की राजनीति और कश्मीर की मजहबी जनता ऐसी करतूत नहीं करती तो आज नरेन्द्र मोदी को इस तरह का समर्थन नहीं मिलता और न ही नरेन्द्र मोदी को इस तरह की राजनीतिक शक्ति मिलती। फिर कश्मीरियत की कसौटी पर नरेन्द्र मोदी लाचार और विवश होते। धारा 370 और धारा 35 ए पर नरेन्द्र मोदी की वीरता का परिणाम कैसा होगा? राज्य का दर्जा समाप्त कर दो केन्द्रीय प्रदेश बनाने का सुखद परिणाम क्या होगा? सबसे बड़ी बात तो यह है कि एक देश, एक संविधान और एक कानून की मुंह चिढाने वाली धाराओं का अंत होगा।

फिर जम्मू-कश्मीर और लद्दाख का विकास भी होगा। देश ही नहीं बल्कि विदेश की कपंनियां वहां जाकर व्यापार कर सकती हैं, रोजगार का श्रृंजन कर सकती हैं। खास कर जम्मू और लद्दाख की जनता को कश्मीरी उपनिवेशवाद से मुक्ति मिलेगी। सर्वाधिक विकास और सर्वाधिक सुविधाएं कश्मीर की जनता व जेहादी मानसिकताएं भोगती थी और जम्मू-लद्दाख की जनता हमेशा ठगी रहती थी। सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि कश्मीर के उपनिवेशवाद से जम्मू-लद्दाख की जनता मुक्ति चाहती थी।

पाकिस्तान क्या सोचता है, मुस्लिम देशों का संगठन क्या सोचता है, दुनिया क्या सोचती है? यह हमारे लिए महत्वपूर्ण नहीं है। हमारे लिए महत्वपूर्ण एक देश, एक संविधान और एक कानून है। आतंकवाद और विखड़नकारी प्रक्रिया को तोड़ना और आतंकवाद व विखंडन कारी तत्वों पर संविधान और कानून का बुलडोजर चलाना हमारा अधिकार है। जम्मू-कश्मीर, लद्दाख देश के अभिन्न अंग हैं। भाजपा का वायदा पूरा कर नरेन्द्र मोदी ने इतिहास रच दिया है।

विष्णुगुप्त

 

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